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मध्य प्रदेश में उमा भारती की बढ़ रही सक्रियता

आजकल मध्यप्रदेश की राजनीति में उमा भारती काफी सक्रिय हो गई है. असल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी है. इस कारण उनकी रिक्तता उमा भारती के लिए अवसर लेकर आई है. जानें क्या नया गुल खिलने वाला है मध्यप्रदेश की राजनीति में.

उमा भारती
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Published : Aug 6, 2019, 12:36 PM IST

Updated : Aug 6, 2019, 3:24 PM IST

नई दिल्ली/ भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में अचानक पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता बढ़ गई है. असल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रिक्तता उमा भारती को अवसर प्रदान कर रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती पार्टी कार्यकर्ताओं से गंभीर मसलों पर लगातार आजकल चर्चा कर रही हैं.


दरअसल उमा भारती बीते कुछ वर्षो में इतनी सक्रिय कभी नजर नहीं आईं थी, जितनी इस बार नजर आ रही हैं. बीते तीन दिनों से वह भोपाल में हैं. सभी नेताओं से मेल-मुलाकात कर रही है.वह पार्टी के उन नेताओं के साथ खड़ी होती नजर आ रही हैं, जो किसी न किसी तौर पर मुश्किल में है.पढ़ें-जानें, किसने शिवराज सिंह चौहान को भेजे च्यवनप्राश और बादामबता दें, पिछले दिनों विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों को कांग्रेस ने एकदम से तोड़ लिया था. उसके पहले नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कमलनाथ सरकार को एक दिन नहीं चलने का दावा लगातार कर रहें थें. इसपर पार्टी हाईकमान काफी नाराज हुई थी.

इन नेताओं का साथ देने का मन बनाया

इतना ही नहीं, भार्गव के पद पर खतरा भी मंडराने लगा. दूसरी ओर, ई-टेंडरिंग मामले में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा पर आंच आने का खतरा है. इन दोनों नेताओं का उमा भारती ने साथ देने का मन बनाया है. इन दोनों नेताओं की पूर्व मुख्यमंत्री चौहान से भी दूरी है.ज्ञातव्य हो राजनीति के जानकार मानते हैं कि उमा भारती खुले तौर पर सामने न आकर राज्य में भार्गव व मिश्रा के पीछे खड़े होकर राजनीति करना चाह रही हैं. यह नजर भी आने लगा है.

2003 में राज्य की सत्ता हुई थी प्राप्त

भारती भार्गव के साथ पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और वर्तमान राज्यपाल लालजी टंडन से मिलीं. साथ ही उन्होंने ई-टेंडरिंग मामले में मिश्रा की छवि को खराब करने का आरोप लगाया. अरसे बाद यह पहला मौका है, जब उमा भारती इस तरह से सक्रिय हैं.गौरतलब हो उमा भारती की अगुवाई में भाजपा ने वर्ष 2003 में राज्य की सत्ता प्राप्त हुई थी. लेकिन तिरंगा प्रकरण के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद से वह राज्य की राजनीति से किनारे होती गईं.समय बाद भारतीय जनशक्ति पार्टी भी बनाई, मगर दोबारा भाजपा में लौट आईं थी. उत्तर प्रदेश के चरखारी से विधायक और झांसी से सांसद रहीं उमा की मध्य प्रदेश में ही राजनीति करने की इच्छाएं हिलोरें मारती रही हैं.
उल्लेखनीय हो की पिछला चुनाव में उन्होंने अपने को गंगा नदी के प्रति समर्पित करने की बात कहते हुए नहीं लड़ा था.

राजनीति में दखल को बनाए रखने पर जोर!

हालांकि वह राजनीति से दूर रहने की बात कहती है. लेकिन अंतर्मन से मध्यप्रदेश की सियासत में वापसी चाहती है. उमा भारती के करीबी भी कहते हैं कि वह राज्य की राजनीति में अपने दखल को बनाए रखना चाहती हैं. मौजूदा हालात उनके अनुकूल हैं.बहरहाल राज्य में वर्तमान स्थिति पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात तो साफ नजर आती है कि शिवराज सिंह चौहान के अलावा एक भी ऐसा नेता नहीं, जिसके नाम पर सभी एक हो जाएं. वस्तुत: देखा जाए तो पार्टी हाईकमान चौहान को राज्य की राजनीति से दूर रखना चाहता है, इसीलिए उन्हें सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया है. इस स्थिति में उमा भारती को लगता है कि पार्टी में आ रही रिक्तता को भरने में वह सफल हो सकती हैं. यही कारण है कि वह राज्य की राजनीति में सक्रिय हो चली हैं.

