बड़वानी। विधानसभा से लगातार अपनी जीत का परचम लहराने वाले विधायक व प्रदेश के पशुपालन और सामाजिक न्याय मंत्री प्रेम सिंह पटेल के गृहक्षेत्र सुसतीखेड़ा की स्वास्थ्य सेवाएं सुस्त हैं. जो लोग चुनाव में विधायक को जीभर कर मतदान करते हैं उन्हें बदले में बीमार होने पर अपने क्षेत्र में जिला अस्पताल में इलाज तक नसीब नहीं हो पाता है, इसके लिए उन्हें सेंधवा का रुख करना पड़ता है. इसकी वजह से लोगों को समय के साथ ही आर्थिक रूप से भी चपत लगती है. यहां पर स्वास्थ्य विभाग के एक डॉक्टर तक की व्यवस्था तक नहीं कर पाया है.
अस्पताल में एक भी डॉक्टर नहीं मौजूद: इस समय जिले में विकास को लेकर ढोल नगाड़े पीटे जा रहे हैं. जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ जिला प्रशासन भी विकास यात्रा के माध्यम से गुणगान करता नजर आ रहा है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है. यहां की स्वास्थ्य सेवाओं की अगर बात की जाए तो जिले के स्वास्थ्य विभाग में बदहाली है. विधायक के गृहक्षेत्र में ही डॉक्टरों के लाले पड़े हैं. कहने को तो पीएचसी यानी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन यहां एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं है.
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नर्स के भरोसे चल रहा अस्पताल: इस अस्पताल को बी मॉक का दर्जा मिला है, यानी हर महीने 40 से 50 महिलाओं की यहां डिलीवरी होती है. रोजाना 100 के लगभग ओपीडी पर्ची कटती है. इसके बावजूद इस अस्पताल में महीनों से एक डॉक्टर भी पदस्थ नहीं है. एक नर्स और फार्मासिस्ट के भरोसे अस्पताल चल रहा है. मजे की बात ये है की, केवल ओपीडी के समय ही दोनों मौजूद रहते हैं. बाकी सुरक्षाकर्मी के भरोसे ही ये अस्पताल चल रहा है.
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पहले मौजूद थे एक डॉक्टर: मध्यप्रदेश के कैबिनेट मंत्री प्रेम सिंह पटेल शायद प्रदेश का विकास करने के चक्कर में अपना घर ही भूल बैठे हैं. उनके गृहक्षेत्र में बी.मॉक 2 अस्पताल है, लेकिन डॉक्टर ही पदस्थ नहीं हैं या यूं कहें राजनीति के चलते कोई रहना नहीं चाहता. यहां महिलाओं की डिलीवरी के अलावा ओपीडी में मरीजों को इलाज के लिए दूसरे अस्पतालों पर निर्भर होना पड़ रहा है. पहले यहां एक डॉक्टर मौजूद था, जिसे बीएमओ बनाकर सिलावद बैठा दिया गया, वहां पहले से 3 डॉक्टर मौजूद हैं. सवाल यह उठता है की सिलावद से ज्यादा जनसंख्या घनत्व में यहां है, फिर अस्पताल में कोई डॉक्टर पदस्थ क्यों नहीं है ? पहले यहां पदस्थ बीएमओ भी अब इस अस्पताल का कभी कभार ही रुख करते हैं.