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Bhopal Gas Tragedy: सरकारों के दावे फेल, आज 38 साल बाद भी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं रहवासी - भोपाल गैस कांड पीड़ित

भोपाल गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) के 38 साल बाद भी यहां के पीड़ित, दूषित पानी पीने को मजबूर हैं, इस पानी के चलते इनको कई गंभीर बीमारियों ने घेर रखा है. जबकि इनकी आगे की पीढ़ी हुई केमिकल युक्त पानी पीने से कई बीमारियों और विकलांगता के शिकार हो रही है, इन्हें आज भी शुद्ध पानी की दरकार है.

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Published : Dec 2, 2022, 6:56 AM IST

Updated : Dec 2, 2022, 7:26 AM IST

भोपाल। 2 और 3 दिसंबर की उस काली रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड से निकली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया, इस गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) में लाखों लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए. लेकिन आज भी इन गैस पीड़ित बस्तियों में पहुंचने पर ऐसा लगता है कि मानो यह कल की ही बात हो, गैस कांड के 38 साल बाद भी यहां की आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. दरअसल यूनियन कार्बाईड में फैला करीब 346 टन जहरीला कचरा नष्ट नहीं हो पाया, जिस कारण यहा कि 20 नई बस्तियों में भूजल के दूषित होने का खतरा बरकरार है. इस पानी को यहां के रहवासी पीने को भी मजबूर हैं, जिस कारण उनको कई गंभीर बीमारियों ने घेर रखा है.

38 साल बाद भी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं भोपाल गैस कांड पीड़ित

जहरीला पानी पीने को मजबूर रहवासी: सुल्ताना बी बताती हैं कि, उनके घर में नर्मदा का पानी तो आता है, लेकिन कई बार पानी नहीं आने से आस-पास लगी बोरिंग या हैंडपंप से पानी उपयोग करती हैं. इस वजह से जहरीला रसायन युक्त पानी पीने को वह मजबूर हैं, इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने घेर लिया है. उनके शरीर में खुजली होती है और त्वचा पर कई तरह के दाग उभर आए हैं.

Bhopal Gas Tragedy जख्म अभी भरे नहीं! 38 साल 38 सवाल, कौन देगा जबाव

सरकार के दावे फेल: इस बस्ती में पहुंचने के बाद यह कहानी हर घर की नजर आती है. रशीदा बताती हैं कि, उनके तीन बच्चे हैं, जिसमें से दो बच्चे जब पैदा हुए तब शुरू से ही उन्हें कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई. इसमें मानसिक रूप से लेकर शारीरिक अक्षमता में शामिल हैं, उनका कहना है कि यह आज भी इस दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. एक ओर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन दूसरी ओर इस दूषित पानी को पीने से उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने जकड़ रखा है.

bhopal gas tragedy still victims suffering for pure drinking water
जहरीला पानी पीने को मजबूर रहवासी

पीड़ितों का नहीं हो रहा पंजीयन: जेपी नगर में रहने वाली मुमताज कहती हैं कि, जहरीली गैस से मिली बीमारी के एवज में महज 25 हजार रुपये का मुआवजा उन्हें मिला है. उनका आरोप है कि गैस प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को जहरीला और दूषित पानी पीने को मिल रहा है. यही कारण है कि गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंखों की बीमारी और कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. गैस पीड़ितों की मौत हो रही है, मगर राहत देने के लिए उनका पंजीयन नहीं किया जा रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे जांच के निर्देश: गैस कांड के कई साल बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इन बस्तियों में पीने की पानी की जांच के निर्देश दिए गए थे, जिसमें भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान लखनऊ की टीम भोपाल आई थी और उसने यहां की कई बस्ती से पानी के नमूने एकत्रित किए थे. नमूने की पैकिंग कर उन्हें जांच के लिए लखनऊ में चेन्नई भेज दिया गया था, जिसके बाद इस पानी में कई केमिकल और प्रदूषित होने की बात सामने आई थी. इसके बाद नर्मदा के माध्यम से नगर निगम इन बस्तियों में पानी की पाइप लाइन बिछा चुका है, लेकिन बावजूद इसके पानी नहीं आने और पाइप लाइन खराब होने के कारण इन गैस पीड़ित बस्तियों के रहवासियों को आसपास लगी बोरिंग आदि से ही पानी भरना पड़ता है. जिस कारण यह सभी अभी भी दूषित पानी पीने को मजबूर है.

38 years of bhopal gas tragedy
गैस कांड पीड़ितों को नहीं मिल रहा पीने का पानी

आपको बता दें कि यूनियन कार्बाइड कारखाने (Union Carbide Factory) में 346 टन जहरीला कटरा मौजूद था, जिसमें से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इंदौर के पीतमपुर में 10 टन कचरे का निष्पादन प्रयोग के तौर पर किया गया था और आज भी कई टन कचरा फैक्ट्री में लगे शेड में ही मौजूद है.

