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जानिए होली पर्व का मंदसौर शहर के इस इलाके से क्या है खास नाता

मध्यप्रदेश की प्राचीन दशपुर नगरी यानी मंदसौर में रंगों के महापर्व होली से शहर की प्राचीन परंपरा जुड़ी है. शहर के एक क्षेत्र को आज भी लोग बड़ी होली के नाम से जानते है. आइए जानते हैं, मंदसौर की बड़ी होली का इतिहास. (History of Badi Holi)

History of Badi Holi
मंदसौर बड़ी होली
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Published : Mar 18, 2022, 11:06 PM IST

मंदसौर। देशभर मे रंगो के पर्व होली का उत्साह है, कई जगहों पर होली का अपना ही विशेष महत्व भी है. ऐसी एक अनोखी कहानी मध्यप्रदेश की प्राचीन दशपुर नगरी यानी मंदसौर की हैं, रंगों के महापर्व होली से शहर की प्राचीन परंपरा जुड़ी है. हालांकि अब इसे बहुत कम लोग जानते है, लेकिन शहर के एक क्षेत्र को आज भी शहरवासी बड़ी होली के नाम से जानते है. आइए जानते हैं, मंदसौर की 'बड़ी होली' का इतिहास. (History of Badi Holi)

क्यों पड़ा बड़ी होली नाम
रंगों के महापर्व होली से मंदसौर शहर की दशकों पुरानी प्राचीन परंपरा जुड़ी हुई है, हालांकि अब इसे बहुत कम लोग जानते हैं. शहरवासी जिस क्षेत्र को बड़ी होली के नाम से जानते हैं, क्षेत्र में न्यायालय परिसर से सटे इलाके को बड़ी होली के नाम से पहचाना जाता है. इसका यह नाम पड़ने के पीछे की कहानी होली पर ही आधारित है. दरअसल, दशकों पहले तक बड़ी होली के दहन का इंतजार पूरा शहर करता था, रात 3.30 बजे बड़ी होली दहन होने के बाद इस की आग से ही शहर के 10 पुरों की होलियों का दहन होता था. सबसे पहले जलने के कारण यहां की होली को शहर की सबसे बड़ी होली कहा जाता था. इसी के चलते क्षेत्र का नाम ही बड़ी होली और शहर का मान दशपुर पड़ गया था.

इन दस पुरों में बड़ी होली की चिंगारी से जलती थी होली
मंदसौर यानी प्राचीन दशपुर नगरी में शहर की बड़ी होली की चिंगारी से खानपुरा, जनकुपुरा, मदारपुरा, नृसिंहपुरा, नयापुरा, खाजपुरा, खिलचीपुरा, चंदरपुरा, जगतपुरा सहित सभी 10 पुरों में दहन प्रारंभ होता था. सभी क्षेत्रों के लोग इस क्षेत्र की होली को बड़ी कहने के साथ बड़ेपन का सम्मान भी देते रहे, इसी कारण 10 पुरों की होलिका को जलाने के लिए बड़ी होली जलने का इंतजार होता था.

अब खत्म होती जा रही प्राचीन परंपरा
रात 3.30 बजे बड़ी होली का दहन होता था, इसके बाद शहर क्षेत्र में स्थित 10 दरवाजों से 10 पुरों के लोग आते और यहां से आग ले जाकर अपने-अपने पुरों की होली जलाते थे. तीन दशक पहले तक भी ऐसा ही होता था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे शहर बढने के साथ ही 21वीं सदी के मंदसौर में यह परंपरा खत्म होने लगी. अब 12 पुरों के साथ ही शहर में 250 से अधिक स्थानों पर होलिका दहन होता है, लेकिन शहर को 20वीं सदी से विरासत में मिली इस परंपरा को शहर क्षेत्र के भोईवाड़ा, कोलीवाड़ा, सिंगार गली, कंधोरा गली, गो पान वाली गली सहित आधा दर्जन क्षेत्रों के लोग आज भी निभा रहे हैं. इन क्षेत्रों की होलिका दहन के लिए बड़ी होली से ही आग पहुंचती है. इसी के साथ, बड़ी होली आज भी रात 3.30 बजे के बाद ही जलती है.

