उज्जैन। जीवाजी वेधशाला वैसे तो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन अब यहां की नक्षत्र वाटिका भी लोगों को अपनी ओर खींचने को विवश कर देगी. नक्षत्र वाटिका का शुक्रवार को स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने उद्धाटन किया. वाटिका में सूर्य और आठ ग्रहों के मॉडल बनाए गए हैं. सूर्य से सभी ग्रहों की दूरी, तुलनात्मक आकार, मूल रंग और परिक्रमा को दर्शाया गया है.
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भारतीय काल गणना को स्थापित करने का प्रयाश
विज्ञान के बारे में सटीक जानकारी रखने वाले स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा कि उज्जैन का स्थान काल गणना की दृष्टि से बहुत प्राचीन रहा है, दुनिया में प्राचीन रही काल गणना को बीच में भुला दिया गया था, लेकिन अब वापस इस को सामने लाने का अभियान चलाया गया है. भारतीय काल गणना के महत्व को दर्शाने के लिए हम चाहते हैं इसका निरंतर विकास होता रहे.
300 साल पहले हुआ था इसका निर्माण
मंत्री मोहन यादव ने कहा कि उज्जैन बाबा महाकाल की नगरी होने के साथ-साथ इसका भौगोलिक व खगोलीय दृष्टि से भी अधिक महत्व है. उन्होंने कहा कि आज तक 5G, 4G, 3G ,2G का अविष्कार हुआ सब स्पेस टेक्नोलॉजी के माध्यम से ही हुआ है. हम हमारी टेक्नोलॉजी की वजह से ही पूरे विश्व में आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि 300 साल पहले राजा देह सिंह ने इस वेधशाला का निर्माण पूरे 5 सालों में किया था. उनका उद्देश्य प्राचीन भारतीय खगोल गणित को अधिक सटीक बनाना था, जिसके बाद वेधशाला का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है.
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विज्ञान का पर्यटन बढ़ाना उद्देश्य
उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने कहा कि इस वेधशाला के जैसे ही डोंगला वेधशाला नासा से भी ज्यादा उन्नत श्रेणी में जाने वाली है. इसके लिए आईआईटी इंदौर से एमओयू हुआ है. उन्होंने कहा कि डोंगला वेधशाला फिजिक्स साइंस की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध हुई है. उन्होंने कहा कि उज्जैन को साइंस सिटी के रूप में विकसित किया जाना है. उज्जैन विज्ञान की नगरी है तो यहां विज्ञान का पर्यटन बढ़ाना हमारा उद्देश्य है.
क्या है नक्षत्र वाटिका में
वाटिका में 12 राशियों, उनके तारा समूह और आकार को भी मॉडल के रूप में बनाकर सौरमंडल की परिकल्पना की गई है. इसी तरह 27 नक्षत्रों के बारे में भी बताया गया है. उनके साथ उनके औषधीय वृक्षों को भी लगाया गया है. वाटिका में राशियों, नक्षत्रों और प्रमुख तारा मंडलों की आकाशीय स्थिति को समझने के लिए स्टार ग्लोब की मदद ली जा सकेगी. इस ग्लोब के माध्यम से विश्व के किसी भी देश का समय (क्लॉक टाइम) का पता लगाया जा सकता है.
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1719 में हुई था स्थापना
वेधशाला जंतरमंतर यानी जीवाजी वेधशाला की स्थापना वर्ष 1719 में जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था. उनका उद्देश्य प्राचीन भारतीय खगोल गणित को अधिक सटीक बनाना था. वेधशाला का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है, यहां पर आठ इंच व्यास का टेलिस्कोप है जिससे सौरमंडल में होने वाले परिवर्तनों को देखा जाता है.