भिंड। मध्य प्रदेश सरकार में किसानों को राहत देने और कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए एमएसपी स्कीम लागू की थी. जिसके तहत इन दिनों समर्थन मूल्य पर बाजरा की खरीदी की जा रही है, लेकिन इसका लाभ मूल किसानों से ज्यादा दलालों और भ्रष्टाचारियों को ज्यादा हो रहा है. जिन्होंने प्रशासनिक मिलीभगत से दूसरे की जमीन पर अपने रजिस्ट्रेशन कराए और बाजरा बेच दिया. जिसकी वजह से मूल किसान अपनी फसल नहीं बेच पाया. इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट पर नजर डालिए.
अन्नदाता 4 महीनों तक अपनी किसी फसल को पालता है, बीज बोने से लेकर फसल की कटाई तक अपनी मेहनत और लगन से फसल तैयार करता है और आखिर में मंडी पहुंचकर उस फसल को बेच कर दो पैसे हासिल करता है कि अपने परिवार का पेट पाल सके. लेकिन अगर कोई उस किसान का हक छीन ले फसल होने के बावजूद वे उसका सही दाम न दे पाए. किसानों के लिए चलाई जा रही सरकार की योजना का लाभ ना ले पाए और सिस्टम का शिकार हो जाए तो वह क्या करेगा. क्योंकि यह अंदाजा नहीं बल्कि सच्चाई है भिंड के चरथर गांव में रहने वाले कई किसान फसल बेचने को लेकर हुई धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं. अपने साथ हुई इस नाइंसाफी के लिए न्याय की गुहार लगाने वाले किसानों की अब तक कोई सुनवाई भी नहीं हुई है.
एक नहीं कई केस आये सामने
वहीं जब यह जानकारी मिली की भिंड में फसल खरीदी के दौरान कई किसानों के रजिस्ट्रेशन या तो कैंसिल हो गए हैं या फिर फसल बेचने के लिए उनका रजिस्ट्रेशन ना के बराबर हुआ है. तब पड़ताल करने पर 7 से 8 केस सामने आए. इनमें ज्यादातर केस भिंड विधानसभा क्षेत्र के ग्राम चरथर से पाए गए.
किस तरह हुआ फर्जीवाड़ा
इन किसानों की जमीन पर कराए गए रजिस्ट्रेशन में किसी हरिसिंह के नाम बाजरा का रजिस्ट्रेशन था. जिसकी वजह से बची हुई जमीन पर बाजरा पैदावार के हिसाब से मूल किसान का रजिस्ट्रेशन किया गया. ऐसे किसान जिनका रजिस्ट्रेशन आवेदन 80 क्विंटल का था, उन्हें मात्र 80 किलो बाजरा बेचने की इजाजत मिली है. कुछ मूल किसानों का तो रजिस्ट्रेशन तक रद्द हो गया. क्योंकि उनकी जमीन पर पहले ही हरिसिंह ने रजिस्ट्रेशन कर लिया गया था. मतलब साफ है कि उनकी जमीन पर हरिसिंह और अन्य धोखेबाज़ लोगों द्वारा अपना बाजरा बेचकर मूल किसान का हक मार लिया गया है. क्योंकि समर्थन मूल्य पर फसल बेचने पर प्रति क्विंटल किसानों को 850 रुपये का फायदा होता, लेकिन अब यह फायदा नुकसान में बदलता जा रहा है.
अधिकारियों पर भी उठ रहे सवाल
चौकाने वाली बात यह है कि ग्राउंड लेवल अधिकारियों के पास खेती और किसानों से जुड़े सभी दस्तावेज और जानकारी होती है. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि एक किसान की जमीन पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन देने पर पटवारी और तहसीलदार द्वारा सत्यापन कैसे किया जा सकता है. क्योंकि बिना सत्यापन फसल खरीदी के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया पूरी नहीं होती.
अपनी पड़ताल में ईटीवी भारत ने कुछ केस स्टडी कर आंकड़े भी इकट्ठा किए
केस 1-ब्रजकिशोर शर्मा मूल रूप से किसान हैं और उनकी आय का साधन भी महज खेती ही है, उनके पास वर्तमान में 9 बीघा जमीन है. जिस पर उन्होंने बाजरा की फसल की थी. इस 9 बीघा कृषि भूमि पर फसल बिक्री के लिए करीब 55 क्विंटल बाजरा की पैदावार के अंदाजे से रजिस्ट्रेशन होना था. क्योंकि उनके खेत में बाजरा की पैदावार भी करीब 65 क्विंटल हुई. पीड़ित अन्नदाता ने आवेदन भी किया लेकिन उन्हें उनकी 9 बीघा जमीन होने के बावजूद महज 5 क्विंटल बाजरा बेचने के लिए ही रजिस्ट्रेशन मिला. बाकी जमीन पर पहले ही हरिसिंह और ब्रजेश सिंह के नाम रजिस्ट्रेशन कर दिया गया.
