भिंड। जल्द ही मकर संक्रांति पर्व आने वाला है, अभी से बाजारों में पतंग की दुकाने सज गई हैं, हलवाइयों की दुकानों में तिल की मिठाइयां बन रहीं है. लोग पूजा पाठ की तैयारी में जुटे हैं और 15 जनवरी का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह त्योहार हमेशा जनवरी में ही क्यों मनाया जाता है या इसका नाम मकर संक्रांति ही क्यों रखा गया, तो पढ़िए यह खबर..
भारत देश अपनी परंपराओं, मान्यताओं और त्योहारों के लिए जाना जाता है. ऐसा कोई महीना नहीं होता जब हिंदू मान्यताओं के अनुसार कोई त्योहार या खास दिन ना हो, तिथि रीत के चलते हिंदू धर्म में हर दिन का एक ख़ास मतलब होता है, जैसे 15 जनवरी को ही ले लें तो इस दिन मकर संक्रांति पर्व है, पूरे देश में लोग हर्षोल्लास से यह पर्व मनाते हैं, तिल के लड्डू हो या पतंगबाज़ी के मुक़ाबले इस दिन को अपनी मान्यताओं के चलते खास बनाते हैं, लेकिन कभी आपके ज़हन में भी यह बात तो जरूर आयी होगी कि इस त्योहार का ऐसा नाम क्यों पड़ा. अगर जानना चाहते हैं तो इस लेख को जरूर पढ़िए..
दो दिनों में से एक दिन मनाया जाता है पर्व: मकर संक्रांति भारत देश में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है. मूल रूप से यह हिंदू त्योहार है फिर भी अलग अलग क्षेत्रों में लोग इस अपनी मान्यताओं के अनुसार मनाते हैं, कहीं यह लोहड़ी के रूप में तो कहीं पोंगल या कही खिचड़ी के रूप में मनाया जाता है. हर साल यह त्योहार जनवरी के महीने में मनाया जाता है चूंकि हिंदू त्योहार हमेशा तिथि, पंचांग और ग्रहों की दशाओं के अनुसार मनाये जाते हैं. ऐसे में मकर संक्रांति भी हमेशा 14 या 15 जनवरी को ही मनाई जाती है. इस साल भी भारत में 15 जनवरी को यह पर्व मनाया जाएगा.
जनवरी में ही क्यों आती है मकर संक्रांति: अब भी आपके ज़हन में सवाल वही होगा कि जनवरी में ही क्यों तो आपको बता दें की ज्योतिषविदों के मुताबिक मकर संक्रांति पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार शिशिर ऋतु के पौष महीने में मनाया जाता है, क्योंकि यह वह दिन होता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. पंचांग के अनुसार ज्यादातर यह दिन 14 जनवरी होता है लेकिन जैसा कि आपको पता है हिंदू त्योहार तिथि अनुसार मनाये जाते हैं. ऐसे में तिथि आगे पीछे होने से कई बार 14 या 15 जनवरी को भी मकर संक्रांति पर्व पड़ जाता है. ज्यादातर हिंदू शास्त्रों में इसका विशेष महत्व माना गया है. मकर संक्रांति के बाद सूर्य का तेज बढ़ने लगता है और दिन बड़े होने लगते हैं जिसके चलते शिशिर जिसे शीत ऋतु भी कहा जाता है दिन ब दिन थमने लगती है.
त्योहार का क्यों पड़ा यह नाम: अब आप सोच रहे होंगे की मकर संक्रांति त्योहार का यह नाम क्यों पड़ा तो आपको बता दें हिंदू मान्यताओं के अनुसार पौराणिक मान्यताएं हैं कि शनिदेव और उनके पिता यानी सूर्य देव के बीच हमेशा विचारों के मतभेद बने रहते है, लेकिन बावजूद इसके जब पौष के माह में शनि मकर राशि में होते हैं और अपने पुत्र से प्रेम और स्नेह से मिलने सूर्य का भी प्रवेश मकर राशि में होता है उसी शुभ क्षणों को मकर संक्रांति कहा गया है.
(इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक मान्यताओं और जानकारी के आधार पर है, ETV Bharat इसके पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता है.)