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पांडवों ने की थी इस मंदिर की स्थापना, विराजमान है मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा

आगर मालवा के नलखेड़ा में स्थित मां बगलामुखी मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र माना जाता है. बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना करीब पांच हजार साल हुई थी. जिसे पांडवों ने बनाया था. नवरात्रि में यहां भक्तों की भारी भीड़ लगी रहती हैं.

आगर मालवा में स्थित है मां बगलामुखी मन्दिर
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Published : Oct 4, 2019, 11:55 AM IST

Updated : Oct 4, 2019, 12:55 PM IST

आगर-मालवा। जिले में भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है. यहां भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है. बात कर रहे है आगर मालवा के नलखेड़ा में स्थित मां बगलामुखी मंदिर की. ऐसा कहा जाता है कि यहां माता दिन में तीन बार रूप बदलती हैं.

विराजमान है मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा

कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी. मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर ही विराजित है, एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और तीसरी नलखेड़ा में. ऐसा कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आदी शंकराचार्य जी ने मां की प्रतिमा स्थापित की थी. लेकिन नलखेडा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित हैं, जिसके चलते यह मंदिर विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्द है.

भक्ति और उपासना की अनोखी डोर
यहां प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजरी लगाना और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का यह सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है. वही भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तो को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास द्रश्य को निर्मित करती है.

चमत्कारी मूर्ति की स्थापना
मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है, यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है, काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था. तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. तब पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपात्तियों से मुक्ति पायी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया.

तंत्र क्रियाएं
बता दें कि मंदिर के उत्तर दिशा में भेरव महाराज का स्थान है और साथ ही पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा है. मंदिर के चारों दिशाओं में शमशान की मौजूदगी तंत्र क्रियाओं का आभास कराती है. मंदिर में कई बार यहां पर आसपास तांत्रिक तंत्र क्रियाएं करते हुए देख सकते है.

आगर-मालवा। जिले में भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है. यहां भक्तों की सभी मनोकामना पूरी होती है. बात कर रहे है आगर मालवा के नलखेड़ा में स्थित मां बगलामुखी मंदिर की. ऐसा कहा जाता है कि यहां माता दिन में तीन बार रूप बदलती हैं.

विराजमान है मां बगलामुखी की स्वयंभू प्रतिमा

कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना पांडवों ने की थी. मां बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर ही विराजित है, एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और तीसरी नलखेड़ा में. ऐसा कहा जाता है कि नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आदी शंकराचार्य जी ने मां की प्रतिमा स्थापित की थी. लेकिन नलखेडा में इस स्थान पर मां बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित हैं, जिसके चलते यह मंदिर विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्द है.

भक्ति और उपासना की अनोखी डोर
यहां प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तों का मां के दरबार में हाजरी लगाना और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए अर्जी लगाने का यह सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है. वही भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तो को मां के आशीर्वाद से बांधे हुए खास द्रश्य को निर्मित करती है.

चमत्कारी मूर्ति की स्थापना
मां बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है, यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है, काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है. ऐसा कहा जाता है कि महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें मां बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था. तब मां की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी. तब पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपात्तियों से मुक्ति पायी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया.

तंत्र क्रियाएं
बता दें कि मंदिर के उत्तर दिशा में भेरव महाराज का स्थान है और साथ ही पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा है. मंदिर के चारों दिशाओं में शमशान की मौजूदगी तंत्र क्रियाओं का आभास कराती है. मंदिर में कई बार यहां पर आसपास तांत्रिक तंत्र क्रियाएं करते हुए देख सकते है.

Intro:आगर मालवा।- - मां के भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदीर जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है....यहां भक्तों की सभी मनोकामनाऐं पुरी होती है.... देश विदेश के भक्‍तो सहित कई जाने माने नेता अभिनेता, मंत्रीगण तक इस वर्ष मंदिर में दर्शन कर चुके है...... महाभारत काल में यहीं से पाण्डवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था.....आगर मालवा जिले के नलखेड़ा मे स्थित विश्‍व प्रसिद्ध तांत्रीक स्‍थली मां बगलामुखी के पावन धाम की विशेष रिपोर्ट ..जो अपने आपमें एक सिद्ध पीठ है....

