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Bhopal Cyber Police: थानों में नॉन एक्सपर्ट के पास साइबर की जिम्मेदारी, रुटीन वर्क के साथ करते हैं मामलों की जांच

MP में साइबर जांच के नाम पर अजब गजब खेल चल रहा है, जिसके चलते हर थाने में साइबर एक्सपर्ट के रूप में बीट अधिकारी की नियुक्ति कर दी गई है, लेकिन मजेदार बात ये है कि इन अधिकारियों को साइबर क्राइम और इंटरनेट की कोई विशेषज्ञता नहीं दी गई है. थाने के रूटीन काम देखने वाले को साइबर क्राइम की बीट थमा दी गई, जिसका नतीजा यह है कि कुल शिकायतों में से महज 10 फीसदी में ही जांच पूरी हो पाती है.

Bhopal Cyber Police
साइबर जांच के नाम पर अजब गजब खेल
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Published : Jul 18, 2023, 7:10 AM IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में यदि सबसे अधिक साइबर ठगी के मामले आते हैं तो वो है भोपाल.. लेेकिन इसके विपरीत यदि इनकी जांच की बात की जाए तो थानों में साइबर सेल के नाम पर खानापूर्ति है, जिन पुलिसकर्मियों को साइबर की जिम्मेदारी दी गई है, वे रुटीन काम में उलझे रहते हैं. यदि बीते एक साल की बात करें तो करीब 1600 शिकायतें सिर्फ भोपाल जिले में आई हैं, लेकिन इनमें से महज 47 मामलों में ही पुलिस कोई कार्रवाई कर पाई है. जिन मामलों की बात यहां हो रही है, वे सभी एक लाख रुपए से कम ठगी वाले हैं.

बड़ी बात यह है कि थानों में दर्ज होने वाले इन तमाम साइबर क्राइम के मामलों की निगरानी का जिम्मा डीसीपी रैंक के अफसर के पास है, लेकिन इन मामलों में कार्रवाई नहीं हो रही है और तर्क दिया जा रहा है कि वारदात करने वाले दूसरे राज्य या दूसरे देश के हैं. ऐसे में इन्हें पकड़ना मुश्किल है, लेकिन असल समस्या दूसरी है. दरअसल थाने में साइबर क्राइम के लिए अलग से टीम ही नहीं है, यही वजह है कि बीते एक साल में सिर्फ भोपाल के भीतर 5 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी होने के बाद भी 47 केस में कोई कार्रवाई हो सकी है.

दूसरे कामों में उलछी रहती है टीम: ऐसा नहीं है कि साइबर के लिए टीम नहीं दी गई. अभी भोपाल में 10 एसआई साइबर क्राइम टीम को दिए गए हैं, वहीं हर थाने में एक एसआई को साइबर क्राइम को पकड़ने की ट्रेनिंग दी गई. इनके अलावा करीब 110 सिपाही ऐसे हैं, जिन्हें साइबर गुर सिखाएं हैं, लेकिन इन्हें दूसरे काम में लगाकर रखा जाता है, जबकि इन्हें काम करने के लिए हाइटेक लैपटॉप, जरूरी सॉफ्टवेयर्स यूनिट भी दी गई है. इस मामले में भोपाल कमिश्नर ऑफ पुलिस हरिनारायण चारी मिश्र का कहना है कि "साइबर क्राइम से निपटने के लिए लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है."

दूसरे राज्य तक टीम नहीं जा पाती: सायबर क्राइम की निगरानी करने वाले कुछ अफसरों ने बताया कि "करीब 90 फीसदी मामले दूसरे राज्य और 5 फीसदी मामले दूसरे देश के हैं, इन्हें पकड़ने के लिए लंबा समय देना होता है और फोर्स की कमी के कारण इंवेस्टिगेशन हो नहीं पाता. अब यदि संसाधानों की बात करें तो सरकारी नियम के हिसाब से प्राइवेट व्हीकल नहीं मिलेगी और ट्रेन या बस से जा सकते हैं, जब तक हम कहीं पहुचेंगे तो अपराधी दूसरी जगह चला जाता है. ऐसे में उस तक पहुंचना मुश्किल होता है."

