बड़वानी। जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर कसरावद स्थित नर्मदा नदी के पार बोधवाड़ा में भगवान शंकर का अद्वितीय प्राचीन मंदिर स्थित है. जहां महाशिवरात्रि पर बड़ी दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर का नाम देवपथ शिव मंदिर है. पुराणों में उल्लेख है कि सर्वप्रथम देवताओं ने महादेव का अभिषेक कर मां नर्मदा की परिक्रमा इसी स्थान से शुरू की थी.
ये है मंदिर का महत्व
बोधवाड़ा गांव में स्थित इस मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व है. स्कंद पुराण, शिव पुराण और नर्मदा पुराण में इस मंदिर की महत्ता बताई गई है. देवपथ महादेव मंदिर का वास्तु भी अद्वितीय होकर अनूठा है. कालांतर में इस मंदिर का निर्माण श्री यंत्र धरातल पर है, तो शिवलिंगी के ऊपर रुद्र यन्त्र बना हुआ है. ऐसा माना जाता है कि यहां श्री यंत्र अनुष्ठान करने और गन्ने के रस से अनुष्ठान करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
इस मंदिर पर थी मुगलों की नजर
पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान देवपथ महादेव शिवलिंग का अखण्ड अभिषेक किया था. अब इस शिवलिंग पर गड्ढा हो गया है, इस गड्ढे में सदैव पानी जमा रहता है, जिसे लोग चमत्कार मानते हैं. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह 2 फिट बाहर और 10 फिट जमीन के अंदर समाहित है. इस मंदिर का निर्माण लगभग 12वीं शताब्दी में किया गया था. जिसका जीर्णोद्धार 18वीं शताब्दी में किया गया था. बताया जाता है कि मुगलों के आक्रमण के दौरान इस मंदिर पर भी मुगलों की नजर थी, लेकिन वे इसे ध्वस्त नहीं कर पाए. इसी के चलते मंदिर का बाहरी हिस्सा खण्डित दिखाई देता है.
इस मंदिर से जुड़े रोचक तथ्य
एक बार गांव में सूखा पड़ने पर बरसात की कामना लेकर ग्रामीणों ने मंदिर का मुख्य दरवाजा मिट्टी से ढक दिया और 10 हार्स पावर की मोटर चलाकर शिवलिंग को पानी से डूबाना चाहा, लेकिन आश्चर्य रहा कि मंदिर के गर्भगृह से पानी कहां गया इसका कोई पता नहीं चला और शिवलिंग नहीं डूबा.
रोट का दिया जाता है प्रसाद
शिवरात्रि के दिन यहां सूत के कपड़े में लपेट कर कंडे जलाकर रोट की सिकाई की जाती है. जब सुबह राख हटाकर रोट निकाला जाता है तो सूत साबुत मिलता है. इसे प्रसाद के रूप में शिवभक्तों को बांटा जाता है. यह मंदिर अपनी वास्तुकला के कारण अद्वितीय हैं. यहां विधिवत पूजा करने पर मनवांछित फल मिलता है. कहा जाता है वामन अवतार के समय असुरराज बलि ने 99 अश्वमेध पूर्ण कर लिए थे, जिससे भयभीत देवताओं को इस स्थान का बोध हुआ था तभी से इसका नाम बोधवाड़ा पड़ा है. यही से भगवान शिव की पूजा का नर्मदा परिक्रमा शुरू की गई थी.