बैतूल। बैतूल में ग्वाल समाज के लोगों ने सदियों से एक अनूठी परंपरा को संजो कर रखा है. दिवाली के दूसरे दिन यादव समाज गाय के ताजे गोबर और गोमूत्र से गोवर्धन पर्वत बनाता है. पर्वत की पारंपरिक विधि विधान के अनुसार पूजन होता है. पूजा के बाद उस गोबर के पर्वत पर बच्चों को लिटाया जाता है. ग्वाल समाज की मान्यता है कि गोबर से बने गोवर्धन पर्वत पर छोटे बच्चों को लिटाने और इसके स्पर्श से कई रोगों निजात मिल जाती है. अब इसे आस्था कहें या अंधविश्वास मगर रोगों से निजात पाने के लिए लोग आज भी इसे परंपरा को निभा रहे हैं.
दिवाली के दूसरे दिन प्रदेश में धूमधाम से गोवर्धन पूजा की जाती है. ग्वाल समाज के लोग भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्यदेव मानते हैं. उनका मानना है कि 'द्वापर में जब श्री कृष्ण ने इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा तो इंद्रदेव नाराज हो गए. नाराज इंद्रदेव ने गोकुल में मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, सब कुछ तबाह होने वाला था उससे पहले श्री कृष्ण ने अपनी एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुल को तबाह होने से बचाया था. इसके बाद से ग्वाल समाज गोवर्धन की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं'.
ग्वाल समाज के लोग कहते हैं कि गोवर्धन से ही उनका घर परिवार चलता है. गाय के दूध से शरीर ताकतवर बनता है. तो वहीं गाय के गोबर और गौमूत्र से काया निरोगी होती है. गाय के गोबर से घरों की लिपाई-पुताई की जाती है. जिसके चलते मच्छर और अन्य कीड़े मकोड़े नहीं पहुंचते है. यही कारण है कि लोग गोवर्धन पूजा के दिन छोटे नन्हे-मुन्ने बच्चों को गोवर्धन पर्वत पर लिटाकर निरोगी रहने के लिए तमाम जतन करते हैं.