भोपाल। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा कर रख दी है, लोग एक दूसरे से दूरिया बनाने को मजबूर हो गए हैं, इस वायरस के दौर में इंसान की सच्ची मित्र कही जाने वाली किताबों से भी लोगों ने दूरियां बना ली हैं. कोरोना काल में ना तो स्कूल, कॉलेज खुले हैं, ना ही अन्य कोई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन हो रहा है, ऐसे में तमाम लाइब्रेरी और किताब की दुकानों में सन्नाटा छाया हुआ है, यहां पर अब यदा-कदा लोग ही पहुंचते हैं.
वैरायटी बुक्स हाउस के संचालक एसपी वाधवा बताते है कि, इन दिनों फिजिकली किताबों की बिक्री में काफी मंदी आई हुई है. वहीं किताबों के बड़े विक्रेता बुक्स एंड बुक्स के एक्जीक्यूटिव सलीम का कहना है कि, होम डिलेवरी की सुविधा देने पर भी 10 परसेंट लोग ही हैं जो ऑनलाइन किताब मंगाते हैं, बाकी 90 फीसदी किताब का कारोबार ठप पड़ा हुआ है.
स्कूल कॉलेज की किताबों के अलावा भी एक वर्ग है, जो अन्य किताबों को पढ़ना पसंद करता है, जिनमें राजनीति, खेल, फिल्म जगत, इतिहास, बायोग्राफी, फैशन, समसामायिक किताबें शामिल हैं, कोरोना के दौर में इस वर्ग ने भी किताबों से दूरी बना ली है. राजनीतिक विश्लेषक और लेखक शिव अनुराग पटेरिया ने बताया कि, लोग किताब खरीदने के जगह ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन साहित्य तलाशते रहते हैं, जिसमे कोई आनंद नहीं है. पटेरिया की माने तो ऑनलाइन किताबें पढ़ना, चम्मच से खाना खाना जैसे होता है. इसमें ना ही कोई इमोशंस होते हैं, ना ही आपका किताब से कोई अटैचमेंट.
वैश्विक महामारी कोरोना के चलते एक बड़ा बाजार यानी किताबों का व्यवसाय ठप हो गया है. आम दिनों में किताबों की दुकानों पर सैकड़ों की संख्या में लोग सुबह शाम पहुंचते थे, लेकिन अब इन दुकानों पर सन्नाटा पसरा है. जिसका खामियाजा उन दुकानदारों को उठाना पड़ रहा है, जिनकी जीविका इन किताबों के माध्यम से चलती थी. दुकानदारों की माने तो इस दौर में स्टेशनरी के व्यापार में 80 फीसदी की कमी आई है, जिससे उन्हें काफी नुकसान हो रहा है.