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लॉकडाउन में कुम्हारों की कमाई फुलडाउन, 'देसी फ्रीज' से भरे घर, जेब में नहीं चवन्नी - lockdown in bhind

गर्मी शुरू होते ही मटकों की मांग बढ़ जाती है, पर लॉकडाउन की वजह से कुम्हारों की कमाई पूरी तरह लॉक हो गई है और उनके घर पूरी तरह मटकों से ही भर गए हैं क्योंकि गर्मी से पहले कुम्हार मटके तैयार कर स्टाक में रखते हैं, ऐसे में भले ही मटकों से उनके घर भरे हैं, पर जेब में चवन्नी नहीं है. देखिए ग्राउंड रिपोर्ट.

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कमाई फुलडाउन
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Published : Apr 22, 2020, 8:04 PM IST

Updated : Apr 23, 2020, 9:16 AM IST

भिंड। कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लॉकडाउन है, अप्रैल का महीना है और गर्मी भी प्रचंड है, ऐसे में गरीबों का देसी फ्रीज कहीं नजर नहीं आ रहा, जिसके सहारे भीषण गर्मी में गरीब ठंडे पानी से अपना गला तर करते हैं. मार्केट में 200 रुपए में देसी फ्रिज यानि मटका लॉकडाउन में पूरी तरह लॉक है. लॉकडाउन के चलते न तो आम आदमी बाजार जा पा रहा है, न ही मटका बनाने वाला कुम्हार कहीं दिख रहे हैं, ऐसे में उनकी महीनों की मेहनत मिट्टी में मिल रही है और दस्तकारों की रोजी-रोटी भी छिन सी गई है.

लॉकडाउन का प्रहार

लॉकडाउन के बीच तपती गर्मी गरीबों के लिए परेशानी का सबब बन रही है, इसका बड़ा असर कुम्हारों की जेब पर भी पड़ रहा है. ये लोग पिछले आठ-नौ महीने से मिट्टी के मटके तैयार कर रहे थे, लेकिन अब बिक्री का सीजन आया तो कोरोना इन कुम्हारों की कमर तोड़ रहा है.

बाजार में मटकों की सप्लाई नहीं होने के कारण इन कुम्हारों के घर में बस मटके ही मटके दिख रहे हैं, घर में रहने तक की जगह नहीं बची है, गर्मी में मटकों की मांग बढ़ जाती है, इसलिए कुम्हार पहले से मटका बनाकर स्टाक में रखते हैं, ताकि गर्मी आने पर इसे बेचकर कमाई कर सकें, अमूमन एक मटका बाजार में 100 से 200 रुपए तक में बिकता है. गर्मी के सीजन में दस्तकारों की बिक्री हर दिन 10000 रुपए तक हो जाती थी, पर आज उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. मटका बनाने के लिए लाखों की मिट्टी खरीदी थी, लेकिन बिक्री नहीं होने से आज घाटा बढ़ता जा रहा है.

मेहगांव के कुम्हार बताते हैं कि 8 महीने से पूरा परिवार मटके तैयार करने के लिए मेहनत कर रहा था, उनकी पत्नी की हाल ही में किडनी की सर्जरी हुई है. प्रशासन से इलाज के लिए कोई मदद नहीं मिल सकी तो 4 लाख रुपए कर्ज लेना पड़ा अब कैसे कर्ज चुकाएंगे, बाजार बंद होने से आमदनी बंद है, इक्का-दुक्का व्यवहार वाले ग्राहक घर पर आकर 1-2 मटके लिए जाते हैं तो 200-400 रुपए कभी कबार मिल जाते हैं.

जिला प्रशासन से भी कोई खास मदद नहीं है, ऐसे में परेशानी बढ़ती जा रही है. लॉकडाउन में उस गरीब की भी हालत खराब है, जो हजारों का फ्रीज नहीं खरीद सकते, उसके लिए कुम्हारों के हाथ का बना मटका ही फ्रीज का एहसास दिलाता है. बाजार न जा पाने और मटका न खरीद पाने की वजह से गर्म पानी से ही गरीब गला तर कर रहे हैं. कुम्हारों को उम्मीद है कि जल्द इस महामारी से छुटकारा मिलेगा और उनके भी दिन लौटेंगे.

कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से मिट्टी के घड़े बनाने वाले कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, अप्रैल के महीने में शुरुआती गर्मी के दौरान मटकों की अच्छी खासी बिक्री होती है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से बिक्री काफी प्रभावित हुई है, अगर लॉकडाउन से जल्द राहत न मिली तो इन कुम्हारों के लिए बिना आमदनी जीवन यापन करना घातक साबित होगा.

भिंड। कोरोना महामारी के चलते पूरे देश में लॉकडाउन है, अप्रैल का महीना है और गर्मी भी प्रचंड है, ऐसे में गरीबों का देसी फ्रीज कहीं नजर नहीं आ रहा, जिसके सहारे भीषण गर्मी में गरीब ठंडे पानी से अपना गला तर करते हैं. मार्केट में 200 रुपए में देसी फ्रिज यानि मटका लॉकडाउन में पूरी तरह लॉक है. लॉकडाउन के चलते न तो आम आदमी बाजार जा पा रहा है, न ही मटका बनाने वाला कुम्हार कहीं दिख रहे हैं, ऐसे में उनकी महीनों की मेहनत मिट्टी में मिल रही है और दस्तकारों की रोजी-रोटी भी छिन सी गई है.

लॉकडाउन का प्रहार

लॉकडाउन के बीच तपती गर्मी गरीबों के लिए परेशानी का सबब बन रही है, इसका बड़ा असर कुम्हारों की जेब पर भी पड़ रहा है. ये लोग पिछले आठ-नौ महीने से मिट्टी के मटके तैयार कर रहे थे, लेकिन अब बिक्री का सीजन आया तो कोरोना इन कुम्हारों की कमर तोड़ रहा है.

बाजार में मटकों की सप्लाई नहीं होने के कारण इन कुम्हारों के घर में बस मटके ही मटके दिख रहे हैं, घर में रहने तक की जगह नहीं बची है, गर्मी में मटकों की मांग बढ़ जाती है, इसलिए कुम्हार पहले से मटका बनाकर स्टाक में रखते हैं, ताकि गर्मी आने पर इसे बेचकर कमाई कर सकें, अमूमन एक मटका बाजार में 100 से 200 रुपए तक में बिकता है. गर्मी के सीजन में दस्तकारों की बिक्री हर दिन 10000 रुपए तक हो जाती थी, पर आज उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. मटका बनाने के लिए लाखों की मिट्टी खरीदी थी, लेकिन बिक्री नहीं होने से आज घाटा बढ़ता जा रहा है.

मेहगांव के कुम्हार बताते हैं कि 8 महीने से पूरा परिवार मटके तैयार करने के लिए मेहनत कर रहा था, उनकी पत्नी की हाल ही में किडनी की सर्जरी हुई है. प्रशासन से इलाज के लिए कोई मदद नहीं मिल सकी तो 4 लाख रुपए कर्ज लेना पड़ा अब कैसे कर्ज चुकाएंगे, बाजार बंद होने से आमदनी बंद है, इक्का-दुक्का व्यवहार वाले ग्राहक घर पर आकर 1-2 मटके लिए जाते हैं तो 200-400 रुपए कभी कबार मिल जाते हैं.

जिला प्रशासन से भी कोई खास मदद नहीं है, ऐसे में परेशानी बढ़ती जा रही है. लॉकडाउन में उस गरीब की भी हालत खराब है, जो हजारों का फ्रीज नहीं खरीद सकते, उसके लिए कुम्हारों के हाथ का बना मटका ही फ्रीज का एहसास दिलाता है. बाजार न जा पाने और मटका न खरीद पाने की वजह से गर्म पानी से ही गरीब गला तर कर रहे हैं. कुम्हारों को उम्मीद है कि जल्द इस महामारी से छुटकारा मिलेगा और उनके भी दिन लौटेंगे.

कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से मिट्टी के घड़े बनाने वाले कुम्हारों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, अप्रैल के महीने में शुरुआती गर्मी के दौरान मटकों की अच्छी खासी बिक्री होती है, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से बिक्री काफी प्रभावित हुई है, अगर लॉकडाउन से जल्द राहत न मिली तो इन कुम्हारों के लिए बिना आमदनी जीवन यापन करना घातक साबित होगा.

Last Updated : Apr 23, 2020, 9:16 AM IST
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