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भिंड के कारसेवकों ने राम मंदिर के लिए सहे कई कष्ट, अब मंदिर निर्माण का इंतजार

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Published : Aug 2, 2020, 11:10 PM IST

Updated : Aug 3, 2020, 1:12 AM IST

अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण की शुभ घड़ी बस कुछ दिन दूर है. भारत ही नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले भारतीयों को भी उस पल का इंतजार है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीराम मंदिर के लिए भूमिपूजन करेंगे. इस सपने को देखते हुए सैकड़ों कारसेवकों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिये. उस वक्त कार सेवकों ने कितनी यातनाएं सहन की और क्या परिस्थितियां थी उस वक्त, पढ़िए पूरी खबर...

Ram temple movement
राम मंदिर आंदोलन

भिंड। 5 अगस्त 2020 का दिन इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, क्योंकि इस दिन कारसेवकों और रामभक्तों की लंबी लड़ाई के बाद अयोध्या में राम मंदिर की शिला रखी जाएगी और इसी के साथ राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा. इस मंदिर के लिए करोड़ों लोगों ने आंदोलन किए और कई लोगों ने गोलियां खाई. ऐसे ही कुछ कारसेवक हैं, भिंड में जिनके जहन में आज भी साल 1990 और 1992 में हुए आंदोलन की याद ताजा हैं. भिंड से भी हजारों की संख्या में कारसेवक भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या जाने के लिए रवाना हुए थे.

अब मंदिर निर्माण का इंतजार

कारसेवकों ने तोड़ दी थी लोहे की दीवार
भिंड में रहने वाले भरत शर्मा बताते हैं, उस समय वो विद्यार्थी थे, उन्हें पता चला कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के लिए हिंदू समाज का एक जत्था मध्य प्रदेश से रवाना हो रहा है. उनका मोहल्ले के लोग 27 अक्टूबर को भिंड के मेला ग्राउंड में कारसेवकों के लिए रुकने खाने की की व्यवस्था की और अगली सुबह कारसेवकों के उसी जत्थे के साथ भरत शर्मा भी बस में बैठ कर चंबल के पुल पर पहुंचे, लेकिन सायद उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार को पहले से ही यह भनक थी, इस लिए उन्होंने पुल के बीचो-बीच एक दीवार बनवा दी जिसमें लोहे की प्लेंटे लगाई गई थी. लेकिन रामभक्त कहा रुरने वाले थे वो इस दीवार को पार करने की कोशिश करने लगे और सामने से उत्तर प्रदेश पुलिस आंसू गैस के गोले फेंकने शुरू कर दिये, लेकिन इसके बाद भी जबह कारसेवक नहीं रुके तो लाठीचार्ज किया और फायरिंग शुरू कर दी गई, जिससे कई लोग घायल हुए.

17 दिन तक कानपुर की जेल में रहे कारसेवक
भरत शर्मा बताते है, की पुलिस की गोलियो से घायल कारसेवक जब नदी के किनारे बैठ गए, तो जत्थे में शामिल प्रचारक विजय शर्मा ने पिर कारसेवकों को प्ररित किया, जिससे महज आधें घंटे में कारसेवकों ने पुल पर बनी दीवार ढ़हा दी और आंगे बढ़ चले,लेकिन उन्हे पुलिस ने गिरफ्चार कर लिया और वहीं से सभी को कानपुर ले जाया गया, जहां उन्हें 17 दिन तक रखा गया. भारत शर्मा ने जेल का अनुभव साझा करते हुए बताया कि कहने को हम जेल जा रहे थे, लेकिन कानपुर के लोगों ने हम लोगों का भव्य स्वागत किया. कानपुर के बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने हमारा ध्यान रखा किसी चीज़ की कमी नही होने दी और भिर सभी को भिंड़ वापस भेज दिया गया.

राम भक्त पुत्तू बाबा ने दी थी शहादत
1992 में दूसरा जत्था रवाना हुआ उस समय तक उत्तर प्रदेश में भी सरकार बदल चुकी थी, इसलिए आराम से ट्रेन का सफर तय कर वे अपने साथियों के साथ अयोध्या पहुचे जहां सभी प्रदेशों के पंडाल लगे हुए थे उन्ही में से मध्यप्रदेश के खेमें में रुके 6 दिसम्बर 1992 को संदेश मिला कि राम मंदिर के लिए कारसेवा करना है, तो सभी पहुच गए वहां दूर बाबरी ढांचे का गुम्मद नज़र आ रहा था, जिस पर कुछ कारसेवक चढ़े हुए थे. देखने मे मुश्किल लग रहा था लेकिन भगवान राम के लिए उस गुम्मद को गिराना था इसलिए सभी ने मिलकर शाम तक उसे ढहा दिया, लेकिन इसके साथ ही उनके साथी बुजुर्ग राम भक्त पुत्तू बाबा भी उस गुम्मद में दबकर शहीद हो गए.

