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मन्नत पूरी करने की यह कैसी परंपरा, पालने में डालकर नदी में तैराते हैं नवजात बच्चे

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Published : Nov 16, 2019, 12:50 AM IST

Updated : Nov 16, 2019, 5:30 PM IST

बैतूल जिले के भैंसदेही ब्लॉक में आस्था के नाम पर सैंकड़ों बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां ऐसी मान्यता है कि निःसंतान दंपत्ति मन्नत मांगने पूर्णा नदी के पास आते है और मन्नत पूरी होने पर नवजात बच्चों को पूर्णा नदी में तैराती है.

पालने में डालकर नदी में तैराते हैं नवजात बच्चे

बैतूल। जिले के भैंसदेही ब्लॉक में आस्था के नाम पर सैंकड़ों बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां ऐसी मान्यता है कि निःसंतान दंपत्ति मन्नत मांगने पूर्णा नदी के पास आते है और मन्नत पूरी होने पर नवजात बच्चों को पूर्णा नदी में तैराती है. ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है. यहां पूर्णा नदी की कल-कल धाराओं को गोद भरने वाली देवी कहा जाता है.

पालने में डालकर नदी में तैराते हैं नवजात बच्चे


अंधविश्वास का एक नजारा-
ऐसे अंधविश्वास के सहारे यहां के लोग कई सालों से अपने बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते आ रहे है. यहां निःसंतान दंपत्ति मन्नत पूरी होने कथित आशीर्वाद के लिए नवजात बच्चों को एक पालने में डालकर नदी में छोड़ देते है, जिसके बाद नदी से बच्चे को निकाल लिया जाता है और फिर तांत्रिक बच्चे को गोद में लेकर नृत्य करता है. वहीं बच्चे का पैर नदी में धूला कर उसे उसी नदी का पानी पिलाया जाता है.


बेटा-बेटी की चाह में मांगते हैं मन्नत-
माना जाता है कि मां पूर्णा बेटा और बेटियों की चाह रखने वालों की भी मन्नत पूरी करती है. वहीं पूर्णा देवी की पूजा से निःसंतान दंपत्तियों की मनोकामना पूरी होती है और उनकी सूनी गोद भर जाती है. कई ऐसे दंपत्ति है जिन्हें शादी के 10 से 15 सालों के बाद संतान प्राप्ति हुई है. जिनकी गोद मन्नत से पूरी हो जाती है वे कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद यहां आकर विशेष अनुष्ठान करते है.

अंधविश्वास के नाम पर मासूमों के साथ खिलवाड़-
अंधविश्वास के चलते लोगों की पूर्णा देवी में गहरी श्रद्धा है. वे पालनों में अपने बच्चों को लिटाकर नदी में छोड़ देते हैं. लोगों की मानें तो पालना नदी में डूबता नहीं है. उनका कहना है कि मां पूर्णा देवी के आशीर्वाद से ही संतान मिलती है, इसलिए मां की गोद में बच्चा खिलाने के लिए वे यहां आते हैं.

बैतूल। जिले के भैंसदेही ब्लॉक में आस्था के नाम पर सैंकड़ों बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है. यहां ऐसी मान्यता है कि निःसंतान दंपत्ति मन्नत मांगने पूर्णा नदी के पास आते है और मन्नत पूरी होने पर नवजात बच्चों को पूर्णा नदी में तैराती है. ये परंपरा कई सालों से चली आ रही है. यहां पूर्णा नदी की कल-कल धाराओं को गोद भरने वाली देवी कहा जाता है.

पालने में डालकर नदी में तैराते हैं नवजात बच्चे


अंधविश्वास का एक नजारा-
ऐसे अंधविश्वास के सहारे यहां के लोग कई सालों से अपने बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ करते आ रहे है. यहां निःसंतान दंपत्ति मन्नत पूरी होने कथित आशीर्वाद के लिए नवजात बच्चों को एक पालने में डालकर नदी में छोड़ देते है, जिसके बाद नदी से बच्चे को निकाल लिया जाता है और फिर तांत्रिक बच्चे को गोद में लेकर नृत्य करता है. वहीं बच्चे का पैर नदी में धूला कर उसे उसी नदी का पानी पिलाया जाता है.


