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बैतूल का एक ऐसा गांव जहां 97 सालों से नहीं बढ़ी जनसंख्या, जाने क्यों - population stable

बढ़ती जनसंख्या दुनिया भर के लिए बड़ी समस्या है. वहीं बात करें भारत की तो भारत विश्व का दूसरा देश है जिसकी जनसंख्या सबसे अधिक है, हालांकि मध्यप्रदेश के बैतूल जिले का धनोरा गांव देश का एक ऐसा अनोखा गांव है, जहां 1922 से अब तक यानी 97 सालों से जनसंख्या स्थिर बनी हुई है. यकीनन यह गांव देश के लिए एक मिसाल बना है.

एक गांव जो पूरे देश के लिए बना मिसाल
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Published : Nov 14, 2019, 11:38 PM IST

Updated : Nov 15, 2019, 6:34 PM IST

बैतूल। पूरे विश्व में जनसंख्या विस्फोट एक गहन समस्या के रुप में सभी देशों के सामने है. बात करें सर्वाधिक जनसंख्या की तो इंडिया विश्व का दूसरा देश है जिसकी जनसंख्या अधिक है. हालांकि भारत के मध्यप्रदेश के बैतूल जिले का धनोरा गांव एक ऐसा गांव है जिसकी जनसंख्या 1922 से यानी 97 सालों से स्थिर बनी हुई है. इस गांव की जनसंख्या कभी नहीं बढ़ती है, यही वजह है कि इस गांव का हर परिवार देशहित में परिवार नियोजन को अपनाता आ रहा है. इस गांव के लोग बेटों की चाहत नहीं रखते है, इस वजह से भी ये गांव एक मिसाल बना हुआ है. घनोरा गांव में ऐसे दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन अपना लिया है. वहीं इस गांव के किसी भी परिवार में एक या दो से ज्यादा बच्चे नहीं है.

एक गांव जो पूरे देश के लिए बना मिसाल

धनोरा गांव की रोचक कहानी
बैतूल जिले के आठनेर ब्लॉक का धनोरा गांव परिवार नियोजन के लिए प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है. इस गांव की जनसंख्या 97 सालों से 1700 से आगे नहीं बढ़ी है. इस गांव की एक रोचक कहानी है. सन् 1922 में इस गांव में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था, जिसमें शामिल होने कस्तूरबा गांधी आई थी. उन्होंने ग्रामीणों को अपने भाषण में खुशहाल जीवन के लिए छोटा परिवार होने के फायदे बतलाये थे. कस्तूरबा गांधी की इस बात को ग्रामीणों ने पत्थर की लकीर मानकर परिवार नियोजन का सिलसिला शुरू किया. तभी से इस गांव का नाम धनोरा से कांग्रेस धनोरा हो गया.

परिवार नियोजन के लिए देश में बनी मिसाल
1922 के अधिवेशन के बाद से ग्रामीणों में जबरदस्त जागरुकता आई है, और सभी परिवारों ने एक या दो बच्चों पर परिवार को सीमित करना शुरु कर दिया. जिसके बाद धीरे-धीरे इस गांव की जनसंख्या स्थिर होने लगी. बेटों की चाहत में परिवार को बढ़ाने की कुरीति को भी इस गांव के लोगों ने खत्म कर दिया और एक या दो बेटियों के बाद भी परिवार नियोजन अपना लिया. गांव में दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लिया है.

इस गांव के लिए बेटा-बेटी एक समान
खास बात ये है कि इस गांव के लोगों में बेटा या बेटी जैसी मानसिकता नहीं है. यहां के लोग बेटा और बेटी को एक समान दर्जा देते है. धनोरा गांव के आसपास के गांवों में अभी भी जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन धनोरा गांव ने अपने गांव की जनसंख्या को मेनटेन रखा है.

गांव की एक खास बात
इस गांव की एक और खास बात है कि इस गांव के लोग अपने खर्च पर नसबंदी करवाकर परिवार नियोजन करते आ रहे है. छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा जब से सरकार ने दिया तब से कुछ परिवारों ने सरकारी योजनाओं के तहत नसबंदी करवाना शुरु कर दिया है.

बैतूल। पूरे विश्व में जनसंख्या विस्फोट एक गहन समस्या के रुप में सभी देशों के सामने है. बात करें सर्वाधिक जनसंख्या की तो इंडिया विश्व का दूसरा देश है जिसकी जनसंख्या अधिक है. हालांकि भारत के मध्यप्रदेश के बैतूल जिले का धनोरा गांव एक ऐसा गांव है जिसकी जनसंख्या 1922 से यानी 97 सालों से स्थिर बनी हुई है. इस गांव की जनसंख्या कभी नहीं बढ़ती है, यही वजह है कि इस गांव का हर परिवार देशहित में परिवार नियोजन को अपनाता आ रहा है. इस गांव के लोग बेटों की चाहत नहीं रखते है, इस वजह से भी ये गांव एक मिसाल बना हुआ है. घनोरा गांव में ऐसे दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन अपना लिया है. वहीं इस गांव के किसी भी परिवार में एक या दो से ज्यादा बच्चे नहीं है.

एक गांव जो पूरे देश के लिए बना मिसाल

धनोरा गांव की रोचक कहानी
बैतूल जिले के आठनेर ब्लॉक का धनोरा गांव परिवार नियोजन के लिए प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल है. इस गांव की जनसंख्या 97 सालों से 1700 से आगे नहीं बढ़ी है. इस गांव की एक रोचक कहानी है. सन् 1922 में इस गांव में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था, जिसमें शामिल होने कस्तूरबा गांधी आई थी. उन्होंने ग्रामीणों को अपने भाषण में खुशहाल जीवन के लिए छोटा परिवार होने के फायदे बतलाये थे. कस्तूरबा गांधी की इस बात को ग्रामीणों ने पत्थर की लकीर मानकर परिवार नियोजन का सिलसिला शुरू किया. तभी से इस गांव का नाम धनोरा से कांग्रेस धनोरा हो गया.