नई दिल्ली/ भोपाल। मध्यप्रदेश की सियासत में अचानक पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती की सक्रियता बढ़ गई है. असल में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की रिक्तता उमा भारती को अवसर प्रदान कर रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती पार्टी कार्यकर्ताओं से गंभीर मसलों पर लगातार आजकल चर्चा कर रही हैं.


दरअसल उमा भारती बीते कुछ वर्षो में इतनी सक्रिय कभी नजर नहीं आईं थी, जितनी इस बार नजर आ रही हैं. बीते तीन दिनों से वह भोपाल में हैं. सभी नेताओं से मेल-मुलाकात कर रही है.वह पार्टी के उन नेताओं के साथ खड़ी होती नजर आ रही हैं, जो किसी न किसी तौर पर मुश्किल में है.पढ़ें-जानें, किसने शिवराज सिंह चौहान को भेजे च्यवनप्राश और बादामबता दें, पिछले दिनों विधानसभा में भाजपा के दो विधायकों को कांग्रेस ने एकदम से तोड़ लिया था. उसके पहले नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कमलनाथ सरकार को एक दिन नहीं चलने का दावा लगातार कर रहें थें. इसपर पार्टी हाईकमान काफी नाराज हुई थी.

इन नेताओं का साथ देने का मन बनाया

इतना ही नहीं, भार्गव के पद पर खतरा भी मंडराने लगा. दूसरी ओर, ई-टेंडरिंग मामले में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा पर आंच आने का खतरा है. इन दोनों नेताओं का उमा भारती ने साथ देने का मन बनाया है. इन दोनों नेताओं की पूर्व मुख्यमंत्री चौहान से भी दूरी है.ज्ञातव्य हो राजनीति के जानकार मानते हैं कि उमा भारती खुले तौर पर सामने न आकर राज्य में भार्गव व मिश्रा के पीछे खड़े होकर राजनीति करना चाह रही हैं. यह नजर भी आने लगा है.

2003 में राज्य की सत्ता हुई थी प्राप्त

भारती भार्गव के साथ पूर्व राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और वर्तमान राज्यपाल लालजी टंडन से मिलीं. साथ ही उन्होंने ई-टेंडरिंग मामले में मिश्रा की छवि को खराब करने का आरोप लगाया. अरसे बाद यह पहला मौका है, जब उमा भारती इस तरह से सक्रिय हैं.गौरतलब हो उमा भारती की अगुवाई में भाजपा ने वर्ष 2003 में राज्य की सत्ता प्राप्त हुई थी. लेकिन तिरंगा प्रकरण के कारण पद से इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद से वह राज्य की राजनीति से किनारे होती गईं.समय बाद भारतीय जनशक्ति पार्टी भी बनाई, मगर दोबारा भाजपा में लौट आईं थी. उत्तर प्रदेश के चरखारी से विधायक और झांसी से सांसद रहीं उमा की मध्य प्रदेश में ही राजनीति करने की इच्छाएं हिलोरें मारती रही हैं.
उल्लेखनीय हो की पिछला चुनाव में उन्होंने अपने को गंगा नदी के प्रति समर्पित करने की बात कहते हुए नहीं लड़ा था.

राजनीति में दखल को बनाए रखने पर जोर!

हालांकि वह राजनीति से दूर रहने की बात कहती है. लेकिन अंतर्मन से मध्यप्रदेश की सियासत में वापसी चाहती है. उमा भारती के करीबी भी कहते हैं कि वह राज्य की राजनीति में अपने दखल को बनाए रखना चाहती हैं. मौजूदा हालात उनके अनुकूल हैं.बहरहाल राज्य में वर्तमान स्थिति पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात तो साफ नजर आती है कि शिवराज सिंह चौहान के अलावा एक भी ऐसा नेता नहीं, जिसके नाम पर सभी एक हो जाएं. वस्तुत: देखा जाए तो पार्टी हाईकमान चौहान को राज्य की राजनीति से दूर रखना चाहता है, इसीलिए उन्हें सदस्यता अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी बनाया गया है. इस स्थिति में उमा भारती को लगता है कि पार्टी में आ रही रिक्तता को भरने में वह सफल हो सकती हैं. यही कारण है कि वह राज्य की राजनीति में सक्रिय हो चली हैं.

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Last Updated : Aug 6, 2019, 3:24 PM IST
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