केस 2-मुकेश कटारे से नाम के किसान भी इसी धोखाधड़ी का शिकार हुए. उन्होंने 120 क्विंटल बाजरा का फसल खरीदी के लिए पंजीयन आवेदन किया था, लेकिन बाद में आए एसएमएस के जरिये पता चला कि उनको महज 162 किलो बाजरा बेचने के लिए ही रजिस्ट्रेशन मिला है. जबकि उनके पास 100 बीघा से ज्यादा जमीन है. जिसके ज्यादातर हिस्से में बाजरा फसल की बोवनी थी. करीब 50 क्विंटल बाजरा की पैदावार भी हुई थी, लेकिन वे अपनी फसल नहीं बेच पा रहे हैं.
केस 3-चरथर के राजवीर सिंह भदौरिया ने अपनी 20 बीघा पुख्ता जमीन पर बाजरा कक फसल तैयार की थी. जिसके तहत उनका करीब 80 क्विंटल बाजरे का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए था. लेकिन धोखाधड़ी का शिकार बने राजवीर को समर्थन मूल्य पर महज 80 किलो बाजरा बेचने के लिए ही अनुमति मिली है. जबकि उनके खेतों से 90 क्विंटल बाजरा पैदा हुआ है.
केस 4- मंगल शर्मा नाम के किसान ने भी बताया कि उन्होंने 9 बीघा पुख्ता जमीन पर बाजरा उगाया था. जिसकी लैंडवार भी करीब 30 क्विंटल हुई, जमीन के हिसाब से उनका रजिस्ट्रशन करीब 40 क्विंटल होना चाहिए था. लेकिन उनका रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया गया. जिसका कारण था कि उनकी जमीन पर पहले ही रजिस्ट्रेशन हो चुका था. ठीक ऐसा ही मामला गांव के किसान राम निवास उपाध्याय के साथ हुआ उनकी 7 बीघा खेत पर 30 क्विंटल बाजरा पैदा हुआ. लेकिन उनको भी रजिस्ट्रेशन नहीं मिला, क्योंकि पहले ही उनकी जमीन पर किसी अन्य के नाम से रजिस्ट्रेशन हो चुका था.
गौरतलब है कि इस पूरे मामले में शिकार हुए किसान आज भी अपनी फसल को समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने की मांग कर रहे हैं. जबकि 5 दिसंबर से खरीदी बंद हो जायेगी, ऐसे में अब तक जिला प्रशासन द्वारा उन्हें खरीदी के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं हुए हैं. ये किसान आगे आंदोलन की राह अपनाने को भी तैयार हैं और अपना हक पाने और इस धोखाधड़ी के लिए सभी जिम्मेदार अधिकारियों को कोर्ट में घसीटने तक कि बात कह रहे हैं.
जिम्मेदारों पर कार्रवाई कब तक
इन किसानों की न्याय मांगती गुहार के साथ किसानों ने अपने साथ हुई धोखाधड़ी के बावजूद जिला प्रसाशन से महज अपनी फसल को बिकवाने की गुजारिश की, लेकिन, आज भी किसान अपनी फसल बिकने के इंताज में हैं. क्योंकि अगर यह फसल नहीं बिकी तो आने वाले समय में रखी हुई फसल सड़ जाएगी. वहीं कलेक्टर डॉ वीएस रावत द्वारा व्यवस्था बनाने और फसल बिकवाने के अस्वासन दिए जा रहे हैं. साथ ही मामले में जांच के बाद आई रिपोर्ट के आधार पर धोखाधड़ी करने वाले आरोपी हरिसिंह पर एफआईआर दर्ज कराए जाने की बात कह दी. लेकिन जिन विभागीय अधिकारियों ने पंजीयन के लिए सत्यापन में गोलमाल किया उनपर क्या कार्रवाई होगी इसपर अभी तक कोई जिम्मेदार बोलने को तैयार नहीं हैं.