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर से 100 किलोमीटर दूर ईशान कोण में आगर मालवा जिला मुख्‍यालय से 35 किलोमीटर दुर नलखेडा में लखुन्दर नदी के तट पर पूर्वी दिशा में विराजमान .... माँ बगलामुखी ..... सभी कामो की सिद्धि दात्री माँ बगलामुखी ..... जिनके एक और धन दायिनी महा लक्ष्मी .... और दूसरी और विद्या दायिनी महा सरस्वती विराजित है। माँ बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित है .... एक नेपाल में दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक यहाँ साक्षात नलखेडा में। कहा जाता है की नेपाल और दतिया में श्री श्री 1008 आद्या शंकराचार्य जी द्वारा माँ की प्रतिमा स्थापित की गयी जबकि नलखेडा में इस स्थान पर माँ  बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित है। प्राचीन काल में यहाँ बगावत नाम का गाँव हुआ करता था। यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्द है। माँ बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और माँ हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती है। सोने जैसे पीले रंग वाली, चाँदी के जैसे सफेद फूलो की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरुप बरबस अपनी और आकर्षित  करता है।
Body:प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले ही सिंह मुखी द्वार से प्रवेश के साथ ही भक्तो का माँ के दरबार में हाजरी लगाना और अपनी मनोकामनाओ की पूर्ति के लिए अर्जी लगाना यह सिलसिला अनादी काल से चला आ रहा है। भक्ति और उपासना की अनोखी डोर भक्तो को माँ के आशीर्वाद से बांधे हुए खास द्रश्य निर्मित करती है। मूर्ति की स्थापना के साथ जलने वाली अखंड ज्योत आस्था को प्रकाशमान किये हुए है।
बता दे कि माँ बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी  मूर्ति की स्थापना का कोई एतिहासिक प्रमाण नही मिलता है। किवंदिती है की यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। काल गणना के हिसाब से यह स्थान करीब पांच हजार साल से भी पहले से स्थापित है। कहा जाता है की महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें माँ बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने करने के लिए कहा था तब माँ की मूर्ति एक चबूतरे पर विराजित थी। पांडवो ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपात्तियो से मुक्ति पायी और अपना खोया हुआ राज्य वापस पा लिया यह एक ऐसा शक्ति स्वरूप है जहा कोई छोटा बड़ा नही है। सभी के दुखो का निवारण करती है यह शत्रु की वाणी और गति का नाश करती है और अपने भक्तो को अभयदान देती है।
बगलामुखी के इस मंदिर के आस पास की संरचना देवीय शक्ति के साक्षात होने का प्रमाणित करती है। मंदिर के उत्तर दिशा में भेरव महाराज का स्थान पूर्व में हनुमान जी की प्रतिमा वही मंदिर के पिछे लखुन्‍दर नदी बहती है। मंदिर के चारो दिशाओं में शमशान की मौजूदगी तंत्र क्रियाओं का आभास कराती है। कई बार यहां पर मंदिर के आसपास  तंत्र क्रियाएं करते हुए देखा जा सकता हैा
 यहाँ की विशेष बात यह है कि गर्भगृह के ठीक सामने कच्छप की मूर्ति इस बात का प्रमाण है की प्राचीन काल में यहाँ बलि दी जाती रही होगी।  मूल मंदिर के दक्षिण में बाहर की तरफ एक शिव मंदिर बना हुआ है जो पहले मठ के रूप में था उसके पास ही एक पुरातात्विक महत्त्व की छत्री बनी हुई है .... मंदिर के सामने बाहर सूर्य मुखी हनुमान मंदिर पर चल रहा अखंड रामायण पाठ आस्था की डोर को मजबूती प्रदान कर रहा है ... मंदिर के चारो दिशाओं शमशान की मौजूदगी तंत्र क्रियाओं आभास कराती है .... 
मंदिर परिसर में हवन कुण्ड है जिसमे आम और खास सभी भक्त अपनी आहुति देते है ... नवरात्र के दौरान हवन की क्रियाओं को संपन्न कराने का विशेष महत्त्व है .... अपनी मनो कामनाओ की पूर्ति के लिए किये जाने वाले इस हवन में तिल, जो, घी, नारियल , आदि का होम किया जाता है ... कहते है माता के सामने हवन करने से सफलता के अवसर दोगुने हो जाते है .. 
 माँ बगलामुखी के इस मंदिर का शिल्प नयनो को सुकून देने वाला है मंदिर के  मौजूदा स्वरुप का निर्माण करीब पंद्रह सौ साल पहले राजा विक्रमादित्य  के काल में हुआ। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तिन फीट के आस  पास है दीवारों की बाहर की तरफ की गयी कला कृति आकर्षक है  और पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती है मंदिर के ठीक सामने अस्सी फीट ऊँची दीपमाला दिव्य  ज्योत को अलंकृत करती हुई विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है। मंदिर में सौलह खम्बो का सभा मंडप बना हुआ है जो करीब 250 साल पहले बनाया गया है ... शिला लेख पर अंकित वर्णन से मालूम होता है की इस सभा मंडप का निर्माण संवत 1815 में कारीगर तुलाराम ने कराया था।
Conclusion:बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरुप की है। पीत यानि पिला इसलिए यहाँ पीले रंग की सामग्री चढ़ाई  जाती है। पिला कपडा, पिली चूनरी, पिला प्रसाद ... पीले फूल, आदि। अनेको अनेक चमत्कारों का पुलिंदा लिए इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए स्वस्तिक बनाने का प्रचलन है मनोकामनाओ की पूर्ति यहाँ होती है। दुखो का निवारण यहाँ होता  है माँ सभी को बुलाती है भक्ति के आगे सीमाए छोटी पड़ जाती है।
मां के इस मंदिर में पुरे वर्ष भर भक्‍तो का तांता लगा रहता है, इस मंदिर में प्रधानमंत्री मोदी के परिवारजन सहित कई केन्‍द्रीय मंत्री सहित कई दिग्‍गज नेताओ का आना हुआ है तो कई अभिनेता व अभिनेत्रीयां भी मां के दरबार में माथा टेक चुकी हैं, मां के मंदिर में हवन करने से शत्रुओ पर विजयी प्राप्‍त होती है, इसी के चलते चुनावो के समय तो मां के आर्शीवाद के लिए नेतागण मंदिर में माथा टेकते और हवन करते हुए आसानी से देखे जा सकते है।

विजुअल- मन्दिर, परिसर, प्रतिमा, आरती, श्रद्धालु, भंडारे व तन्त्र साधना करते हुवे के है

बाईट- विक्रम यादव, तिरंगा यात्रा ले मन्दिर पहुचे श्रद्धालु।
बाईट- राणा चितरंजन सिंह, सुसनेर से बगलामुखी के लिए 51 मीटर की चुनर लेकर पहुचे समाजिक कार्यकर्ता।

बाईट- मनोहर लाल पंडा, पुजारी माँ बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा।
Last Updated : Oct 4, 2019, 12:55 PM IST
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