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हे राम ! महात्मा गांधी के दूसरे 'राजघाट' पर कब जाएगा हुक्मरानों का ध्यान ?

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Published : Oct 1, 2020, 12:21 PM IST

Updated : Oct 1, 2020, 2:20 PM IST

दिल्ली के राजघाट पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधि स्थल है, इसी की तरह बड़वानी जिले में भी एक राजघाट है, जहां बापू के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके निजी सचिव की अस्थियां सुपुर्द-ए-खाक की गई थीं.

Barwani
बड़वानी स्थित राजघाट

बड़वानी। शुक्रवार को यानि कि 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती है. कहा जाता है कि मध्यप्रदेश से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बहुत लगाव रहा है. दिल्ली के बाद बापू की दूसरी समाधि यहीं मौजूद है. यहां बापू के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके निजी सचिव की अस्थियां सुपुर्द-ए-खाक की गई थीं.

बड़वानी स्थित राजघाट

पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले बापू की जयंती व पुण्यतिथि पर दिल्ली में बनीं उनकी समाधि स्थल राजघाट पर नमन करने के लिए देश के बड़े नेता और आम लोग पहुंचते हैं, लेकिन राजघाट के अलावा मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के कुकरा बसाहट गांव में भी बापू की समाधि स्थल मौजूद है. ये राजघाट के बाद उनका दूसरा समाधि स्थल है. इसे 2017 में डूब क्षेत्र में आने के चलते प्रशासन ने कुकरा बसाहट में विस्थापित किया था.

नर्मदा नदी के किनारे बसा कुकरा गांव देश का ऐसा इकलौता स्थान है, जहां तीन महान हस्तियों की समाधि एक साथ बनी हुई है, जनवरी 1965 में गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी ने गांधीजी, उनकी पत्नी कस्तूरबा और गांधीजी के सचिव रहे महादेव भाई देसाई की अस्थियां लाकर नर्मदा किनारे इस ऐतिहासिक समाधि की नींव रखी थी, जो 12 फरवरी 1965 को बनकर तैयार हुआ था, जिसे राजघाट नाम दिया गया था, लेकिन बापू की जयंती हो या पुण्यतिथि, ज्यादातर समय यहां सन्नाटा ही पसरा रहता है.

12 फरवरी के दिन हर साल बड़वानी तहसील में शासकीय अवकाश के साथ ही बापू की स्मृति में सर्वोदय मेले का आयोजन किया जाता है. जहां लोग उनकी समाधि स्थल पर पहुंचकर बापू को याद करते हैं. हालांकि बदलते वक्त के साथ इस स्थान को लेकर प्रशासन का नजरिया भी बदलता गया, जबकि सरदार सरोवर बांध के बनने के बाद नर्मदा किनारे बना ये समाधि स्थल डूब क्षेत्र में आ गया, जिसे विस्थापित कर प्रशासन ने कुकरा बसाहट में स्थापित कर दिया है.

बड़वानी। शुक्रवार को यानि कि 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 151वीं जयंती है. कहा जाता है कि मध्यप्रदेश से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का बहुत लगाव रहा है. दिल्ली के बाद बापू की दूसरी समाधि यहीं मौजूद है. यहां बापू के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी और उनके निजी सचिव की अस्थियां सुपुर्द-ए-खाक की गई थीं.

बड़वानी स्थित राजघाट

पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले बापू की जयंती व पुण्यतिथि पर दिल्ली में बनीं उनकी समाधि स्थल राजघाट पर नमन करने के लिए देश के बड़े नेता और आम लोग पहुंचते हैं, लेकिन राजघाट के अलावा मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के कुकरा बसाहट गांव में भी बापू की समाधि स्थल मौजूद है. ये राजघाट के बाद उनका दूसरा समाधि स्थल है. इसे 2017 में डूब क्षेत्र में आने के चलते प्रशासन ने कुकरा बसाहट में विस्थापित किया था.

नर्मदा नदी के किनारे बसा कुकरा गांव देश का ऐसा इकलौता स्थान है, जहां तीन महान हस्तियों की समाधि एक साथ बनी हुई है, जनवरी 1965 में गांधीवादी काशीनाथ त्रिवेदी ने गांधीजी, उनकी पत्नी कस्तूरबा और गांधीजी के सचिव रहे महादेव भाई देसाई की अस्थियां लाकर नर्मदा किनारे इस ऐतिहासिक समाधि की नींव रखी थी, जो 12 फरवरी 1965 को बनकर तैयार हुआ था, जिसे राजघाट नाम दिया गया था, लेकिन बापू की जयंती हो या पुण्यतिथि, ज्यादातर समय यहां सन्नाटा ही पसरा रहता है.

12 फरवरी के दिन हर साल बड़वानी तहसील में शासकीय अवकाश के साथ ही बापू की स्मृति में सर्वोदय मेले का आयोजन किया जाता है. जहां लोग उनकी समाधि स्थल पर पहुंचकर बापू को याद करते हैं. हालांकि बदलते वक्त के साथ इस स्थान को लेकर प्रशासन का नजरिया भी बदलता गया, जबकि सरदार सरोवर बांध के बनने के बाद नर्मदा किनारे बना ये समाधि स्थल डूब क्षेत्र में आ गया, जिसे विस्थापित कर प्रशासन ने कुकरा बसाहट में स्थापित कर दिया है.

Last Updated : Oct 1, 2020, 2:20 PM IST
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