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Sagar: दैवीय प्रकोप से बचाव और मनोकामना पूर्ति के लिए सदियों से चली आ रही बुंदेलखंड में अनोखी परंपरा, जानें- क्या है महत्व? - Sher Nritya in Chaitra or Shardiya Navratri

MP के बुंदेलखंड में अनेकों परंपराएं हैं, जो सदियों से चली आ रही हैं. उन्हीं में से एक है 'शेर नृत्य'. लोगों की मान्यता है कि, चैत्र या शारदीय नवरात्रि में इस नृत्य के माध्य से किसी बीमारी के प्रकोप या संकट के समय समाधान के लिए किया जाता है. मनोकामना पूर्ति के लिए लोग या तो स्वयं शेर की पोशाक पहनकर अथवा अखाड़े वालों के माध्यम से शेर नृत्य कराते हैं.

Unique tradition for centuries in Bundelkhand
बुंदेलखंड में सदियों से चली आ रही अनोखी परंपरा
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Published : Oct 6, 2022, 7:47 PM IST

Updated : Oct 6, 2022, 8:50 PM IST

सागर। बुंदेलखंड में नवरात्रि के अवसर पर शेर नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है. आमतौर पर ये परंपरा देवी के प्रकोप से बचने और मनोकामना पूर्ति के लिए निभाई जाती है. शेर नृत्य की परंपरा निभाने के लिए माता के भक्त शेर का भेष धारण करते हैं और वीररस से पूर्ण अखाड़े जैसी धुन पर नृत्य करते हैं. हालांकि बदलते दौर में धीरे-धीरे ये परंपरा कमजोर हो रही है. लेकिन कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरा को अभी भी सहेज कर रखा गया है. खासकर अखाड़े वाले नवरात्रि में शेर नृत्य की परंपरा निभाने का काम अभी भी कर रहे हैं और किसी गांव या कस्बे में जहां भी मां दुर्गा की स्थापना की जाती है, वहां जाकर शेर नृत्य करते हैं.

बुंदेलखंड में शेर का भेष धारण कर शेर नृत्य

विपत्ति टालने और मनोकामना पूर्ति के लिए शेर नृत्य की परम्परा: बुंदेलखंड में हर त्यौहार की तरह नवरात्रि पर्व की अपनी परम्पराएँ हैं. जिस तरह दीपावली, होली और दूसरे त्यौहारों पर बुंदेलखंड में अपनी अलग नृत्य परम्पराएं हैं. उसी तरह नवरात्रि पर भी पूजा पाठ के साथ नृत्य की परम्पराएं सदियों से चली आ रही हैं. प्राचीन काल में किसी बीमारी के प्रकोप या संकट के समय जब लोगों के पास कोई समाधान नहीं होता था, तो लोग दैवीय प्रकोप मानकर मां दुर्गा से प्रार्थना करते थे कि, संकट टलने या समाधान पर नवरात्रि के अवसर पर उनके दरबार में शेर नृत्य कराएंगे. ऐसा ही मनोकामना पूर्ति के लिए भी लोग मां के दरबार में शेर नृत्य कराने की बात कहते हैं और मनोकामना पूर्ति पर मां के दरबार में खुद या अखाड़े वालों के माध्यम से शेर नृत्य कराते हैं.

Unique tradition for centuries in Bundelkhand
बुंदेलखंड में सदियों से चली आ रही अनोखी परंपरा

पंचमी से दशहरा तक चलता है शेर नृत्य: जो भी व्यक्ति संकट के समाधान या मनोकामना पूर्ति के लिए शेर नृत्य की बात कहता है, वह व्यक्ति चैत्र या शारदीय नवरात्रि में शेर नृत्य करवाता है. इस परंपरा के अंतर्गत व्यक्ति स्वयं शेर का वेश धारण करता है या फिर वह अखाड़े की परंपरा में शेर नृत्य करने वाले लोगों से संपर्क करके देवी दरबार में शेर नृत्य करवाता है. पंचमी से यह परंपरा शुरू होती है और देवी विसर्जन तक चलती है. परंपरा के अंतर्गत लोग शेर जैसा रूप धारण करते हैं और हर देवी मंदिरों और देवी पंडाल पर जाकर शेर नृत्य करते हैं और मां के दरबार में धुनी जलाकर धुनी लेते हैं. शेर नृत्य करने वाले युवक बताते हैं कि, यह बुजुर्गों के समय से चली आ रही परंपरा है, जिसे हम लोग भी निभा रहे हैं. हमारे बुजुर्ग बताते थे कि, नवरात्रि के मौके पर सालों से परंपरा चली आ रही है, उसी को हम लोग आगे बढ़ा रहे हैं.

बुंदेलखंड की लुप्त होती प्रसिद्ध शेर नृत्यकला को जीवित कर रहे युवा, सरकार से मदद की आस

मुख्य रूप से मनौती का नृत्य है शेर नृत्य: बुंदेलखंडी नृत्य, गायन और वादन परंपरा के लिए समर्पित नवोदित कला संस्थान के संचालक जुगल किशोर नामदेव बताते हैं कि, ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. बुंदेली साहित्य और संस्कृति से संबंधित शोध और अध्ययन में ये बात कई बार सामने आई है. मुख्य तौर पर जब किसी समस्या से लोग परेशान होते थे और देवीय प्रकोप मान लेते थे या कोई ऐसी मनौती होती थी, जिसे लोग देवी के आशीर्वाद से पूरा करना चाहते थे. तो वह देवी के दरबार में संकट टलने या मनौती पूरी होने पर शेर नृत्य कराते थे. कई लोग खुद शेर का वेश धारण करके नृत्य करते हैं और कई लोग शेर नृत्य करने वाले अखाड़े या मंडलियों से संपर्क करके शेर नृत्य कवाते हैं. आमतौर पर चैत्र और शारदीय नवरात्र दोनों में होता है. पंचमी से शुरू होता है और जिस दिन माता का विसर्जन होता है, उस दिन माता की झांकी के आगे नृत्य करते हैं.