श्राध के बहाने गए थे डॉ सुरेश बंसल

भिंड के ही एक और करासेवक डॉ सुरेश बंसल हैं, जिन्होंने बताया कि उन्होंने सिर मुडवाकर श्राध करने के बहाने टिकट हासिल की थी. सुरेश बंसल ने बताया की अयोध्या से पहले ही चैन पुलिंग कर वो अपने साथियों के साथ उतर गए और बीहड़ों में छिप कर दिन में सोते और रात में सफर करते थे, क्योंकि गांव-गांव उत्तर प्रदेश की पुलिस खोजबीन में भी लगी हुई थी, धीरे-धीरे संघर्ष के साथ गांव वालों के सहयोग से वो कारसेवा के लिए पहुंच गए. सुरेश बंसल ने बताया की 1990 में इतनी परेशानियों के बाद फिर वो दोबारा कारसेवा के लिए 1992 में अयोध्या गए, उस वक्त सरकार बदल चुकी थी, इसलिए वहां पहुंचने में समस्या नहीं हुई.


करासेवक डॉ सुरेश बंसल ने बताया की इटावा और उसके आसपास के इलाकों में जो अहीर समाज के लोग थे, जो मुलायम सिंह के मुरीद थे, इस लिए किसी पर भी कारसेवा का सक होने पर उन्हें पकड़ के मारपीट करते थे और पुलिस को बुला कर उन्हें उवके हवाले कर दिया करते थे, इससे बचने के लिए डॉ सुरेश बंसल ने ट्रेन से जाने का फैसला लिया, लेकिन जब उन्हें ट्रेन होने के बाबजूद टिकट नहीं मिल रही थी, तो उन्होंने मटकी ली और सर मुडवा कर श्राध करने के बहाने आगे की टिकट लेकर ट्रेन में चढ़े. सुरेश बंसल ने बताया की अयोध्या से पहले ही चेन पुलिंग कर वो अपने साथियों के साथ उतर गए.

कमलेश जैन को मिली थी वाहनी की कमान
1990 में मुलायम सरकार की बर्बरता के साक्षी रहे 250 लोगों के जत्थे के कैंप संचालक कमलेश जैन ने बताया कि 3 दिसंबर 1992 में ढांचा गिराने के लिए पुत्तू बाबा ने थाली बजाकर कस्बे में लोगों से अयोध्या चलने की गुहार लगाई थी, जिसके बाद 4 दिसंबर को सभी भिंड में इकट्ठा हुए और इटावा के रास्ते अयोध्या पहुंचे थे. जहां तमाम बड़े नेताओं ने भाषण दिए और 6 दिसंबर को दोपहर 2 बजे कारसेवा के लिए आमंत्रित किया. जब 6 दिसंबर को कमलेश जैन अपने जत्थे के साथ रेत लेकर मस्जिद के ढांचे के पास पहुंचे तो देखा कि उसे गिराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, जिसमें सहयोग के लिए उनका जत्था भी बिना देरी किए लग गया, हालांकि इसमें पुत्तू बाबा शहीद हो गए, जिनका अंतिम संस्कार सरयू के किरारे जयभान सिंह पवैया ने किया था.

भक्तों का दर्द देख इस भक्त ने त्याग दिए थे जूते और चप्पल
भिंड़ में राम मंदिर के लिए कारसेवा कर संकल्प लेने वाले तमाम लोगों में से एक हैं मेहगांव के रहने वाले श्रीनिवास शर्मा, जिन्होंने न सिर्फ कारसेवा की थी, बल्कि 2013 में रामलला के दर्शन के दौरान भक्तों का दर्द देख कर जूते त्याग दिए थे और संकल्प लिया की जब तक रामलला के मंदिर का रास्ता साफ नहीं होता वो जूते नहीं पहनेंगे और जब राम मंदिर पर फैसला आया तो पुत्तू बाबा की बरसी पर राम भक्तों ने सह सम्मान श्रीनिवास शर्मा को जूते भेंटकर अपने हाथों से पहनाएं.

कारसेवकों को कोरोना के कम होने का इंतजार
6 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में विवादित ढांचा कारसेवकों द्वारा गिरा दिया गया था. तो उसके बाद अयोध्या सहित देश में दिवाली मनाई गई थी. अयोध्या के लोगों ने घर-घर भंडारा कर लाखों कारसेवकों को भोजन कराया गया था और अब जब 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का शिलान्यास करने जा रहे हैं, रामलला के मंदिर बनने का संदेश उनके मन को प्रफूल्लित कर रहा है. भिंड़ के कारसेवक अब कोरोना के प्रकोप के कम होने का इंतजार कर रहे हैं, कि उन्हें दर्शन की इजाजत मिले और वो राम के दर्शन के लिए अयोध्या जा पाएं.

