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बाघों के अस्तित्व पर संकट के बादल, पांच साल में 138 टाइगर की मौत

टाइगर स्टेट कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में बाघों को लेकर सरकारें कई तरह के जतन करती रही है, लेकिन उस स्तर पर अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है. इसे वन विभाग की लापरवाही कहें या फिर सरकार का काम न करना. आंकड़ों के मुताबिक, शिवराज सरकार में जनवरी से लेकर जून तक 25 बाघों की मौत हो गई है. यही हाल 2019 में 15 महीने की कमलनाथ सरकार का रहा.

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Published : Nov 1, 2021, 9:47 PM IST

Updated : Nov 11, 2021, 11:54 AM IST

भोपाल। सतना में करंट लगने से टाइगर की हुई मौत ने एक बार फिर बाघों पर संकट खड़ा कर दिया है. टाइगर स्टेट (Tiger State MP) कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में बाघों को लेकर सरकारें कई तरह के जतन करती रही है, लेकिन उस स्तर पर अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है. इसे वन विभाग की लापरवाही कहें या फिर सरकार का काम न करना. आंकड़ों के मुताबिक, शिवराज सरकार (Shivraj Government) में जनवरी से लेकर जून तक 25 बाघों की मौत हो गई है. यही हाल 2019 में 15 महीने की कमलनाथ सरकार (Kamalnath Government) का रहा. पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो करंट और आपसी संघर्ष में अधिक बाघ मारे गए हैं.

2019 में एमपी को मिला टाइगर स्टेट का दर्जा
साल 2019 में मध्य प्रदेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने टाइगर स्टेट का दर्जा दिया था. इसका क्रेडिट कमलनाथ सरकार ने लेते हुए खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन दर्जा मिलने के तुरंत बाद ही तीन बाघों की मौत हो गई. जिसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस सरकार तरह-तरह के आरोप लगाये, लेकिन अब शिवराज सरकार में भी बाघों का वही हाल है. बाघ सुरक्षित नहीं है. अब एक बार फिर बाघों के अस्तित्व पर संकट खड़ा होता नजर आ रहा है.

पांच सालों में 138 बाघों की मौत
बाघ प्रदेश की शान हैं लेकिन इनकी जान मुश्किल में है. इनकी आबादी बढ़ने से इनके लिए जंगल छोटा पड़ने लगा और जंगल से बाहर निकलते ही ये शिकारियों के जाल में फंस रहे हैं. पांच सालों में प्रदेश में 138 बाघों की मौत हुई है, जिसमें करंट से 15 बाघों की मौत हुई है, जबकि आपसी संघर्ष में 22 बाघ मारे गए हैं. शिकारियों के फंदे में फंसने से चार बाघों की मौत हुई है. जहरखुरानी से सात बाघ मरे हैं. बीमारी से छह बाघों की मौत हुई है. शेष की मौत को प्राकृतिक माना गया.

पांच सालों में बाघों की मौत की स्थिति

वर्षसंख्या
2016 30
2017 24
2018 28
2019 27
2020 29

बाघों की मौत होने की मुख्य वजह

बिजली का करंट: जंगलों में विद्युत लाइन खुली होने से शिकारी वन्य प्राणियों के लिए करंट का जाल बिछाते हैं. जिसमें फंसकर बाघ मौत का शिकार हो रहे हैं. प्रस्ताव: पार्क क्षेत्र में ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए इंसुलेटेड तार लगाने की योजना प्रस्तावित है. वर्ष 2012 में यह योजना बनाई गई है.

आपसी लड़ाई: आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल कम पड़ने लगे हैं. जिससे उनमें संघर्ष भी बढ़ा है. इसके लिए प्रबंधन और सरकार के पास कोई ठोस विकल्प नहीं है.

वन विभाग की लापरवाही से शिकारियों का निवाला बना टाइगर हीरा

ताजा मामला सतना से सामने आया, जहां सिंहपुर रेंज की अमदरी बीट में टाइगर बाघ पी-234 हीरा की करंट लगने से मौत हो गई. मौत के बाद शिकारी ने बाघ की खाल उतार ली और शरीर को तालाब में डाल दिया. बताया जा रहा है कि टाइगर पी-234 जुलाई में गायब हुआ था. तब से वन विभाग ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया और जब मौत हो गई तो घटनास्थल पर पहुंचा. कहते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में हीरा और पन्ना नाम के दो टाइगरों की बहुत फेमस जोड़ी थी, जो अब टूट चुकी है.

