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शिल्पकार-मूर्तिकार सबको कोरोना ने किया बर्बाद, खाने के पड़े लाले!

कोरोना महामारी ने छोटे-मोटे व्यवसाइयों व कारीगरों को कहीं का नहीं छोड़ा, मूर्तिकार, हस्तशिल्पी जैसे कारीगर के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.

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Published : Jul 20, 2020, 9:11 AM IST

loss due to lockdown
काम हुए ठप्प

बड़वानी। एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, जिसका सबसे बुरा असर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ा है. खासकर, इससे वो लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जिनका चूल्हा तभी जलता है, जब उनकी कमाई होती है. प्रदेश के आदिवासी जिले बड़वानी के हजारों ऐसे कारीगर हैं, जिनकी दिन भर की मेहनत से शाम को उनका पेट भरता था, पर इस महामारी से बचाने के लिए किए गए लॉकडाउन ने एक तरह से इन सबको बर्बाद कर दिया है. फिलहाल, अभी इनके आबाद होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं.

कोरोना ने किया सब बर्बाद!

लॉकडाउन के चलते करोड़ों लोगों के सामने जीविका का संकट खड़ा हो गया है, छोटे-मोट कारीगर जो अपने हुनर के जरिए अपना परिवार पालते थे, अब उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है क्योंकि मूर्ति की मांग बेहद कम हो गई है, जिससे मूर्ति बनाने वाले कलाकार एक तरह से बेरोजगार हो गए हैं. इसके अलावा आशा गांव में हस्तशिल्प का काम कर अपना भरण पोषण करने वाले कुष्ठ रोगी बेहाल हो गए हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई चादर-दरी की बिक्री भी ठप हो गई है.

lockdown effect on sculptures
मूर्तिकारों पर छाया संकट

आशा ग्राम के दिनेश मण्डलोई बताते हैं कि 30 सालों से उनका हस्तशिल्प का काम चल रहा था, जो अब अस्त-व्यस्त हो गया है. इसकी वजह से कई कुष्ठ रोगी परेशानियों से जूझ रहे हैं. कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामग्री का विक्रय करने वाले नानूराम पाटीदार का कहना है कि कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामान आसपास के जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग खरीदते हैं. लॉकडाउन के पहले एक लाख से ज्यादा का व्यवसाय हुआ था, लेकिन लॉकडाउन के चलते उनका व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ गया है.

lockdown effect on sculptures
मूर्तिकार परेशान

मूर्तिकारों पर छाया संकट

इसी तरह गणेशोत्सव और नवरात्रि की तैयारियों में जुटे मूर्तिकारों की भी माली हालत चिंताजनक है. मूर्तिकार जैसे-तैसे जुगाड़ कर मूर्तियां तो बना रहे हैं, लेकिन उन्हें खुद नहीं मालूम कि उनकी मूर्तियों की बिक्री होगी भी या नहीं. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि मूर्तियां बिकेंगी और उनके कर्ज का बोझ भी हल्का होगा. लेकिन बड़े पंडालों पर लगी रोक ने उनकी चिंता बढ़ा दी है. आगे भी ऐसा ही रहा तो दिहाड़ी करनी पड़ जाएगी.

lockdown effect
ईंट कारीगरों का धंधा चौपट

ये भी पढ़ें- इस लापरवाही का कौन जिम्मेदार ? पाइप लाइन में लीकेज, गंदा पानी पीने को मजबूर लोग

ईंट कारीगरों का भी धंधा चौपट

ईंट कारीगरों का कहना है कि इस महामारी के दौरान उनका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है, जबकि कोयले के भाव भी आसमान छू रहे हैं. ऐसे में घर चलाना तो दूर कर्ज चुकाने की चिंता उन्हें खाए जा रही है. इस संकट के दौर में लोग अपना मूल व्यवसाय छोड़ मजदूरी करने का मन बना रहे हैं क्योंकि इन्हें अपने व्यवसाय का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. हालांकि, कोरोना महामारी अमीर-गरीब सबके लिए चुनौती बन रही है.