भिंड। 5 अगस्त 2020 का दिन इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, क्योंकि इस दिन कारसेवकों और रामभक्तों की लंबी लड़ाई के बाद अयोध्या में राम मंदिर की शिला रखी जाएगी और इसी के साथ राम मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा. इस मंदिर के लिए करोड़ों लोगों ने आंदोलन किए और कई लोगों ने गोलियां खाई. ऐसे ही कुछ कारसेवक हैं, भिंड में जिनके जहन में आज भी साल 1990 और 1992 में हुए आंदोलन की याद ताजा हैं. भिंड से भी हजारों की संख्या में कारसेवक भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या जाने के लिए रवाना हुए थे.

अब मंदिर निर्माण का इंतजार

कारसेवकों ने तोड़ दी थी लोहे की दीवार
भिंड में रहने वाले भरत शर्मा बताते हैं, उस समय वो विद्यार्थी थे, उन्हें पता चला कि अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के लिए हिंदू समाज का एक जत्था मध्य प्रदेश से रवाना हो रहा है. उनका मोहल्ले के लोग 27 अक्टूबर को भिंड के मेला ग्राउंड में कारसेवकों के लिए रुकने खाने की की व्यवस्था की और अगली सुबह कारसेवकों के उसी जत्थे के साथ भरत शर्मा भी बस में बैठ कर चंबल के पुल पर पहुंचे, लेकिन सायद उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार को पहले से ही यह भनक थी, इस लिए उन्होंने पुल के बीचो-बीच एक दीवार बनवा दी जिसमें लोहे की प्लेंटे लगाई गई थी. लेकिन रामभक्त कहा रुरने वाले थे वो इस दीवार को पार करने की कोशिश करने लगे और सामने से उत्तर प्रदेश पुलिस आंसू गैस के गोले फेंकने शुरू कर दिये, लेकिन इसके बाद भी जबह कारसेवक नहीं रुके तो लाठीचार्ज किया और फायरिंग शुरू कर दी गई, जिससे कई लोग घायल हुए.

17 दिन तक कानपुर की जेल में रहे कारसेवक
भरत शर्मा बताते है, की पुलिस की गोलियो से घायल कारसेवक जब नदी के किनारे बैठ गए, तो जत्थे में शामिल प्रचारक विजय शर्मा ने पिर कारसेवकों को प्ररित किया, जिससे महज आधें घंटे में कारसेवकों ने पुल पर बनी दीवार ढ़हा दी और आंगे बढ़ चले,लेकिन उन्हे पुलिस ने गिरफ्चार कर लिया और वहीं से सभी को कानपुर ले जाया गया, जहां उन्हें 17 दिन तक रखा गया. भारत शर्मा ने जेल का अनुभव साझा करते हुए बताया कि कहने को हम जेल जा रहे थे, लेकिन कानपुर के लोगों ने हम लोगों का भव्य स्वागत किया. कानपुर के बड़े-बड़े पूंजीपतियों ने हमारा ध्यान रखा किसी चीज़ की कमी नही होने दी और भिर सभी को भिंड़ वापस भेज दिया गया.

राम भक्त पुत्तू बाबा ने दी थी शहादत
1992 में दूसरा जत्था रवाना हुआ उस समय तक उत्तर प्रदेश में भी सरकार बदल चुकी थी, इसलिए आराम से ट्रेन का सफर तय कर वे अपने साथियों के साथ अयोध्या पहुचे जहां सभी प्रदेशों के पंडाल लगे हुए थे उन्ही में से मध्यप्रदेश के खेमें में रुके 6 दिसम्बर 1992 को संदेश मिला कि राम मंदिर के लिए कारसेवा करना है, तो सभी पहुच गए वहां दूर बाबरी ढांचे का गुम्मद नज़र आ रहा था, जिस पर कुछ कारसेवक चढ़े हुए थे. देखने मे मुश्किल लग रहा था लेकिन भगवान राम के लिए उस गुम्मद को गिराना था इसलिए सभी ने मिलकर शाम तक उसे ढहा दिया, लेकिन इसके साथ ही उनके साथी बुजुर्ग राम भक्त पुत्तू बाबा भी उस गुम्मद में दबकर शहीद हो गए.