भोपाल। सतना में करंट लगने से टाइगर की हुई मौत ने एक बार फिर बाघों पर संकट खड़ा कर दिया है. टाइगर स्टेट (Tiger State MP) कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में बाघों को लेकर सरकारें कई तरह के जतन करती रही है, लेकिन उस स्तर पर अभी तक कामयाबी हासिल नहीं हुई है. इसे वन विभाग की लापरवाही कहें या फिर सरकार का काम न करना. आंकड़ों के मुताबिक, शिवराज सरकार (Shivraj Government) में जनवरी से लेकर जून तक 25 बाघों की मौत हो गई है. यही हाल 2019 में 15 महीने की कमलनाथ सरकार (Kamalnath Government) का रहा. पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो करंट और आपसी संघर्ष में अधिक बाघ मारे गए हैं.

2019 में एमपी को मिला टाइगर स्टेट का दर्जा
साल 2019 में मध्य प्रदेश को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने टाइगर स्टेट का दर्जा दिया था. इसका क्रेडिट कमलनाथ सरकार ने लेते हुए खूब प्रचार-प्रसार किया, लेकिन दर्जा मिलने के तुरंत बाद ही तीन बाघों की मौत हो गई. जिसे लेकर भाजपा ने कांग्रेस सरकार तरह-तरह के आरोप लगाये, लेकिन अब शिवराज सरकार में भी बाघों का वही हाल है. बाघ सुरक्षित नहीं है. अब एक बार फिर बाघों के अस्तित्व पर संकट खड़ा होता नजर आ रहा है.

पांच सालों में 138 बाघों की मौत
बाघ प्रदेश की शान हैं लेकिन इनकी जान मुश्किल में है. इनकी आबादी बढ़ने से इनके लिए जंगल छोटा पड़ने लगा और जंगल से बाहर निकलते ही ये शिकारियों के जाल में फंस रहे हैं. पांच सालों में प्रदेश में 138 बाघों की मौत हुई है, जिसमें करंट से 15 बाघों की मौत हुई है, जबकि आपसी संघर्ष में 22 बाघ मारे गए हैं. शिकारियों के फंदे में फंसने से चार बाघों की मौत हुई है. जहरखुरानी से सात बाघ मरे हैं. बीमारी से छह बाघों की मौत हुई है. शेष की मौत को प्राकृतिक माना गया.

पांच सालों में बाघों की मौत की स्थिति

वर्षसंख्या
2016 30
2017 24
2018 28
2019 27
2020 29

बाघों की मौत होने की मुख्य वजह

बिजली का करंट: जंगलों में विद्युत लाइन खुली होने से शिकारी वन्य प्राणियों के लिए करंट का जाल बिछाते हैं. जिसमें फंसकर बाघ मौत का शिकार हो रहे हैं. प्रस्ताव: पार्क क्षेत्र में ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए इंसुलेटेड तार लगाने की योजना प्रस्तावित है. वर्ष 2012 में यह योजना बनाई गई है.

आपसी लड़ाई: आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल कम पड़ने लगे हैं. जिससे उनमें संघर्ष भी बढ़ा है. इसके लिए प्रबंधन और सरकार के पास कोई ठोस विकल्प नहीं है.

वन विभाग की लापरवाही से शिकारियों का निवाला बना टाइगर हीरा

ताजा मामला सतना से सामने आया, जहां सिंहपुर रेंज की अमदरी बीट में टाइगर बाघ पी-234 हीरा की करंट लगने से मौत हो गई. मौत के बाद शिकारी ने बाघ की खाल उतार ली और शरीर को तालाब में डाल दिया. बताया जा रहा है कि टाइगर पी-234 जुलाई में गायब हुआ था. तब से वन विभाग ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया और जब मौत हो गई तो घटनास्थल पर पहुंचा. कहते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में हीरा और पन्ना नाम के दो टाइगरों की बहुत फेमस जोड़ी थी, जो अब टूट चुकी है.

Last Updated : Nov 11, 2021, 11:54 AM IST
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