भोपाल। किसकी कल्पना थी कि मध्यप्रदेश देश का सबसे बड़ा हिंदी भाषी राज्य बनें. मध्यप्रदेश का वो कौन सा मुख्यमंत्री है, जिनके गिरेबान को पकड़ कर वोटर ने पूछा था, पहले सड़क के नाम पर डाले गए इन अलंगों का जवाब दो. फिर मांगना वोट. नंबरों में बसे भोपाल की कहानी क्या है और कौन था वो चीफ इंजनीयर जिसकी बदौलत राजधानी चुने जाने के बाद एक व्यवस्थित शहर की शक्ल ले पाया. 67 साल बाद क्या उस मंजिल तक पहुंच पाया. मध्यप्रदेश ने जिस मकसद से कदम बढ़ाया था. ईटीवी भारत पर सुनिए उन्हें जो एक नवम्बर 1956 को वजूद में आए मध्यप्रदेश के गठन के गवाह रहे हैं. 67 साल की यात्रा में कहां कितना बदलाव आया क्या ये बदलाव मध्यप्रदेश को हौले हौले बढ़ते देखने वालों को रास आया. तरक्की की कीमत पर क्या खो दिया इस सूबे ने और वो कौन सी खूबी जो 67 साल में इस प्रदेश की कमाई है. (Which CM collar caught in mp) (mp foundation day on 1st november)
काटजू कांग्रेस और अलंगों का किस्सा: बीजेपी के वरिष्ठ नेता मेघराज जैन उसी दौर से ताल्लुक रखते हैं, जब मध्यप्रदेश गठन की नींव रखी जा रही थी. उन्होंने उस दौर की राजनीति के साथ कांग्रेस के चुनाव को नज़दीक से देखा है. मेघराज जैन संघ के प्रचारक से जनसंघ की जड़े जमाने गांव गाले व में पार्टी का प्रचार करने जाया करते थे. मेघराज जैन उसी दौर का एक दिलचस्प किस्सा सुनाते हैं. वे कहते हैं उस दौर में कांग्रेस बड़ी रणनीति के साथ चुनाव लड़ती थी. चुनाव नज़दीक आए और सड़कों पर अड़ंगे डल जाते थे. खम्बे खड़े हो जाते थे. मतदान हो जाने के बाद ना खंबों में लाइट आती थी. ना अलंगों से सडक बनती थी. बस जनता के बीच ये माहौल बना दिया जाता था कि सरकार सड़क बनाने वाली है. जैन आगे जोड़ते हैं मुझे याद है 1957 के बाद 1962 में फिर चुनाव हुए थे. कैलाश नाथ काटजू जावरा इलाके से चुनाव ल़ड़े. वे बताते हैं कि चूंकि मैं भी उसी इलाके का हूं और वहां जनसंघ का प्रचार भी कर रहा था, इसलिए मध्यप्रदेश गठन के बाद की इस राजनीतिक घटना का गवाह हूं. हुआ ये था कि जावरा में प्रचार के लिए पहुंचे थे काटजू और अलंगे डले हुए थे. मेरे सामने वहां एक वोटर ने मुख्यमंत्री जी की कमीज़ पकड़ी और कहा पहले इन अलंगों की आवाज सुनों. फिर तुम्हारा भाषण सुनेंगे. मेघराज जैन बताते हैं कैसे उस समय नारों में एक दूसरे शह और मात दी जाती थी. मेघराज जैन कहते हैं कांग्रेस की सरकारों के दौर में शहर भले बढ़े हों गांव की स्थिति नहीं बदली लेकिन अब तसल्ली होती है कि एमपी के गांव भी विकास की रफ्तार पकड़ रहे हैं.
MP Foundation Day: मध्यप्रदेश के दिल में भोपाल, इस वजह से इंदौर नहीं बन पाई MP की राजधानी
भोपाल को नंबरों में बसाने वाले कौन थे मेजर मिर्जा: मध्यप्रदेश के गठन से लेकर भोपाल के राजधानी बनने का हर हिस्सा देवी सरन की ज़ुबान पर है. नवाबी दौर से उर्दू के जानकार और भोपाल के इतिहास के हर पन्ने से वाकिफ देवी सरन बताते हैं कि भोपाल को राजधानी बनने का रुतबा कैसे हासिल हुआ. देवी सरन बताते हैं भोपाल में मैदान बहुत थे, जिन पर 45 बंगले 74 बंगले टीटी नगर ये सब बसाहट की गई. जो ये भोपाल नंबरों में बसा हुआ है. ये उस दौर के चीफ इंजीनियर मेजर मिर्जा फहीम बेग की बदौलत ये उनकी काबिलयत थी कि उन्होंने उस वक्त बहुत तरतीब से भोपाल को बसा दिया. देवी सरन उन लोगों में से हैं जिन्होने मिंटो हॉल में पढ़ाई की है. और इस बात से बेहद नाराज़ थे कि मिंटो हॉल में अब विधानसभा लगने जा रही है. क्या मध्यप्रदेश की तरक्की से संतुष्ट हैं आप. इस सवाल पर देवी सरन कहते हैं शिक्षा के क्षेत्र में तो मुझे खुशी है कि तरक्की हुई. लेकिन प्रदेश का ज्योग्राफी बिगड़ा है, जिसे बाद में किसी तरह से संभाला गया. दूसरी बात ये कि तेजी से बढ़ते इंडस्ट्रीलाइज़ेशन ने मध्यप्रदेश की हरित क्रांति यहां के खेत यहां की उर्वरा मिट्टी यानि जो कुछ नैसर्गिक था छीन लिया. यहां मुझे अफसोस होता है.
क्यों टूटा देश का सबसे बड़ा हिंदी प्रदेश: लेखक और छायाकार जगदीश कौशल बताते हैं पंडित रविशंकर शुक्ल ने मध्यप्रदेश के गठन के सारे प्रयास ही इस मकसद से किये थे कि देश में एक हिंदी भाषी राज्य बन सके. लेकिन जिस कल्पना के साथ मध्यप्रदेश का गठन किया गया वो पूरा नहीं हो पाया. बल्कि टुकड़ों को जोड़कर बनाए गए मध्यप्रदेश में फिर दरारें दिखाई दीं. छत्तीसगढ तो अलग हो ही चुका. अब जब सुनाई देता है कि अलग विंध्य प्रदेश की मांग उठ रही है. अलग बुंदेलखंड की मांग उठ रही है तो मन और टूट जाता है. (Which CM collar caught in mp) (mp foundation day on 1st november) (67th foundation day of madhya pradesh)