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ठंड में इलाहाबादी अमरूद की बहार, कोरोना काल में भी बढ़ी डिमांड

अपनी खास महक, लाजवाब स्वाद और विटामिन सी की भरपूर मात्रा होने के चलते ठंड में इलाहाबादी अमरूद की मांग बढ़ती जा रही है. कोरोना संक्रमण के बीच विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होने से इन दिनों इलाहाबादी अमरूद खूब पसंद किया जा रहा है.

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इलाहाबादी अमरूद की बहार
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Published : Nov 17, 2020, 12:54 PM IST

बड़वानी। ठंड आते ही इलाहाबादी अमरूद का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. इलाहाबादी अमरूद ने अपनी मिठास व रंग के कारण लोगों के बीच खास पहचान बनाई है. बड़वानी जिले में बेहतर बारिश और अच्छे मौसम के कारण इलाहाबादी अमरूद की बहार छाई हुई है.

इलाहाबादी अमरूद की बहार

जिले में नर्मदा के तटीय क्षेत्रों में उद्यानिकी फसलों में विशेष रूप से फलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इसमें केला, अमरूद ,सीताफल ,पपीता ,चीकू आदि शामिल हैं. लेकिन इन दिनों अमरूद की फसल बहार पर है. अमरूद की विशेष किस्म 'इलाहाबादी अमरूद' की मांग अधिक है. इलाहाबादी अमरूद महाराष्ट्र, दिल्ली व गुजरात में भी खूब पसंद किया जाता है. अपने खास गुणों के चलते इसे इलाहाबादी सफेदा अमरूद भी कहा जाता है.

गरीबों का सेब कहा जाता है इलाहाबादी अमरूद

वैज्ञानिकों के अनुसंधान के बाद इलाहाबादी अमरूद को गरीबों के सेब की संज्ञा दी है. इस अमरूद में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में है. सेब के समकक्ष गुण होने के कारण इसे पुअर मेन्स एप्पल भी कहते हैं. ठंड में शरीर को विटामिन सी की आवश्यकता होती है इसलिए ये मौसमी फल के साथ स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है.

फीका पड़ रहा देशी अमरूद

निमाड़ में अमरूद को जामफल भी कहा जाता है. यहां अमरूद आमतौर पर जामफल के रूप में प्रचलित है. बाजार में वैसे तो देशी अमरूद की भी खूब आवक है लेकिन इलाहाबादी अमरूद की बात ही अलग है. देशी अमरूद जहां 25 से 30 रुपए प्रति किलो बिक रहा है. वहीं इलाहाबादी अमरूद 50 से 60 रुपए किलो तक बिक रहा है. देशी अमरूद के मुकाबले काफी नरम और स्वादिष्ट होने के चलते लोग इसे बड़े चांव से खाते हैं. यदि कोई इस समय इलाहाबादी अमरूद के बगीचे के पास से गुजरे तो अमरूद की महक राहगीर का ध्यान अपनी और खींच लेती है.

किसानों को लाभ ही लाभ

जिले में करीब 300 हेक्टेयर से ज्यादा में इलाहाबादी व देशी अमरूद की बागवानी कर किसान लाभ कमा रहे हैं. पौधा लगाने के तीन से चार वर्ष तक किसान अन्य फसल भी लगाते हैं. पौधा जब फलदार पेड़ के रूप में आता है तब इस पर 100 ग्राम से 250 ग्राम का अमरूद लगता है. एक पेड़ पर 25 से 50 किलो तक इलाहाबादी अमरूद लगते हैं. इस अमरूद की खासियत इसकी एकरूपता होती है जो कि अन्य अमरूद की किस्मों से भिन्न है.

नर्मदा का क्षेत्र लाभदायक

कम पानी होने और वातावरण के अनुरूप इलाहाबादी अमरूद का उत्पादन किया जाता है. बड़वानी जिले का वातावरण काफी अनुकूल है. इसके रोपण के 4 साल बाद इसमें फल लगना शुरू होते हैं. शुरुआत में एक पौधे से 3 से 4 किलो फल प्राप्त होते है जो कि धीरे-धीरे 10 से 12 साल तक के पेड़ से 30 से 50 किलो तक इलाहाबादी सफेदा अमरूद उत्पादन होता है.

मौसम का साथ मिलने से बेहतर उत्पादन

इलाहाबादी अमरुद के पौधे को ड्रिप सिंचाई के माध्यम से भी बड़ा किया जाता है. साथ ही जिले में नर्मदा कछार होने के चलते कम बारिश और वातावरण में भी यह अमरूद फल लगना जारी रहते हैं. हालांकि इस बार बेहतर मौसम और गुनगुनी ठंड के चलते अमरूद की बगीचों में बाहर छाई हुई है.

