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बूंद-बूंद को तरसे ग्रामीण, काफी मेहनत के बाद नसीब होता है पीने लायक पानी

विकराल गर्मी में प्रदेश के कुछ इलाके तो ऐसे हैं कि लोगों को पीने का पानी मिल जाए तो उनकी किस्मत है. बालाघाट के ग्रामीण अंचलों में लोग नदी-नालों में झिरिया खोदकर अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी जुटा रहे हैं.

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Published : Jun 6, 2020, 8:33 AM IST

water crisis in Balaghat during summer season
नसीब से मिलता है पानी

बालाघाट। मध्यप्रदेश की सत्ता में आने के लिए राजनीतिक पार्टियां विकास के कई दावे करती हैं, वहीं सरकार भी विकास के दावे करके थकती नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. भीषण गर्मी में पीने के पानी के लिये प्रदेश के कई जिलों में लोग रोजाना संघर्ष करते हैं. इस विकराल गर्मी में प्रदेश के कुछ इलाके तो ऐसे हैं कि लोगों को पीने का पानी मिल जाए तो उनकी किस्मत है. ऐसा ही हाल है बालाघाट के ग्रामीण अंचलों का है जहां लोग नदी-नालों में झिरिया खोदकर अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी जुटा रहे हैं.

नसीब से मिलता है पानी

पेयजल के लिए ग्रामीण इलाकों में जद्दोजहद ऐसी की जिम्मेदार देखकर शर्म खा जाएं. लेकिन राजनेता तो बस हर चुनाव में वादे करते हैं. बेबस ग्रामीण और खासकर मासूम बच्चे नदी नालों में गड्ढा खोदकर पानी पीने को मजबूर हैं. ये हाल जिले में कही एक जगह का नहीं है बल्कि पूरे जिले में ही पानी की किल्लत है. कुछ इलाकों में जलस्तर भी सैकड़ों फीट नीचे जा रहा है जिससे लोगों की चिंता भविष्य के लिहाज से कई गुना बढ़ रही है.

हर साल गर्मी के मौसम में यहां के लोग बूंद बूंद के लिए संघर्ष करते है. पानी की कमी की वजह से कई क्षेत्रों में फसलों पर भी खासा असर पड़ा ही है कई बार प्यास या फिर गंदा पानी पीने के कारण लोगों की तबियत भी बिगड़ने लगती है. भयावह हालात पर जिम्मेदार अफसोस तो जताते हैं लेकिन जलसंकट से उबारने के लिए कोई जमीनी काम नहीं करते हैं. हालांकि बालाघाट कलेक्टर का कहना है कि जिले में इस बार पेयजल की कोई समस्या नहीं है सभी को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं एसपी तालमेल बैठाकर कार्य करने का भरोसा जता रहे हैं.

एक तरफ बालाघाट जिले के लामता क्षेत्र के घांघरिया गांव में मासूम बच्ची नदी में गड्ढा खोदकर उसमें से थोड़ा-थोड़ा पीने के पानी का इंतजाम कर रही है. वहीं दूसरी ओर जिले के दुरस्त नक्सल प्रभावित इलाके पाथरी के आमाटोला और मढ़ी टोला में आदिवासी बैगा जनजाति के लोग नाले में झिरिया बनाकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं. तो कहीं नन्ही बच्ची अपनी और अपने दुधमुहे भाई को पलसे के पत्ते का दोना बनाकर पानी पिला रही है.

इन इलाकों में पेयजल की समुचित व्यवस्था लचर ही दिखाई देती है. सरकारों ने नल-जल योजना की शुरूआत की जिसमें लाखों करोड़ों खर्च कर पानी की टंकियां बनाई गईं, सैकड़ों हैंडपंप खुदवाए गए पर पानी के लिए तरस रहे बालाघाट के ग्रामीणों की समस्या दूर नहीं हुई. ऐसे में बिन पानी सब सुन वाली कहावत जलसंकट से ग्रसित इस इलाके के लोगों पर सटीक बैठ रही है. यहां के हालात देख लगता है ये जलसंकट अब इन लोगों की जिंदगी से शायद नहीं जाएगा.

बालाघाट। मध्यप्रदेश की सत्ता में आने के लिए राजनीतिक पार्टियां विकास के कई दावे करती हैं, वहीं सरकार भी विकास के दावे करके थकती नहीं है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. भीषण गर्मी में पीने के पानी के लिये प्रदेश के कई जिलों में लोग रोजाना संघर्ष करते हैं. इस विकराल गर्मी में प्रदेश के कुछ इलाके तो ऐसे हैं कि लोगों को पीने का पानी मिल जाए तो उनकी किस्मत है. ऐसा ही हाल है बालाघाट के ग्रामीण अंचलों का है जहां लोग नदी-नालों में झिरिया खोदकर अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी जुटा रहे हैं.

नसीब से मिलता है पानी

पेयजल के लिए ग्रामीण इलाकों में जद्दोजहद ऐसी की जिम्मेदार देखकर शर्म खा जाएं. लेकिन राजनेता तो बस हर चुनाव में वादे करते हैं. बेबस ग्रामीण और खासकर मासूम बच्चे नदी नालों में गड्ढा खोदकर पानी पीने को मजबूर हैं. ये हाल जिले में कही एक जगह का नहीं है बल्कि पूरे जिले में ही पानी की किल्लत है. कुछ इलाकों में जलस्तर भी सैकड़ों फीट नीचे जा रहा है जिससे लोगों की चिंता भविष्य के लिहाज से कई गुना बढ़ रही है.

हर साल गर्मी के मौसम में यहां के लोग बूंद बूंद के लिए संघर्ष करते है. पानी की कमी की वजह से कई क्षेत्रों में फसलों पर भी खासा असर पड़ा ही है कई बार प्यास या फिर गंदा पानी पीने के कारण लोगों की तबियत भी बिगड़ने लगती है. भयावह हालात पर जिम्मेदार अफसोस तो जताते हैं लेकिन जलसंकट से उबारने के लिए कोई जमीनी काम नहीं करते हैं. हालांकि बालाघाट कलेक्टर का कहना है कि जिले में इस बार पेयजल की कोई समस्या नहीं है सभी को पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध कराया जा रहा है. वहीं एसपी तालमेल बैठाकर कार्य करने का भरोसा जता रहे हैं.

एक तरफ बालाघाट जिले के लामता क्षेत्र के घांघरिया गांव में मासूम बच्ची नदी में गड्ढा खोदकर उसमें से थोड़ा-थोड़ा पीने के पानी का इंतजाम कर रही है. वहीं दूसरी ओर जिले के दुरस्त नक्सल प्रभावित इलाके पाथरी के आमाटोला और मढ़ी टोला में आदिवासी बैगा जनजाति के लोग नाले में झिरिया बनाकर अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं. तो कहीं नन्ही बच्ची अपनी और अपने दुधमुहे भाई को पलसे के पत्ते का दोना बनाकर पानी पिला रही है.

इन इलाकों में पेयजल की समुचित व्यवस्था लचर ही दिखाई देती है. सरकारों ने नल-जल योजना की शुरूआत की जिसमें लाखों करोड़ों खर्च कर पानी की टंकियां बनाई गईं, सैकड़ों हैंडपंप खुदवाए गए पर पानी के लिए तरस रहे बालाघाट के ग्रामीणों की समस्या दूर नहीं हुई. ऐसे में बिन पानी सब सुन वाली कहावत जलसंकट से ग्रसित इस इलाके के लोगों पर सटीक बैठ रही है. यहां के हालात देख लगता है ये जलसंकट अब इन लोगों की जिंदगी से शायद नहीं जाएगा.

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