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स्पेशल ट्रेनिंग कराई जाएगी साइबर टीम की: भोपाल साइबर क्राइम पुलिस को ट्रेंड करने के लिए दिल्ली से मशहूर साइबर एक्सपर्ट्स को हायर किए जाने की तैयारी है, पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्रा ने बताया कि "बातचीत चल रही है, इस ट्रेनिंग में साइबर लैब का इस्तेमाल और नए साइबर क्राइम से कैसे निपटे पर फोकस किया जाएगा जिससे केसेज का खुलासा तेजी से हो सके."

भोपाल। मध्यप्रदेश में यदि सबसे अधिक साइबर ठगी के मामले आते हैं तो वो है भोपाल.. लेेकिन इसके विपरीत यदि इनकी जांच की बात की जाए तो थानों में साइबर सेल के नाम पर खानापूर्ति है, जिन पुलिसकर्मियों को साइबर की जिम्मेदारी दी गई है, वे रुटीन काम में उलझे रहते हैं. यदि बीते एक साल की बात करें तो करीब 1600 शिकायतें सिर्फ भोपाल जिले में आई हैं, लेकिन इनमें से महज 47 मामलों में ही पुलिस कोई कार्रवाई कर पाई है. जिन मामलों की बात यहां हो रही है, वे सभी एक लाख रुपए से कम ठगी वाले हैं.

बड़ी बात यह है कि थानों में दर्ज होने वाले इन तमाम साइबर क्राइम के मामलों की निगरानी का जिम्मा डीसीपी रैंक के अफसर के पास है, लेकिन इन मामलों में कार्रवाई नहीं हो रही है और तर्क दिया जा रहा है कि वारदात करने वाले दूसरे राज्य या दूसरे देश के हैं. ऐसे में इन्हें पकड़ना मुश्किल है, लेकिन असल समस्या दूसरी है. दरअसल थाने में साइबर क्राइम के लिए अलग से टीम ही नहीं है, यही वजह है कि बीते एक साल में सिर्फ भोपाल के भीतर 5 करोड़ रुपए से अधिक की ठगी होने के बाद भी 47 केस में कोई कार्रवाई हो सकी है.

दूसरे कामों में उलछी रहती है टीम: ऐसा नहीं है कि साइबर के लिए टीम नहीं दी गई. अभी भोपाल में 10 एसआई साइबर क्राइम टीम को दिए गए हैं, वहीं हर थाने में एक एसआई को साइबर क्राइम को पकड़ने की ट्रेनिंग दी गई. इनके अलावा करीब 110 सिपाही ऐसे हैं, जिन्हें साइबर गुर सिखाएं हैं, लेकिन इन्हें दूसरे काम में लगाकर रखा जाता है, जबकि इन्हें काम करने के लिए हाइटेक लैपटॉप, जरूरी सॉफ्टवेयर्स यूनिट भी दी गई है. इस मामले में भोपाल कमिश्नर ऑफ पुलिस हरिनारायण चारी मिश्र का कहना है कि "साइबर क्राइम से निपटने के लिए लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है."

दूसरे राज्य तक टीम नहीं जा पाती: सायबर क्राइम की निगरानी करने वाले कुछ अफसरों ने बताया कि "करीब 90 फीसदी मामले दूसरे राज्य और 5 फीसदी मामले दूसरे देश के हैं, इन्हें पकड़ने के लिए लंबा समय देना होता है और फोर्स की कमी के कारण इंवेस्टिगेशन हो नहीं पाता. अब यदि संसाधानों की बात करें तो सरकारी नियम के हिसाब से प्राइवेट व्हीकल नहीं मिलेगी और ट्रेन या बस से जा सकते हैं, जब तक हम कहीं पहुचेंगे तो अपराधी दूसरी जगह चला जाता है. ऐसे में उस तक पहुंचना मुश्किल होता है."

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