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देश-विदेश में भिंड का नाम रोशन कर रही दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा, संघर्ष से बनाई पहचान - देश-विदेश

भिंड की दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा ने अपनी लगन और महनत के दम पर जिले का नाम देश-विदेश में रोशन किया है. पूजा ओझा विश्व के केनो पैरा खिलाड़ियों में 6वी रैंक पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है.

पूजा ओझा कर रही देश-विदेश में भिंड का नाम रोशन
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Published : Oct 17, 2019, 7:19 AM IST

भिंड। ग्रामीण महिलाएं हर स्तर पर आज पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. भिंड की दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा ने भी अपनी लगन और बुलंद हौसलों से ना सिर्फ जिले का नाम रोशन किया, बल्कि वो देश की पहली महिला पैरा कैनोइंग खिलाड़ी भी बनी हैं. भिंड के एक गरीब परिवार से आई पूजा ओझा ने 2 साल पहले देश की पहली पैरा कयाकिंग कैनोइंग महिला खिलाड़ी बनी और उसके बाद लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही हैं.

पूजा ओझा कर रही देश-विदेश में भिंड का नाम रोशन

आसान नहीं रहा सफर
पैरा कैनोइंग खिलाड़ी पूजा बताती हैं कि भिंड के पिछड़े इलाकों में लोगों की सोच अभी उतनी खुली नहीं है. साथ ही संसाधनों की कमी के चलते प्रैक्टिस के लिए जुगाड़ की बोट का इस्तेमाल करना पड़ता था. भिंड के लोगों की सोच विकसित नहीं होने कि वजह से शुरुआत में माता-पिता भी इस फैसले को लेकर तैयार नहीं थे, लेकिन कुछ कर गुजरने के जुनून को देखते हुए उन्होंने पूजा का साथ दिया और आज पूजा विश्व के कैनो पैरा खिलाड़ियों में 6वी रैंक पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है.

गुरू को दिया श्रेय
पूजा ने बताया कि जब वे खिलाड़ी नहीं थीं, तो कोचिंग जाने के लिए गौरी लेक रोड का इस्तेमाल करती थी. गौरी सरोवर में कयाकिंग कैनोइंग चैंपियनशिप के बाद भिंड एसोसिएशन के संरक्षक राधेगोपाल यादव, कोच हितेंद्र तोमर और जावेद खान के साथ खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करा रहे थे. इसी दौरान जावेद सर ने पूछा कि कैनो सीखोगी क्या, फिर किसी तरह घरवालों को राजी किया और वॉटर स्पोर्ट्स में जर्नी शुरू हो गई.

देश-विदेश में लहराया परचम
पूजा ओझा ने साल 2017 में भोपाल में आयोजित हुई ऑल इंडिया कयाकिंग कैनोइंग प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल हासिल किया और मध्यप्रदेश के नाम का डंका बजा दिया. उसके बाद थाईलैंड में हुई एशियन कैनो पैरा चैंपियनशिप में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया. वहीं 2019 में हंगरी में हुई वर्ल्ड पैरा कैनोइंग चैंपियनशिप में भी पूजा टॉप 10 खिलाड़ियों में शामिल हुई. जिसके बाद हाल ही में जापान में आयोजित हुए पैरा ओलंपिक स्पोर्ट्स के लिए क्वॉलिफाइंग कंपटीशन में हिस्सा लेकर वे विश्व की 6वीं रैंक पर पहुंच गई है.

बेहतरीन खिलाड़ी हैं पूजा : ट्रेनर हितेंद्र तोमर
पूजा के ट्रेनर हितेंद्र तोमर कहते हैं कि पूजा एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं. उसने अपने हौसलों के दम पर दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन किया है. वह दुनिया के टॉप 6 खिलाड़ियों में शामिल है.

पूजा अब जल्द ही हंगरी में होने वाली दूसरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने की तैयारी कर रही हैं, जहां उनकी परफॉर्मेंस पैरा ओलंपिक गेम्स के लिए उनका चयन निर्धारित करेगा.

भिंड। ग्रामीण महिलाएं हर स्तर पर आज पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं. भिंड की दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा ने भी अपनी लगन और बुलंद हौसलों से ना सिर्फ जिले का नाम रोशन किया, बल्कि वो देश की पहली महिला पैरा कैनोइंग खिलाड़ी भी बनी हैं. भिंड के एक गरीब परिवार से आई पूजा ओझा ने 2 साल पहले देश की पहली पैरा कयाकिंग कैनोइंग महिला खिलाड़ी बनी और उसके बाद लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही हैं.