मंदसौर। देशभर मे रंगो के पर्व होली का उत्साह है, कई जगहों पर होली का अपना ही विशेष महत्व भी है. ऐसी एक अनोखी कहानी मध्यप्रदेश की प्राचीन दशपुर नगरी यानी मंदसौर की हैं, रंगों के महापर्व होली से शहर की प्राचीन परंपरा जुड़ी है. हालांकि अब इसे बहुत कम लोग जानते है, लेकिन शहर के एक क्षेत्र को आज भी शहरवासी बड़ी होली के नाम से जानते है. आइए जानते हैं, मंदसौर की 'बड़ी होली' का इतिहास. (History of Badi Holi)

क्यों पड़ा बड़ी होली नाम
रंगों के महापर्व होली से मंदसौर शहर की दशकों पुरानी प्राचीन परंपरा जुड़ी हुई है, हालांकि अब इसे बहुत कम लोग जानते हैं. शहरवासी जिस क्षेत्र को बड़ी होली के नाम से जानते हैं, क्षेत्र में न्यायालय परिसर से सटे इलाके को बड़ी होली के नाम से पहचाना जाता है. इसका यह नाम पड़ने के पीछे की कहानी होली पर ही आधारित है. दरअसल, दशकों पहले तक बड़ी होली के दहन का इंतजार पूरा शहर करता था, रात 3.30 बजे बड़ी होली दहन होने के बाद इस की आग से ही शहर के 10 पुरों की होलियों का दहन होता था. सबसे पहले जलने के कारण यहां की होली को शहर की सबसे बड़ी होली कहा जाता था. इसी के चलते क्षेत्र का नाम ही बड़ी होली और शहर का मान दशपुर पड़ गया था.

इन दस पुरों में बड़ी होली की चिंगारी से जलती थी होली
मंदसौर यानी प्राचीन दशपुर नगरी में शहर की बड़ी होली की चिंगारी से खानपुरा, जनकुपुरा, मदारपुरा, नृसिंहपुरा, नयापुरा, खाजपुरा, खिलचीपुरा, चंदरपुरा, जगतपुरा सहित सभी 10 पुरों में दहन प्रारंभ होता था. सभी क्षेत्रों के लोग इस क्षेत्र की होली को बड़ी कहने के साथ बड़ेपन का सम्मान भी देते रहे, इसी कारण 10 पुरों की होलिका को जलाने के लिए बड़ी होली जलने का इंतजार होता था.

अब खत्म होती जा रही प्राचीन परंपरा
रात 3.30 बजे बड़ी होली का दहन होता था, इसके बाद शहर क्षेत्र में स्थित 10 दरवाजों से 10 पुरों के लोग आते और यहां से आग ले जाकर अपने-अपने पुरों की होली जलाते थे. तीन दशक पहले तक भी ऐसा ही होता था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे शहर बढने के साथ ही 21वीं सदी के मंदसौर में यह परंपरा खत्म होने लगी. अब 12 पुरों के साथ ही शहर में 250 से अधिक स्थानों पर होलिका दहन होता है, लेकिन शहर को 20वीं सदी से विरासत में मिली इस परंपरा को शहर क्षेत्र के भोईवाड़ा, कोलीवाड़ा, सिंगार गली, कंधोरा गली, गो पान वाली गली सहित आधा दर्जन क्षेत्रों के लोग आज भी निभा रहे हैं. इन क्षेत्रों की होलिका दहन के लिए बड़ी होली से ही आग पहुंचती है. इसी के साथ, बड़ी होली आज भी रात 3.30 बजे के बाद ही जलती है.

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