रीवा। रीवा शहर में दो सप्ताह के भीतर अफ्रीकी स्वाइन बुखार से 2 हजार से अधिक सुअरों की मौत हो गई. इसके बाद प्रशासन ने धारा 144 लागू की है. कलेक्टर मनोज पुष्प ने रविवार को संक्रमण और संक्रामक की रोकथाम और नियंत्रण के तहत जारी आदेश में कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत निषेधात्मक आदेश जारी किए गए हैं. इसमें सुअर और उनके मांस के परिवहन, खरीद और बिक्री पर प्रतिबंध रहेगा.
शवों को निपटाने में लगा प्रशासन : भोपाल में राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (NIHSAD) ने नमूनों का परीक्षण किया और रीवा नगरपालिका सीमा के भीतर सुअरों में अफ्रीकी स्वाइन बुखार का पता लगाया. बता दें कि रीवा में करीब दो हफ्ते पहले सूअर मरने लगे, जिसके बाद पशुपालन विभाग ने प्रयोगशाला में नमूने भेजे. अधिकारियों के अनुसार अफ्रीकी स्वाइन बुखार ने दो सप्ताह के भीतर अकेले रीवा शहर में 2,000 से अधिक सूअरों की जान ले ली है. नगरपालिका अधिकारियों की टीमें शवों का निपटान कर रही हैं.
सुअरों की जांच जारी : पशुपालन विभाग के उप निदेशक डॉ. राजेश मिश्रा ने बताया कि शहर में 25,000 से अधिक सुअर हैं, जिनमें से सबसे अधिक संक्रमित जानवर वार्ड 15 में पाए गए हैं. उन्होंने कहा कि इस बस्ती को रेड जोन के रूप में चिह्नित कर एक किलोमीटर के दायरे में सभी सुअरों की जांच की जा रही है और स्वस्थ पशुओं को इस बीमारी के खिलाफ टीका लगाया जा रहा है. डॉ. राजेश मिश्रा का कहना है की प्रथम रिपोर्ट 12 अगस्त को आई थी.
टीकाकरण अभियान जारी : इसके बाद विभाग की ओर से उन सभी स्थानों में जांच के साथ ही टीकाकरण अभियान शुरू किया गया जहां पर सुअर पालक रहते हैं. सुअरों की मृत्यु दर काफी संख्या में है. जानवरों के सैंपल को भोपाल भेजा गया था. केंद्र सरकार के हाई सिक्योरिटी लैब से सभी सैंपल की पुष्टि की गई है. इस बीमारी को अफ्रीकन स्वाइन फीवर बताया गया है. बड़ी संख्या में एएसएफ से संक्रमित सुअर मारे गए.
लैब से स्वाइन फीवर की पुष्टि : आपको बता दें कि रीवा शहर के वार्ड 15 में धोबिया टंकी इलाके में सुअरों के बीमार होने की जानकारी मिली थी. लक्षणों के आधार पर बीमार सुअरों के सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे गए थे. इसमें इस वायरस की पुष्टि हुई है. अफ्रीकन स्वाइन फीवर को कंट्रोल करने की राष्ट्रीय गाइडलाइन के मुताबिक जिस स्थान पर एएसएफ का संक्रमण पाया जाता है. उसके एक किलोमीटर के दायरे में सुअरों की किलिंग की जाती है ताकि दूसरे जानवरों को संक्रमण से बचाया जा सके. इसके अलावा तीन किलोमीटर के दायरे में सभी जानवरों की सैंपलिंग कर निगरानी करनी पड़ती है.