पूजा ओझा कर रही देश-विदेश में भिंड का नाम रोशन

आसान नहीं रहा सफर
पैरा कैनोइंग खिलाड़ी पूजा बताती हैं कि भिंड के पिछड़े इलाकों में लोगों की सोच अभी उतनी खुली नहीं है. साथ ही संसाधनों की कमी के चलते प्रैक्टिस के लिए जुगाड़ की बोट का इस्तेमाल करना पड़ता था. भिंड के लोगों की सोच विकसित नहीं होने कि वजह से शुरुआत में माता-पिता भी इस फैसले को लेकर तैयार नहीं थे, लेकिन कुछ कर गुजरने के जुनून को देखते हुए उन्होंने पूजा का साथ दिया और आज पूजा विश्व के कैनो पैरा खिलाड़ियों में 6वी रैंक पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है.

गुरू को दिया श्रेय
पूजा ने बताया कि जब वे खिलाड़ी नहीं थीं, तो कोचिंग जाने के लिए गौरी लेक रोड का इस्तेमाल करती थी. गौरी सरोवर में कयाकिंग कैनोइंग चैंपियनशिप के बाद भिंड एसोसिएशन के संरक्षक राधेगोपाल यादव, कोच हितेंद्र तोमर और जावेद खान के साथ खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करा रहे थे. इसी दौरान जावेद सर ने पूछा कि कैनो सीखोगी क्या, फिर किसी तरह घरवालों को राजी किया और वॉटर स्पोर्ट्स में जर्नी शुरू हो गई.

देश-विदेश में लहराया परचम
पूजा ओझा ने साल 2017 में भोपाल में आयोजित हुई ऑल इंडिया कयाकिंग कैनोइंग प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल हासिल किया और मध्यप्रदेश के नाम का डंका बजा दिया. उसके बाद थाईलैंड में हुई एशियन कैनो पैरा चैंपियनशिप में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया. वहीं 2019 में हंगरी में हुई वर्ल्ड पैरा कैनोइंग चैंपियनशिप में भी पूजा टॉप 10 खिलाड़ियों में शामिल हुई. जिसके बाद हाल ही में जापान में आयोजित हुए पैरा ओलंपिक स्पोर्ट्स के लिए क्वॉलिफाइंग कंपटीशन में हिस्सा लेकर वे विश्व की 6वीं रैंक पर पहुंच गई है.

बेहतरीन खिलाड़ी हैं पूजा : ट्रेनर हितेंद्र तोमर
पूजा के ट्रेनर हितेंद्र तोमर कहते हैं कि पूजा एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं. उसने अपने हौसलों के दम पर दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन किया है. वह दुनिया के टॉप 6 खिलाड़ियों में शामिल है.

पूजा अब जल्द ही हंगरी में होने वाली दूसरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने की तैयारी कर रही हैं, जहां उनकी परफॉर्मेंस पैरा ओलंपिक गेम्स के लिए उनका चयन निर्धारित करेगा.

Intro:(नोट- एड्रेस को द्वारा मांगी गई असाइनमेंट स्टोरी है इसका पूरा रॉ और डिटेल स्क्रिप्ट मांगी गई थी जो अटैच कर दिए हैं )

ग्रामीण स्तर की महिलाएं हर स्तर पर आज पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। भिंड की दिव्यांग खिलाड़ी पूजा ओझा ने भी अपनी लगन और बुलंद हौसलों से ना सिर्फ भिंड का नाम रोशन किया बल्कि वह देश की पहली महिला पैरा कैनोइंग खिलाड़ी भी बनी।




Body:मध्य प्रदेश का एक छोटा सा जिला जो चंबल के डकैतों की छाप में बदनाम हुआ लेकिन न जाने कितने वीर सपूतों ने शहीद होकर भिंड को नई पहचान दिलाई है। वहीं जिले का महिला वर्ग भी अब भिंड का नाम रोशन करने में पीछे नहीं है आज भिंड की बेटियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ भिंड का, बल्कि देश का नाम ऊंचा कर रही है। ऐसी ही एक वॉटर स्पोर्ट्स खिलाड़ी भिंड ने देश को समर्पित की है। भिंड के एक गरीब परिवार से आई पूजा ओझा 2 साल पहले देश की पहली पैरा कयाकिंग कैनोइंग महिला खिलाड़ी बनी और उसके बाद लगातार कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही है, शारीरिक तौर पर पूजा ओझा दोनों पैरों से दिव्यांग हैं लेकिन अपने हौसलों की दम पर पानी में बेहद तेजी से अपने लक्ष्य तक पहुंचती हैं।

