सागर। सागर शहर से 13 किमी दूरी पर गुजरने वाली कड़ान नदी पर सतगढ़ कढ़ान मध्यम सिंचाई परियोजना के (Kadan Medium Irrigation Project) अंतर्गत बांध बनाया जा रहा है. करीब 497 करोड़ की इस परियोजना से 53 गांव की 24 हजार एकड़ भूमि सिंचित होगी, तो वहीं 107 गांव को पीने का पानी मिलेगा. परियोजना का करीब 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है, लेकिन दुखद पहलू ये है कि कड़ान नदी के नजदीक बने सतगढ़ के किले और कलचुरी काल की सभ्यता के बिखरे हुए अवशेष बांध में डूब में चले जाएंगे. स्थानीय लोगों ने इसकी जानकारी इंडियन नेशनल ट्रस्ट आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) से जुड़े रजनीश जैन को दी, तो उन्होंने इस सभ्यता को बचाने के लिए स्थानीय स्तर पर प्रयास तेज किए और शासन प्रशासन का ध्यान खींचा. उनकी पहल पर राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग और केंद्र सरकार के आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने यहां पर सर्वेक्षण किया और पाया कि ये सभ्यता करीब साढ़े 11 सौ साल पुरानी है और इसका इतिहास कलचुरी काल से जुड़ा हुआ है. इस सब के बीच इस सभ्यता से जुड़े अवशेषों के संरक्षण के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किया गया.
जंगल में बिखरे पड़े है 78 ऐतिहासिक अवशेष: रजनीश जैन बताते हैं कि सतगढ़ कड़ान मध्यम सिंचाई परियोजना का जब काम शुरू हुआ और काफी प्रगति हो गई तो मुझे जानकारी मिली कि वहां मौजूद इस सतगढ़ का किला कड़ान नदी के नाले में परिवर्तित हो जाने के कारण जंगल में छुप गया था और पर्यटकों की आवाजाही से दूर हो गया था. उन्होंने कहा कि अब सिंचाई परियोजना के कारण पूरी विरासत डूब रही है, जानकारी लगने पर जब मैं बांध की साइट पर पहुंचा तो वहां के स्थानीय आदिवासी हमें नाला पार करके ले गए और उन्होंने जानकारी दी की किले के अलावा तीन मंदिरों के अवशेष भी हैं, जिन्हें स्थानीय लोग मढ़ बोलते हैं. इसके अलावा इन मंदिरों से निकाली गई मूर्तियां भी यहां बिखरी पड़ी हुई हैं, यहां के पहाड़ों पर रॉक पेंटिंग है जिन पर सागर विश्वविद्यालय के आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट के श्याम कुमार पांडे ने बहुत काम किया था. रजनीश बताते हैं कि सारी जानकारी जुटाने के बाद राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग और आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया से संपर्क हुआ और यहां सर्वे किया गया, यहां की कलाकृतियों का दस्तावेजीकरण किया गया और संरक्षण की संभावनाओं पर विचार किया गया. राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग ने ऐसे 78 अवशेष पाए, जिनका संरक्षण किया जा सकता था लेकिन अब तक राज्य सरकार द्वारा इनको बचाने की पहल नहीं की गई है और वो जंगल में जस के तस पड़े हुए हैं.
1892 में ब्रिटिश इतिहासकार और फोटोग्राफर ने किया था दौरा: रजनीश जैन ने बताया कि जब आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया सर्वे करने आया, तो मुझे साथ में ले गए. उन्हें वहां पर दो अभिलेख मिले, जब अभिलेख के बारे में जानकारी जुटाई गई और उनका व्यापक अध्ययन किया गया तो पता चला कि 1892 में हेनरी क्यूजीन नाम के इतिहासकार और फोटोग्राफर यहां आए थे और यहां से कुछ अभिलेख और कलाकृतियां अपने साथ ले गए थे जो इस समय ओल्ड आर्टलरी मेस सागर में रखी हुई हैं, इसके अलावा एक सती स्तंभ भोपाल के स्टेट आर्कियोलॉजिकल म्यूजियम में रखा हुआ है.
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बिना एनओसी लिए कर दिया बांध का काम शुरू: नियमानुसार जब भी कोई निर्माण कार्य होता है और आसपास कोई ऐतिहासिक या प्राचीन विरासत होती है, तो निर्माण एजेंसी को पुरातत्व विभाग और आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया से एनओसी लेकर काम शुरू करना पड़ता है. लेकिन सिंचाई परियोजना का निर्माण कर रही एजेंसी ने कोई एनओसी नहीं ली, इसी के साथ अब बांध बनने से वहां मौजूद अवशेष और कलाकृतियां पानी में डूब जाएंगे. ऐतिहासिक अवशेषों में कई कलाकृतियां, पुराने समय के कुएं, और कई प्राचीन सभ्यता के सिक्के आदि मौजूद है, इस इलाके में बंजारों की बसती का भी प्रमाण मिला है.
तत्कालीन कलेक्टर ने किए थे संरक्षण के प्रयास: रजनीश जैन ने यह भी बताया कि कलचुरी राजवंश के राजा शंकर गन की रानी द्वारा यहां के मंदिर बनावाए गए थे, जिसका उल्लेख सागर की ओल्ड आर्टिलरी मैस में रखे अभिलेख में है. 850 से 900 ईंसवी के आसपास के अवशेष हैं. बाद में 1669 के आसपास औरंगजेब ने इनको जानबूझकर नष्ट कर दिया, इसके संरक्षण में तत्कालीन कलेक्टर दीपक सिंह ने बड़ी रुचि दिखाई थी. खासकर रॉक पेंटिंग को लेकर वह काफी उत्साहित थे, उन्होंने कलाकृतियों को संग्रहालय तक ले जाने के लिए प्रयास भी किए थे, लेकिन उस समय संसाधन उपलब्ध नहीं हो सके थे.