Bhopal Gas Tragedy 38 Years: चंद लम्हों में लग गया था लाशों का ढेर, आज भी हरे हैं उस स्याह रात के जख्म

गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए संगठन कर रहा अच्छा काम: गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठन की रचना ढींगरा बताती हैं कि, इन बस्तियों में कई बच्चे जन्मजात विकृतियों के शिकार हैं. इन बच्चों का यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है. इन बच्चों को पुनर्वास केंद्र लाने और छोड़ने के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क मध्यान्ह भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है. (38 years of bhopal gas tragedy)

Bhopal Gas Tragedy
भोपाल गैस कांड पीड़ितों को नहीं मिल रहा शुद्ध पानी

भोपाल। 2 और 3 दिसंबर की उस काली रात भोपाल की यूनियन कार्बाइड से निकली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया, इस गैस कांड (Bhopal Gas Tragedy) में लाखों लोग गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए. लेकिन आज भी इन गैस पीड़ित बस्तियों में पहुंचने पर ऐसा लगता है कि मानो यह कल की ही बात हो, गैस कांड के 38 साल बाद भी यहां की आबादी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. दरअसल यूनियन कार्बाईड में फैला करीब 346 टन जहरीला कचरा नष्ट नहीं हो पाया, जिस कारण यहा कि 20 नई बस्तियों में भूजल के दूषित होने का खतरा बरकरार है. इस पानी को यहां के रहवासी पीने को भी मजबूर हैं, जिस कारण उनको कई गंभीर बीमारियों ने घेर रखा है.

38 साल बाद भी दूषित पानी पीने को मजबूर हैं भोपाल गैस कांड पीड़ित

जहरीला पानी पीने को मजबूर रहवासी: सुल्ताना बी बताती हैं कि, उनके घर में नर्मदा का पानी तो आता है, लेकिन कई बार पानी नहीं आने से आस-पास लगी बोरिंग या हैंडपंप से पानी उपयोग करती हैं. इस वजह से जहरीला रसायन युक्त पानी पीने को वह मजबूर हैं, इससे उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने घेर लिया है. उनके शरीर में खुजली होती है और त्वचा पर कई तरह के दाग उभर आए हैं.

Bhopal Gas Tragedy जख्म अभी भरे नहीं! 38 साल 38 सवाल, कौन देगा जबाव

सरकार के दावे फेल: इस बस्ती में पहुंचने के बाद यह कहानी हर घर की नजर आती है. रशीदा बताती हैं कि, उनके तीन बच्चे हैं, जिसमें से दो बच्चे जब पैदा हुए तब शुरू से ही उन्हें कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई. इसमें मानसिक रूप से लेकर शारीरिक अक्षमता में शामिल हैं, उनका कहना है कि यह आज भी इस दूषित पानी को पीने के लिए मजबूर हैं. एक ओर सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन दूसरी ओर इस दूषित पानी को पीने से उन्हें कई गंभीर बीमारियों ने जकड़ रखा है.

bhopal gas tragedy still victims suffering for pure drinking water
जहरीला पानी पीने को मजबूर रहवासी

पीड़ितों का नहीं हो रहा पंजीयन: जेपी नगर में रहने वाली मुमताज कहती हैं कि, जहरीली गैस से मिली बीमारी के एवज में महज 25 हजार रुपये का मुआवजा उन्हें मिला है. उनका आरोप है कि गैस प्रभावित क्षेत्रों के निवासियों को जहरीला और दूषित पानी पीने को मिल रहा है. यही कारण है कि गुर्दे, फेफड़े, दिल, आंखों की बीमारी और कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. गैस पीड़ितों की मौत हो रही है, मगर राहत देने के लिए उनका पंजीयन नहीं किया जा रहा है.

Bhopal Gas Tragedy के 38 बरस, कैसे अब भी मिक गैस की लैब बना है भोपाल, कब खत्म होगी ये त्रासदी

सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे जांच के निर्देश: गैस कांड के कई साल बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में इन बस्तियों में पीने की पानी की जांच के निर्देश दिए गए थे, जिसमें भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान लखनऊ की टीम भोपाल आई थी और उसने यहां की कई बस्ती से पानी के नमूने एकत्रित किए थे. नमूने की पैकिंग कर उन्हें जांच के लिए लखनऊ में चेन्नई भेज दिया गया था, जिसके बाद इस पानी में कई केमिकल और प्रदूषित होने की बात सामने आई थी. इसके बाद नर्मदा के माध्यम से नगर निगम इन बस्तियों में पानी की पाइप लाइन बिछा चुका है, लेकिन बावजूद इसके पानी नहीं आने और पाइप लाइन खराब होने के कारण इन गैस पीड़ित बस्तियों के रहवासियों को आसपास लगी बोरिंग आदि से ही पानी भरना पड़ता है. जिस कारण यह सभी अभी भी दूषित पानी पीने को मजबूर है.

38 years of bhopal gas tragedy
गैस कांड पीड़ितों को नहीं मिल रहा पीने का पानी

आपको बता दें कि यूनियन कार्बाइड कारखाने (Union Carbide Factory) में 346 टन जहरीला कटरा मौजूद था, जिसमें से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर इंदौर के पीतमपुर में 10 टन कचरे का निष्पादन प्रयोग के तौर पर किया गया था और आज भी कई टन कचरा फैक्ट्री में लगे शेड में ही मौजूद है.

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गैस त्रासदी पीड़ितों के लिए संगठन कर रहा अच्छा काम: गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाले संगठन की रचना ढींगरा बताती हैं कि, इन बस्तियों में कई बच्चे जन्मजात विकृतियों के शिकार हैं. इन बच्चों का यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है. इन बच्चों को पुनर्वास केंद्र लाने और छोड़ने के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क मध्यान्ह भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है. (38 years of bhopal gas tragedy)

Bhopal Gas Tragedy
भोपाल गैस कांड पीड़ितों को नहीं मिल रहा शुद्ध पानी
Last Updated : Dec 2, 2022, 7:26 AM IST
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