जबलपुर। हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि के त्योहार का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि में हर दिन माता रानी के पूजन का खास महत्व होता है. अलग अलग स्वरूपों की पूजा, अर्चना, उपासना चलती है. लोग व्रत करते हैं. मां की सेवा कर उन्हें खुश करते हैं, जिससे महारानी की कृपा हमेशा बनी रहे. रविवार को नवरात्रि के सातवें दिन मां भगवती के कालरात्रि रुप की पूजा की गई. (shardiya navratri puja) (durga puja 2022 date)
बंगाली क्लब की नवरात्रि शुरू: शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि से बंगाली समाज के पांच दिवसीय दुर्गा पूजा की शुरुआत हो गई है. पिछले 2 सालों में कोरोना महामारी के कारण यह त्योहार सादगी पूर्ण तरीके से मनाया गया था. लेकिन अब किसी भी प्रकार का कोई भी प्रतिबंध नहीं है, जिसके चलते बंगाली समाज दुर्गा पूजा पूरी आस्था के साथ मनाएगा. इस पर्व की अपनी अलग ही मान्यता है जो इसे खास बनाती है और इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं. मान्यता है कि इस पर्व के दौरान मां दुर्गा अपने मायके आती है, जिसके चलते समाज की महिलाएं ढाक की ताल में झूमते गाते हुए मां की आराधना करतीं हैं. महा सप्तमी के साथ दुर्गा पूजा 4 दिन तक सिटी बंगाली क्लब में चलेगी. इसमें समाज के लोगों के साथ साथ दूसरे समाज के लोग भी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं. वहीं आयोजकों का कहना है कि बंगाली क्लब द्वारा जिस प्रकार से दुर्गा पूजा की जाती है, उसे देखने के लिए दूर-दूर से बंग समाज के लोग सिटी बंगाली क्लब पहुंचते हैं. (jabalpur sharda devi temple history)
sharadiya navratri 2022: मां कालरात्रि को समर्पित है नवरात्रि का सातवां दिन, ऐसे करें आराधना
शारदा देवी मंदिर का इतिहास: जबलपुर से 15 किलोमीटर दूर मां शारदा का मंदिर है. इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना तो नहीं है, लेकिन एक भक्त की भक्ति का जीवंत प्रमाण है, जिसने स्वप्न में आई देवी के प्रति विश्वास जगाया और उनका भव्य मंदिर बनवा दिया. बरेला के पुजारी आशीष शुक्ला ने बताया कि, इस पहाड़ी पर एक मढिया थी, जिसमें माता की प्रतिमा स्थापित थी. मेरे पिता स्व. श्रवण कुमार शुक्ला राज्य परिवहन में ड्राइवर थे, जो जबलपुर से मंडला रोड पर बस चलाते थे. उनका रोज यहां से गुजरना होता था. एक बार माता उनके स्वप्न में आईं तो वे पहली बार पहाड़ी पर उनके दर्शन को आए. जहां माता मढिया के अंदर लेटी हुई मुद्रा में थीं. दोबारा जब स्वप्न आया तो उन्होंने मंदिर बनाने का प्रण किया, लेकिन पैसे नहीं थे. ऐसे में उन्होंने राज्य परिवहन की नौकरी छोड़ दी और जो 70 हजार रुपए मिले उससे ये भव्य मंदिर बनवाया. मंदिर का निर्माण 15 जून 1975 को हुआ था. स्थानीय लोगों और राहगीरों ने बताया कि, मंडला की ओर जाने वाला मार्ग दोनों तरफ गहरी घाटियों से घिरा है. इसकी वजह से यहां आए दिन वाहन दुर्घटना का शिकार होता था. इसको लेकर माता से लोगों ने प्रार्थना की तो दुर्घटनाएं कम हो गई. तबसे यहां से गुजरने वाला हर वाहन नीचे एक मिनट के लिए रुकता जरूर है. (jabalpur sharda devi temple history) (special worship Bengali society begins in jabalpur)