आगर-मालवा। प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को होने वाले नुकसान से राहत देने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की गई है, लेकिन आगर-मालवा में किसानों को 2018 में हुए नुकसान की बीमा क्लेम की राशि अब तक नहीं मिली है. प्रीमियम भरने के बावजूद प्रदेश में हजारों किसानों को अब भी फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है. आलम ये है कि, 2018 में किसानों को हुए नुकसान की भरपाई अब तक नहीं हो पाई है, जिस वजह से किसानों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. फसल बीमा राशि के लिए किसान कभी बैंक, तो कभी अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, इसके बावजूद किसानों के हाथ कुछ नहीं लग रहा है.
भर रहे प्रीमियम, नहीं मिल रहा लाभ
जिले में फसल बीमा योजना को लेकर किसानों के बुरे हाल हैं. 2018 में जिले के ज्यादातर गांवों के हजारों किसानों को काफी नुकसान हुआ था, जिसकी बीमा राशि उन्हें अब तक नहीं मिली है. वहीं बीमा की राशि और प्रीमियम किसानों के खातों से हर साल कट रही है. इसके बावजदू उन्हें जगह-जगह चक्कर काटने पड़ रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने शुरू की थी योजना
प्राकृतिक आपदाओं जैसे अतिवृष्टि, ओलावृष्टि, सूखा, बाढ़ और आंधी से फसलों को होने वाले नुकसान से राहत देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की थी. इसके तहत किसानों को खरीफ की फसल के लिए दो प्रतिशत प्रीमियम और रबी की फसल के लिए 1.5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है. इसके अलावा वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए किसानों को पांच प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है. नियमों के मुताबिक फसल की बुवाई के 10 दिनों के अंदर किसानों को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का फॉर्म भरना जरूरी है. फसल काटने से 14 दिनों के अंदर फसल को प्राकृतिक आपदा के कारण नुकसान होता है, तभी बीमा योजना का लाभ मिलता हैं.
प्रीमियम की नहीं दी जाती रसीद
बीमे की रकम का लाभ किसानों को तभी मिलेगा, जब फसल किसी प्राकृतिक आपदा की वजह से खराब हो गई हो. कृषि ऋण देने वाले बैंक सहकारी संस्था स्वयं ही प्रीमियम की राशि काटकर फसल बीमा करने वाली प्राइवेट बीमा कंपनी को प्रस्तुत कर देती हैं. काटी गई बीमा प्रीमियम की राशि के एवज में किसानों को किसी तरह की रसीद भी नहीं दी जाती है. आलम यह है कि, ज्यादातर जिलों में बीमा कंपनी के दफ्तर और प्रतिनिधि ही नहीं हैं.
चक्कर काट-काटकर हो गए परेशान
किसान रूपनारायण माली ने बताया कि, वे अपनी पत्नी, बेटे और बहू के नाम से संचालित पांच कृषि खातों की करीब 60 बीघा जमीन पर हर साल सहकारी संस्था से ऋण लेते हैं और हर फसल का बीमा करवाते हैं. हर साल प्रीमियम तो कट जाती है, लेकिन फसल बीमा का लाभ नहीं मिलता है. साल 2018 में भी फसल को नुकसान हुआ, लेकिन उसका क्लेम उन्हें आज तक नहीं मिला. माली अधिकारियों के चक्कर काट-काट कर परेशान हो चुके हैं, लेकिन हाथ कुछ नहीं आया.
किसको लगाएं गुहार ?
वहीं किसान रामचंद्र ने बताया कि, उनकी संतरे की फसल थी, जिसे 2018 में काफी नुकसान हुआ था, लेकिन तब का बीमा आज तक नहीं मिला है. परेशान होकर उन्होंने संतरे के पौधे काटकर सब्जी की खेती शुरू कर दी. प्राकृतिक आपदा से नुकसान होता है. हर साल प्रीमियम कटती है, नुकसानी का आंकलन करने अधिकारी भी आते हैं, लेकिन शिवाय दिखावे के कुछ नहीं होता. कंपनियां फसल बीमा योजना के नाम पर किसानों के साथ ठगी कर रही हैं.
किया गया भेदभाव
आवर गांव में करीब 100 बीघा जमीन पर खेती करने वाले नारायण सिंह की फसल बीमा योजना को लेकर शिकायत थोड़ी अलग है. नारायण सिंह ने बताया कि, गांव के एक भी किसान को फसल बीमा योजना का लाभ नहीं मिला है, जबकि उनकी सीमा क्षेत्र से लगने वाले आसपास के दूसरे गांव के किसानों को इसका पूरा लाभ मिल गया है. वे योजना के अमल में भेदभाव का भी आरोप लगाते हैं.
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जब इस सम्बंध में जिला सहकारी बैंक के नोडल अधिकारी सुरेश शर्मा से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि सरकारी व्यवस्था में फसल नुकसान के आकलन के लिए पटवारी और कृषि विभाग के अधिकारी मिलकर किसानों के खेत पर जाकर नुकसान का आकलन करते हैं. कई गांव के किसान इस योजना का लाभ नहीं उठा पाते हैं.