परिवार नियोजन के लिए देश में बनी मिसाल
1922 के अधिवेशन के बाद से ग्रामीणों में जबरदस्त जागरुकता आई है, और सभी परिवारों ने एक या दो बच्चों पर परिवार को सीमित करना शुरु कर दिया. जिसके बाद धीरे-धीरे इस गांव की जनसंख्या स्थिर होने लगी. बेटों की चाहत में परिवार को बढ़ाने की कुरीति को भी इस गांव के लोगों ने खत्म कर दिया और एक या दो बेटियों के बाद भी परिवार नियोजन अपना लिया. गांव में दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लिया है.

इस गांव के लिए बेटा-बेटी एक समान
खास बात ये है कि इस गांव के लोगों में बेटा या बेटी जैसी मानसिकता नहीं है. यहां के लोग बेटा और बेटी को एक समान दर्जा देते है. धनोरा गांव के आसपास के गांवों में अभी भी जनसंख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन धनोरा गांव ने अपने गांव की जनसंख्या को मेनटेन रखा है.

गांव की एक खास बात
इस गांव की एक और खास बात है कि इस गांव के लोग अपने खर्च पर नसबंदी करवाकर परिवार नियोजन करते आ रहे है. छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा जब से सरकार ने दिया तब से कुछ परिवारों ने सरकारी योजनाओं के तहत नसबंदी करवाना शुरु कर दिया है.

Intro:बैतूल ।। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 15 अगस्त को लाल किले से अपने भाषण में देश देशवासियो से जनसंख्या नियंत्रण की ओर ठोस कदम उठाने की अपील की थी। बैतूल जिले में देश का एक ऐसा अनोखा गांव भी है जहां 1922 से अब तक यानी 97 सालो से जनसंख्या स्थिर बनी हुई है। इस गांव की जनसंख्या कभी नही बढ़ती है वजह है इस गांव का हर परिवार देशहित में परिवार नियोजन अपनाता आ रहा है। बेटो की चाहत रखने वाले के लिए भी ये गांव एक मिसाल है क्योंकि इस गांव में ऐसे भी दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन अपना लिया जिससे पूरे गांव जिससे पूरे गांव के किसी भी परिवार में एक या दो से ज्यादा बच्चे नही है।


Body:बैतूल जिले के आठनेर ब्लॉक का कांग्रेस धनोरा गांव परिवार नियोजन के लिए प्रदेश ही नही बल्कि पूरे देश मे एक मिसाल है। इस गांव की जनसंख्या पिछले 97 वर्षों से स्थिर बनी हुई है। 97 वर्षो से कभी भी इस गांव की जनसंख्या 1,700 से आगे नही बढ़ी है। ये कैसे हुआ इसकी भी एक रोचक कहानी है। सन 1922 में इस गांव में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था जिसमे शामिल होने कस्तूरबा गांधी आई थी। उन्होंने ग्रामीणों को अपने भाषण में खुशहाल जीवन के लिए छोटा परिवार होने के फायदे बतलाये थे। कस्तूरबा गांधी की इस बात को ग्रामीणों ने पत्थर की लकीर माना और परिवार नियोजन का सिलसिला शुरू हो गया। तभी से इस गांव का धनोरा से कांग्रेस धनोरा हो गया।

सबसे पहले इस गांव के तीन परिवारों ने महाराष्ट्र के अमरावती जाकर अपने खर्च से नसबंदी करवाकर परिवार नियोजन को अपनाया था। जिसके बाद ग्रामीणों में जबरदस्त जागरूकता आई और सभी ने परिवार नियोजन अपनाना शुरू कर दिया। इस गांव के लगभग हर परिवार ने एक या दो बच्चों पर परिवार नियोजन अपनाना शुरू किया जिससे धीरे धीरे गांव की जनसंख्या स्थिर होने लगी। बेटो की चाहत में परिवार को बढ़ाने की कुरीति को भी इस गांव के लोगो ने खत्म कर दिया और एक या दो बेटियों के बाद भी परिवार नियोजन अपना लिया। गांव में दर्जनों परिवार है जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद ही परिवार नियोजन को अपना लिया। 1960 में जब परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू हुआ तब से इस गांव का हर परिवार ने इसे मुहिम बनाकर परिवार नियोजन को अपनाना शुरू कर दिया।


खास बात यह है कि इस गांव के लोग अपने खर्चे पर नसबंदी कर परिवार नियोजन करते आ रहे थे। छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा सरकार द्वारा जब दिया गया तब कुछ परिवारो ने सरकारी योजना के तहत नसबंदी करवाना शुरू किया।




Conclusion:ग्राम कांग्रेस धनोरा के आसपास के कई गांव ऐसे है जिनकी 50 साल पहले इस गांव से आधी थी लेकिन अब इन गांवों की जनसंख्या 4 से 5 गुना बढ़ चुकी है लेकिन इस गांव की जनसंख्या 1700 से कम बनी हुई है।

बाइट -- आनंद वागद्रे ( ग्रामीण )
बाइट -- पूजा ( दो बेटियों की माँ )
बाइट -- धर्मराज धोटे ( प्रबंधक, को-ऑपरेटिव सोसाइटी कांग्रेस धनोरा )
बाइट -- राजीव टेकपुरे ( सचिव, कांग्रेस धनोरा )
बाइट -- जगदीश सिंह परिहार ( स्वास्थ्य कर्मी, कांग्रेस धनोरा )
Last Updated : Nov 15, 2019, 6:34 PM IST
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