सागर। बुंदेलखंड में नवरात्रि के अवसर पर शेर नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है. आमतौर पर ये परंपरा देवी के प्रकोप से बचने और मनोकामना पूर्ति के लिए निभाई जाती है. शेर नृत्य की परंपरा निभाने के लिए माता के भक्त शेर का भेष धारण करते हैं और वीररस से पूर्ण अखाड़े जैसी धुन पर नृत्य करते हैं. हालांकि बदलते दौर में धीरे-धीरे ये परंपरा कमजोर हो रही है. लेकिन कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में परंपरा को अभी भी सहेज कर रखा गया है. खासकर अखाड़े वाले नवरात्रि में शेर नृत्य की परंपरा निभाने का काम अभी भी कर रहे हैं और किसी गांव या कस्बे में जहां भी मां दुर्गा की स्थापना की जाती है, वहां जाकर शेर नृत्य करते हैं.

बुंदेलखंड में शेर का भेष धारण कर शेर नृत्य

विपत्ति टालने और मनोकामना पूर्ति के लिए शेर नृत्य की परम्परा: बुंदेलखंड में हर त्यौहार की तरह नवरात्रि पर्व की अपनी परम्पराएँ हैं. जिस तरह दीपावली, होली और दूसरे त्यौहारों पर बुंदेलखंड में अपनी अलग नृत्य परम्पराएं हैं. उसी तरह नवरात्रि पर भी पूजा पाठ के साथ नृत्य की परम्पराएं सदियों से चली आ रही हैं. प्राचीन काल में किसी बीमारी के प्रकोप या संकट के समय जब लोगों के पास कोई समाधान नहीं होता था, तो लोग दैवीय प्रकोप मानकर मां दुर्गा से प्रार्थना करते थे कि, संकट टलने या समाधान पर नवरात्रि के अवसर पर उनके दरबार में शेर नृत्य कराएंगे. ऐसा ही मनोकामना पूर्ति के लिए भी लोग मां के दरबार में शेर नृत्य कराने की बात कहते हैं और मनोकामना पूर्ति पर मां के दरबार में खुद या अखाड़े वालों के माध्यम से शेर नृत्य कराते हैं.

Unique tradition for centuries in Bundelkhand
बुंदेलखंड में सदियों से चली आ रही अनोखी परंपरा

पंचमी से दशहरा तक चलता है शेर नृत्य: जो भी व्यक्ति संकट के समाधान या मनोकामना पूर्ति के लिए शेर नृत्य की बात कहता है, वह व्यक्ति चैत्र या शारदीय नवरात्रि में शेर नृत्य करवाता है. इस परंपरा के अंतर्गत व्यक्ति स्वयं शेर का वेश धारण करता है या फिर वह अखाड़े की परंपरा में शेर नृत्य करने वाले लोगों से संपर्क करके देवी दरबार में शेर नृत्य करवाता है. पंचमी से यह परंपरा शुरू होती है और देवी विसर्जन तक चलती है. परंपरा के अंतर्गत लोग शेर जैसा रूप धारण करते हैं और हर देवी मंदिरों और देवी पंडाल पर जाकर शेर नृत्य करते हैं और मां के दरबार में धुनी जलाकर धुनी लेते हैं. शेर नृत्य करने वाले युवक बताते हैं कि, यह बुजुर्गों के समय से चली आ रही परंपरा है, जिसे हम लोग भी निभा रहे हैं. हमारे बुजुर्ग बताते थे कि, नवरात्रि के मौके पर सालों से परंपरा चली आ रही है, उसी को हम लोग आगे बढ़ा रहे हैं.

बुंदेलखंड की लुप्त होती प्रसिद्ध शेर नृत्यकला को जीवित कर रहे युवा, सरकार से मदद की आस

मुख्य रूप से मनौती का नृत्य है शेर नृत्य: बुंदेलखंडी नृत्य, गायन और वादन परंपरा के लिए समर्पित नवोदित कला संस्थान के संचालक जुगल किशोर नामदेव बताते हैं कि, ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. बुंदेली साहित्य और संस्कृति से संबंधित शोध और अध्ययन में ये बात कई बार सामने आई है. मुख्य तौर पर जब किसी समस्या से लोग परेशान होते थे और देवीय प्रकोप मान लेते थे या कोई ऐसी मनौती होती थी, जिसे लोग देवी के आशीर्वाद से पूरा करना चाहते थे. तो वह देवी के दरबार में संकट टलने या मनौती पूरी होने पर शेर नृत्य कराते थे. कई लोग खुद शेर का वेश धारण करके नृत्य करते हैं और कई लोग शेर नृत्य करने वाले अखाड़े या मंडलियों से संपर्क करके शेर नृत्य कवाते हैं. आमतौर पर चैत्र और शारदीय नवरात्र दोनों में होता है. पंचमी से शुरू होता है और जिस दिन माता का विसर्जन होता है, उस दिन माता की झांकी के आगे नृत्य करते हैं.

Last Updated : Oct 6, 2022, 8:50 PM IST
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