आसान नहीं रहा सफर,
पैरा कैनोइंग खिलाड़ी पूजा बताती हैं कि भिंड एक पिछड़े इलाकों में होने की वजह से यहां के लोगों की सोच अभी उतनी खुली नहीं है आज भी बेटियों को किसी क्षेत्र में आगे जाने के लिए लड़कों के मुकाबले ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ऐसे में दिव्यांग होने से भी काफी मशक्कत करनी पड़ी संसाधनों की कमी थी प्रैक्टिस के लिए जुगाड़ की बोट का इस्तेमाल करना पड़ता था भिंड के लोगों की सोच भी इतनी विकसित नहीं है इसलिए शुरुआत में माता-पिता भी तैयार नहीं थे लेकिन कुछ कर गुजरने के जुनून को देखते हुए उन्होंने पूजा का साथ दिया और आज पूजा विश्व के पैरा कैनो खिलाड़ियों में 6वी रैंक पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है

गुरु को दिया श्रेय,
पूजा ने बताया कि जब वे खिलाड़ी नहीं थी तो कोचिंग पर जाने के लिए गौरी लेक रोड का इस्तेमाल करती थी गौरी सरोवर में कयाकिंग कैनोइंग चैंपियनशिप के बाद भिंड एसोसिएशन के संरक्षक राधेगोपाल यादव, कोच हितेंद्र तोमर और जावेद खान के साथ खिलाड़ियों को प्रैक्टिस करा रहे थे इसी दौरान निकलना हुआ तो कुछ जावेद सर ने पूछा कि कैनो सीखोगी क्या, फिर किसी तरह घरवालों को राजी किया और वॉटर स्पोर्ट्स में जर्नी शुरू हो गई।

देश-विदेश में लहराया परचम,
पूजा ओझा ने साल 2017 में भोपाल में आयोजित हुई ऑल इंडिया कयाकिंग कैनोइंग प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल हासिल किया और मध्यप्रदेश के नाम का डंका बजा दिया उसके बाद थाईलैंड में हुई एशियन कैनो पैरा चैंपियनशिप में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया वहीं 2019 में हंगरी में हुई वर्ल्ड पैरा कैनोइंग चैंपियनशिप में भी पूजा टॉप 10 खिलाड़ियों में शामिल थी जिसके बाद हाल ही में जापान में आयोजित हुए पैरा ओलंपिक स्पोर्ट्स के लिए क्वालीफाइंग कंपटीशन में हिस्सा लेकर वे विश्व की 6वीं रैंक पर पहुंच गई है पूजा अब जल्द ही हंगरी में होने वाली दूसरी वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने की तैयारी कर रही हैं जहां उनकी परफॉर्मेंस पैरा ओलंपिक गेम्स के लिए उनका चयन निर्धारित करेगा

पूजा के ट्रेनर हितेंद्र तोमर कहते हैं कि पूजा एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं उसने अपने हौसलों के दम पर दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन किया है वह दुनिया के टॉप 6 खिलाड़ियों में शामिल है जो उन लोगों के लिए संदेश है यह लगता है कि आज बेटियां कुछ कर नहीं सकती लेकिन पूजा आज लोगों के लिए एक उदाहरण है कि लड़कियां भी स्पोर्ट्स हो या अन्य क्षेत्र, किसी से पीछे नहीं हैं।

बाइट- पूजा ओझा, खिलाड़ी, पैरा कैनोइंग
बाइट- हितेंद्र तोमर, पूजा के ट्रेनर


Conclusion:हर साल 15 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाया जाता है आज पूरे विश्व में विकसित या विकासशील देशों में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति चिंताजनक है जबकि ग्रामीण स्तर की महिलाएं पूरे परिवार का आधार स्तंभ होती हैं महिलाएं ही परिवार की रीढ़ कही जाती हैं बच्चों की परवरिश और घरेलू कार्य के अलावा और भी अन्य कार्यों को भी बड़ी तत्परता से करती हैं लेकिन उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हमेशा होता रहा है इन सब बातों पर गंभीर होकर संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 15 अक्टूबर सन 2008 से इस दिवस को मनाने का संकल्प लिया है
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