मंदसौर(Mandsaur)। कोरोना की दूसरी लहर (Corona Second Wave) के वक्त देश में बड़ी संख्या में लोगों ने संक्रमण से अपनी जान गंवाई. स्थिति यह थी कि अंतिम संस्कार (Last Rites) करने के लिए तक काफी इंतजार करना पड़ा था. फिलहाल देश में स्थिति काबू में है, लेकिन मंदसौर मुक्तिधाम पर अब भी करीब 140 मृतकों के अस्थि कलश (Asthi Kalash) रखे हुए हैं, जिन्हें अपनों का इंतजार है. श्राद्ध पक्ष (Shradh Paksh) में तर्पण का महत्व है. हर कोई अपने पूर्वजों का तर्पण कर मोक्ष की कामना करता है. लेकिन महामारी के दौर में दिवंगतों की अस्थियों से भी परिजनों ने मुंह मोड़ लिया. मंदसौर मुक्तिधाम में रखीं 140 दिवंगतों की अस्थियां 5 महीने बाद भी अपनों की राह ताक रही हैं.
कई लोग जान कर भी नहीं ले जा रहे अस्थियां
परंपरा और मानवता को पीछे छोड़ कोविड से निधन हुए अपनों की अस्थियां भी कई परिवार के लोग नहीं ले जा रहे है. कई परिवार ऐसे भी है जो मुक्तिधाम समिति के सीधे संपर्क में है, लेकिन अस्थि कलश यहां से नहीं ले जा रहे. जबकि एक दर्जन परिवार ऐसे हैं, जो नौकरी और काम के सिलसिले में बाहर हैं, जिस वजह से वह अस्थि कलश नहीं ले जा पा रहे हैं. बताया जा रहा है कि इन लोगों ने दिवंगतों का अंतिम संस्कार तो किया लेकिन अस्थियां यहीं छोड़ दी. दूसरी लहर के बाद काफी महीने बीत गए, लेकिन अभी तक अस्थियां लेने कोई नहीं आया.
मुक्तिधाम में रखे हैं 140 अस्थि कलश
अप्रैल-मई में 1100 से अधिक कोविड और सामान्य रूप से हुई मौतों का यहां अंतिम संस्कार किया गया था. इसमें 160 से अधिक अस्थि कलश जमा हो गए थे. जिसे उठाने के लिए कोई नहीं आया. समाजसेवी सुनील बंसल ने बताया कि कुछ समय पहले 20 मृतकों के परिजन यहां से अस्थि कलश लेकर गए हैं. लेकिन 140 अभी भी रखे हुए हैं. इसके साथ ही पशु प्रेमियों ने 10 वानरों का भी अंतिम संस्कार किया था. जिनके भी अस्थि कलश रखे हुए हैं.
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अब समाजसेवी करेंगे तर्पण
सामाजिक कार्यकर्ता सुनील बंसल ने बताया कि वह पिछले 28 सालों से निराश्रितों का अंतिम संस्कार और अस्थियों को हरिद्वार में गंगा में विसर्जित करने का काम कर रहे हैं. लेकिन पहली बार ऐसा मौका आया जब इतने अस्थि कलश उनके पास एकत्रित हुए हैं. इसमें निराश्रित ही नहीं बल्कि कई ऐसे हैं, जिनका परिवार भी है. 140 इंसानों की और 10 वानरों की अस्थियां लेकर अब समाजसेवी सुनील बंसल हरिद्वार जाएंगे, और तर्पण करेंगे. सुनील बंसल 26 सितंबर को श्राद्ध पक्ष में ही हरिद्वार के लिए निकलेंगे और इन अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करेंगे.
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श्राद्ध पक्ष में है तर्पण का महत्व
शास्त्रों और समाज की मान्यताओं के अनुसार, मरने के बाद उठावने के तौर पर अस्थियों को सहेजकर पवित्र गंगा में प्रवेश कर तर्पण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. गत सोमवार से 16 दिवसीय श्राद्ध पक्ष की शुरुआत हुई. इसमें दिवंगत का तर्पण और पितृ पक्ष के नाम से किए जाने वाले काम का ही महत्व है. लेकिन मुक्तिधाम के लॉकर में 140 अस्थि कलश रखे हैं. जो तर्पण और श्राद्ध के लिए अपनों का इंतजार कर रहे हैं. अभी तक इन अस्थियों को विसर्जित ही नहीं किया गया है. अधिकांश अस्थि कलश कोरोना महामारी की दूसरी लहर के समय से ही रखे हुए हैं.