बड़वानी। एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, जिसका सबसे बुरा असर गरीब और मध्यम वर्ग पर पड़ा है. खासकर, इससे वो लोग ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जिनका चूल्हा तभी जलता है, जब उनकी कमाई होती है. प्रदेश के आदिवासी जिले बड़वानी के हजारों ऐसे कारीगर हैं, जिनकी दिन भर की मेहनत से शाम को उनका पेट भरता था, पर इस महामारी से बचाने के लिए किए गए लॉकडाउन ने एक तरह से इन सबको बर्बाद कर दिया है. फिलहाल, अभी इनके आबाद होने के आसार भी नहीं दिख रहे हैं.

कोरोना ने किया सब बर्बाद!

लॉकडाउन के चलते करोड़ों लोगों के सामने जीविका का संकट खड़ा हो गया है, छोटे-मोट कारीगर जो अपने हुनर के जरिए अपना परिवार पालते थे, अब उनकी रोजी-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है क्योंकि मूर्ति की मांग बेहद कम हो गई है, जिससे मूर्ति बनाने वाले कलाकार एक तरह से बेरोजगार हो गए हैं. इसके अलावा आशा गांव में हस्तशिल्प का काम कर अपना भरण पोषण करने वाले कुष्ठ रोगी बेहाल हो गए हैं क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई चादर-दरी की बिक्री भी ठप हो गई है.

lockdown effect on sculptures
मूर्तिकारों पर छाया संकट

आशा ग्राम के दिनेश मण्डलोई बताते हैं कि 30 सालों से उनका हस्तशिल्प का काम चल रहा था, जो अब अस्त-व्यस्त हो गया है. इसकी वजह से कई कुष्ठ रोगी परेशानियों से जूझ रहे हैं. कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामग्री का विक्रय करने वाले नानूराम पाटीदार का कहना है कि कुष्ठ रोगियों द्वारा निर्मित सामान आसपास के जिलों के अलावा दूसरे राज्यों के लोग खरीदते हैं. लॉकडाउन के पहले एक लाख से ज्यादा का व्यवसाय हुआ था, लेकिन लॉकडाउन के चलते उनका व्यवसाय पूरी तरह ठप पड़ गया है.

lockdown effect on sculptures
मूर्तिकार परेशान

मूर्तिकारों पर छाया संकट

इसी तरह गणेशोत्सव और नवरात्रि की तैयारियों में जुटे मूर्तिकारों की भी माली हालत चिंताजनक है. मूर्तिकार जैसे-तैसे जुगाड़ कर मूर्तियां तो बना रहे हैं, लेकिन उन्हें खुद नहीं मालूम कि उनकी मूर्तियों की बिक्री होगी भी या नहीं. हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि मूर्तियां बिकेंगी और उनके कर्ज का बोझ भी हल्का होगा. लेकिन बड़े पंडालों पर लगी रोक ने उनकी चिंता बढ़ा दी है. आगे भी ऐसा ही रहा तो दिहाड़ी करनी पड़ जाएगी.

lockdown effect
ईंट कारीगरों का धंधा चौपट

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ईंट कारीगरों का भी धंधा चौपट

ईंट कारीगरों का कहना है कि इस महामारी के दौरान उनका धंधा पूरी तरह चौपट हो गया है, जबकि कोयले के भाव भी आसमान छू रहे हैं. ऐसे में घर चलाना तो दूर कर्ज चुकाने की चिंता उन्हें खाए जा रही है. इस संकट के दौर में लोग अपना मूल व्यवसाय छोड़ मजदूरी करने का मन बना रहे हैं क्योंकि इन्हें अपने व्यवसाय का भविष्य अंधकारमय दिख रहा है. हालांकि, कोरोना महामारी अमीर-गरीब सबके लिए चुनौती बन रही है.

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