श्राध के बहाने गए थे डॉ सुरेश बंसल

भिंड के ही एक और करासेवक डॉ सुरेश बंसल हैं, जिन्होंने बताया कि उन्होंने सिर मुडवाकर श्राध करने के बहाने टिकट हासिल की थी. सुरेश बंसल ने बताया की अयोध्या से पहले ही चैन पुलिंग कर वो अपने साथियों के साथ उतर गए और बीहड़ों में छिप कर दिन में सोते और रात में सफर करते थे, क्योंकि गांव-गांव उत्तर प्रदेश की पुलिस खोजबीन में भी लगी हुई थी, धीरे-धीरे संघर्ष के साथ गांव वालों के सहयोग से वो कारसेवा के लिए पहुंच गए. सुरेश बंसल ने बताया की 1990 में इतनी परेशानियों के बाद फिर वो दोबारा कारसेवा के लिए 1992 में अयोध्या गए, उस वक्त सरकार बदल चुकी थी, इसलिए वहां पहुंचने में समस्या नहीं हुई.


करासेवक डॉ सुरेश बंसल ने बताया की इटावा और उसके आसपास के इलाकों में जो अहीर समाज के लोग थे, जो मुलायम सिंह के मुरीद थे, इस लिए किसी पर भी कारसेवा का सक होने पर उन्हें पकड़ के मारपीट करते थे और पुलिस को बुला कर उन्हें उवके हवाले कर दिया करते थे, इससे बचने के लिए डॉ सुरेश बंसल ने ट्रेन से जाने का फैसला लिया, लेकिन जब उन्हें ट्रेन होने के बाबजूद टिकट नहीं मिल रही थी, तो उन्होंने मटकी ली और सर मुडवा कर श्राध करने के बहाने आगे की टिकट लेकर ट्रेन में चढ़े. सुरेश बंसल ने बताया की अयोध्या से पहले ही चेन पुलिंग कर वो अपने साथियों के साथ उतर गए.

कमलेश जैन को मिली थी वाहनी की कमान
1990 में मुलायम सरकार की बर्बरता के साक्षी रहे 250 लोगों के जत्थे के कैंप संचालक कमलेश जैन ने बताया कि 3 दिसंबर 1992 में ढांचा गिराने के लिए पुत्तू बाबा ने थाली बजाकर कस्बे में लोगों से अयोध्या चलने की गुहार लगाई थी, जिसके बाद 4 दिसंबर को सभी भिंड में इकट्ठा हुए और इटावा के रास्ते अयोध्या पहुंचे थे. जहां तमाम बड़े नेताओं ने भाषण दिए और 6 दिसंबर को दोपहर 2 बजे कारसेवा के लिए आमंत्रित किया. जब 6 दिसंबर को कमलेश जैन अपने जत्थे के साथ रेत लेकर मस्जिद के ढांचे के पास पहुंचे तो देखा कि उसे गिराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी, जिसमें सहयोग के लिए उनका जत्था भी बिना देरी किए लग गया, हालांकि इसमें पुत्तू बाबा शहीद हो गए, जिनका अंतिम संस्कार सरयू के किरारे जयभान सिंह पवैया ने किया था.

भक्तों का दर्द देख इस भक्त ने त्याग दिए थे जूते और चप्पल
भिंड़ में राम मंदिर के लिए कारसेवा कर संकल्प लेने वाले तमाम लोगों में से एक हैं मेहगांव के रहने वाले श्रीनिवास शर्मा, जिन्होंने न सिर्फ कारसेवा की थी, बल्कि 2013 में रामलला के दर्शन के दौरान भक्तों का दर्द देख कर जूते त्याग दिए थे और संकल्प लिया की जब तक रामलला के मंदिर का रास्ता साफ नहीं होता वो जूते नहीं पहनेंगे और जब राम मंदिर पर फैसला आया तो पुत्तू बाबा की बरसी पर राम भक्तों ने सह सम्मान श्रीनिवास शर्मा को जूते भेंटकर अपने हाथों से पहनाएं.

कारसेवकों को कोरोना के कम होने का इंतजार
6 दिसंबर 1992 को जब अयोध्या में विवादित ढांचा कारसेवकों द्वारा गिरा दिया गया था. तो उसके बाद अयोध्या सहित देश में दिवाली मनाई गई थी. अयोध्या के लोगों ने घर-घर भंडारा कर लाखों कारसेवकों को भोजन कराया गया था और अब जब 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का शिलान्यास करने जा रहे हैं, रामलला के मंदिर बनने का संदेश उनके मन को प्रफूल्लित कर रहा है. भिंड़ के कारसेवक अब कोरोना के प्रकोप के कम होने का इंतजार कर रहे हैं, कि उन्हें दर्शन की इजाजत मिले और वो राम के दर्शन के लिए अयोध्या जा पाएं.

Last Updated : Aug 3, 2020, 1:12 AM IST
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