कोरोना काल में विटामिन सी का स्रोत होने से बढ़ी मांग

कोरोना संक्रमण के चलते लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता है. वहीं अमरुद विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है. इसके चलते इन दिनों अमरूद की मांग बढ़ी हुई है. जिले में करीब 30 हजार हेक्टेयर में उद्यानिकी फसलें लगाई जाती हैं. जिसमें अमरुद करीब 15 एकड़ में लगता है.

बड़वानी। ठंड आते ही इलाहाबादी अमरूद का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है. इलाहाबादी अमरूद ने अपनी मिठास व रंग के कारण लोगों के बीच खास पहचान बनाई है. बड़वानी जिले में बेहतर बारिश और अच्छे मौसम के कारण इलाहाबादी अमरूद की बहार छाई हुई है.

इलाहाबादी अमरूद की बहार

जिले में नर्मदा के तटीय क्षेत्रों में उद्यानिकी फसलों में विशेष रूप से फलों की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इसमें केला, अमरूद ,सीताफल ,पपीता ,चीकू आदि शामिल हैं. लेकिन इन दिनों अमरूद की फसल बहार पर है. अमरूद की विशेष किस्म 'इलाहाबादी अमरूद' की मांग अधिक है. इलाहाबादी अमरूद महाराष्ट्र, दिल्ली व गुजरात में भी खूब पसंद किया जाता है. अपने खास गुणों के चलते इसे इलाहाबादी सफेदा अमरूद भी कहा जाता है.

गरीबों का सेब कहा जाता है इलाहाबादी अमरूद

वैज्ञानिकों के अनुसंधान के बाद इलाहाबादी अमरूद को गरीबों के सेब की संज्ञा दी है. इस अमरूद में विटामिन सी पर्याप्त मात्रा में है. सेब के समकक्ष गुण होने के कारण इसे पुअर मेन्स एप्पल भी कहते हैं. ठंड में शरीर को विटामिन सी की आवश्यकता होती है इसलिए ये मौसमी फल के साथ स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है.

फीका पड़ रहा देशी अमरूद

निमाड़ में अमरूद को जामफल भी कहा जाता है. यहां अमरूद आमतौर पर जामफल के रूप में प्रचलित है. बाजार में वैसे तो देशी अमरूद की भी खूब आवक है लेकिन इलाहाबादी अमरूद की बात ही अलग है. देशी अमरूद जहां 25 से 30 रुपए प्रति किलो बिक रहा है. वहीं इलाहाबादी अमरूद 50 से 60 रुपए किलो तक बिक रहा है. देशी अमरूद के मुकाबले काफी नरम और स्वादिष्ट होने के चलते लोग इसे बड़े चांव से खाते हैं. यदि कोई इस समय इलाहाबादी अमरूद के बगीचे के पास से गुजरे तो अमरूद की महक राहगीर का ध्यान अपनी और खींच लेती है.

किसानों को लाभ ही लाभ

जिले में करीब 300 हेक्टेयर से ज्यादा में इलाहाबादी व देशी अमरूद की बागवानी कर किसान लाभ कमा रहे हैं. पौधा लगाने के तीन से चार वर्ष तक किसान अन्य फसल भी लगाते हैं. पौधा जब फलदार पेड़ के रूप में आता है तब इस पर 100 ग्राम से 250 ग्राम का अमरूद लगता है. एक पेड़ पर 25 से 50 किलो तक इलाहाबादी अमरूद लगते हैं. इस अमरूद की खासियत इसकी एकरूपता होती है जो कि अन्य अमरूद की किस्मों से भिन्न है.

नर्मदा का क्षेत्र लाभदायक

कम पानी होने और वातावरण के अनुरूप इलाहाबादी अमरूद का उत्पादन किया जाता है. बड़वानी जिले का वातावरण काफी अनुकूल है. इसके रोपण के 4 साल बाद इसमें फल लगना शुरू होते हैं. शुरुआत में एक पौधे से 3 से 4 किलो फल प्राप्त होते है जो कि धीरे-धीरे 10 से 12 साल तक के पेड़ से 30 से 50 किलो तक इलाहाबादी सफेदा अमरूद उत्पादन होता है.

मौसम का साथ मिलने से बेहतर उत्पादन

इलाहाबादी अमरुद के पौधे को ड्रिप सिंचाई के माध्यम से भी बड़ा किया जाता है. साथ ही जिले में नर्मदा कछार होने के चलते कम बारिश और वातावरण में भी यह अमरूद फल लगना जारी रहते हैं. हालांकि इस बार बेहतर मौसम और गुनगुनी ठंड के चलते अमरूद की बगीचों में बाहर छाई हुई है.

कोरोना काल में विटामिन सी का स्रोत होने से बढ़ी मांग

कोरोना संक्रमण के चलते लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता है. वहीं अमरुद विटामिन सी का प्रमुख स्रोत है. इसके चलते इन दिनों अमरूद की मांग बढ़ी हुई है. जिले में करीब 30 हजार हेक्टेयर में उद्यानिकी फसलें लगाई जाती हैं. जिसमें अमरुद करीब 15 एकड़ में लगता है.

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