बेटा-बेटी की चाह में मांगते हैं मन्नत-
माना जाता है कि मां पूर्णा बेटा और बेटियों की चाह रखने वालों की भी मन्नत पूरी करती है. वहीं पूर्णा देवी की पूजा से निःसंतान दंपत्तियों की मनोकामना पूरी होती है और उनकी सूनी गोद भर जाती है. कई ऐसे दंपत्ति है जिन्हें शादी के 10 से 15 सालों के बाद संतान प्राप्ति हुई है. जिनकी गोद मन्नत से पूरी हो जाती है वे कार्तिक मास की पूर्णिमा के बाद यहां आकर विशेष अनुष्ठान करते है.

अंधविश्वास के नाम पर मासूमों के साथ खिलवाड़-
अंधविश्वास के चलते लोगों की पूर्णा देवी में गहरी श्रद्धा है. वे पालनों में अपने बच्चों को लिटाकर नदी में छोड़ देते हैं. लोगों की मानें तो पालना नदी में डूबता नहीं है. उनका कहना है कि मां पूर्णा देवी के आशीर्वाद से ही संतान मिलती है, इसलिए मां की गोद में बच्चा खिलाने के लिए वे यहां आते हैं.

Intro:बैतुल ।। मन्नत पूरी होने पर देवी देवताओं को प्रसाद और चढ़ावा चढ़ाना आम बात है। लेकिन क्या आपने कभी मनोकामना पूरी होने पर नवजात बच्चों को नदी में तैराने की बात सुनी है शायद नहीं। लेकिन बैतूल के भैंसदेही ब्लॉक में एक ऐसी ही परंपरा सालों से चली आ रही है। यहां निःसंतान दंपत्ति मन्नत पूरी होने पर नवजात शिशुओं को पूर्णा नदी में तैराने की परंपरा चली आ रही है। पूर्णा नदी की कल काल धाराओं को गोद भरने वाली देवी कहा जाता है और मान्यता है कि पूर्णा देवी की पूजा से निःसंतान दंपत्तियों की मनोकामना पूरी होती है और उनकी गोद भर जाती है। यही नही बेटे बेटियों की चाह रखने वालों की भी मन्नत मा पूर्णा पूरी करती है।Body:मान्यता है कि पूर्णा देवी की पूजा से निःसंतान दंपत्तियों की मनोकामना पूरी होती है और उनकी गोद भर जाती है। कई ऐसे दंपत्ति है जिन्हें शादी के 10 से 15 सालों के बाद संतान प्राप्ति हुई है। उन दंपत्ति की गोद भर यहां भर जाती है वे कार्तिक मास की की पूर्णिमा के बाद यहां आकर विशेष अनुष्ठान करते हैं। भगत भुमका इस अनुष्ठान को करते आ रहे है। यहां एक पखवाड़े तक मेला लगता है।

मंदिर के करीब से बहने वाली पूर्णा नदी को लोग भले ही पूर्णा के नाम से जानते हों लेकिन इसका नाम चंद्रपुत्री है यानी चंद्रमा की पुत्री। यहां कार्तिक माह की पूर्णिमा से मेला लगता है जो एक पखवाड़े तक चलता है। इस दौरान नदी में दूर-दूर तक पालने तैरते नजर आते हैं।

लोगों की पूर्णा देवी में गहरी श्रद्धा है। वह पालनों में अपने बच्चों को लिटाकर छोड़ देते हैं। लोगों की मानें तो पालना नदी में डूबता नहीं है। उनका कहना है कि मां पूर्णा देवी के आशीर्वाद से ही संतान मिलती है इसलिए मां की गोद में बच्चा खिलाने के लिए वह यहां आते हैं।Conclusion:बाइट -- संजीता धोटे ( दो बेटियों की माँ )
बाइट -- संदीप मगरदे ( श्रद्धालु )
बाइट -- पिंटू महाराज ( पुजारी )
Last Updated : Nov 16, 2019, 5:30 PM IST
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