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बक्सवाहा हीरा खदान : NGT भोपाल में दायर हुई जनहित याचिका

छतरपुर जिले के बकस्वाहा में हीरा खदान की अनुमति मिलने का मुद्दा गर्म होता जा रहा है. खदान के नाम पर लाखों पेड़ों की कटाई की सूचना से लोगों में नाराजगी है. जबलपुर के रहने वाले डॉ पीजी नाजपांडे ने हीरा खदान की अनुमति निरस्त करने के लिए एनजीटी भोपाल में एक याचिका दायर की है.

diamond mine in buxwaha
बक्सवाहा हीरा खदान
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Published : Jun 6, 2021, 10:34 PM IST

जबलपुर। छतरपुर जिले के बकस्वाहा में वन क्षेत्र की करीब 364 हेक्टेयर भूमि पर हीरा खदान की अनुमति का मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी NGT भोपाल पहुंच गया है. जबलपुर निवासी डॉ पीजी नाजपांडे द्वारा यह महत्वपूर्ण जनहित याचिका एनजीटी भोपाल में दायर की गई है, जिसमें हीरा खदान के नाम पर जारी की गई अनुमति को निरस्त करने की मांग की गई है.

जानकारी के मुताबिक छतरपुर जिले के बक्सवाहा में सोगोरिया गांव के अंतर्गत 364 हेक्टेयर जंगल के इलाके में हीरा खदान के लिए एक निजी कंपनी को अनुमति दी गई है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, सरकार द्वारा 364 हेक्टेयर जमीन पर दी गई हीरा खदान की अनुमति कई मायने में गलत है.

क्या-क्या दी गई दलील

याचिकाकर्ता के मुताबिक, सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा "सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के आदेशों की अनदेखी अनुमति में है. यहां तक की एनजीटी का पूर्व आदेश भी है, जिसमें स्पष्ट दर्शाया गया है कि जितनी भी वन भूमि को डायवर्ट किया जाता है, उसके दोगुने वन क्षेत्र पर कंपनसेटरी फॉरेस्टेशन अनिवार्य है, लेकिन इस बात की अनदेखी कलेक्टर छतरपुर ने कर दी है.

मध्यप्रदेश की एवरेस्ट वुमन ने की बक्सवाहा के जंगल को बचाने की अपील

हीरा खदान से वहां निवासरत करीब 8000 वनवासियों पर भी असर पड़ेगा, जिनके लिए किसी तरह की योजना सरकार ने नहीं बनाई है. यहां तक की जंगली जानवरों को लेकर भी मुसीबत हो सकती है, जिससे कहीं ना कहीं इकोलॉजी प्रभावित होगी. बड़ी बात यह भी है कि खदान के बनने से वन भूमि के जल स्त्रोतों को बड़ा नुकसान भी पहुंचेगा। इन तमाम दलीलों को याचिकाकर्ता ने अपने जनहित याचिका में प्रदर्शित किया है, जिस पर आने वाले सप्ताह में सुनवाई हो सकती है.

पेड़-पौधों की कटाई की खबर से लोगों में आक्रोश

बक्सवाहा में हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल में लाखों पेड़-पौधों की कटाई की खबर के बाद समूचे बुंदेलखंड के पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश है. बताया जा रहा है कि हीरा खनन के लिए बक्सवाहा के जंगलों में एक बहुत बड़े भाग में हरे-भरे पेड़ों की कटाई होनी है. इतने बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई होने से पर्यावरणविद और समाजसेवी चिंतित हैं.

दमोह और बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना का विरोध, जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग

चिपको आंदोलन की तर्ज पर बचाएंगे पेड़

बक्सवाहा का जंगल बचाने के लिए ग्रामीण अंचलों में भी विरोध शुरू हो गया है. बता दें कि मड़ियादो के पास शिलापरी गांव में चिपको आंदोलन की तर्ज पर अब ग्रामीण 'जंगल हमारे बुजुर्ग और पौधे हमारे बच्चे' का नारा लगाकर जंगल की रखवाली करने में जुट गए हैं. ग्रामीणों ने प्रदर्शन के दौैरान कहा कि जब जरूरत पड़ेगी तो ग्रामीण बक्सवाह के एक एक पेड़ पर चिपक जाएंगे.

जबलपुर। छतरपुर जिले के बकस्वाहा में वन क्षेत्र की करीब 364 हेक्टेयर भूमि पर हीरा खदान की अनुमति का मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी NGT भोपाल पहुंच गया है. जबलपुर निवासी डॉ पीजी नाजपांडे द्वारा यह महत्वपूर्ण जनहित याचिका एनजीटी भोपाल में दायर की गई है, जिसमें हीरा खदान के नाम पर जारी की गई अनुमति को निरस्त करने की मांग की गई है.

जानकारी के मुताबिक छतरपुर जिले के बक्सवाहा में सोगोरिया गांव के अंतर्गत 364 हेक्टेयर जंगल के इलाके में हीरा खदान के लिए एक निजी कंपनी को अनुमति दी गई है. याचिकाकर्ता के मुताबिक, सरकार द्वारा 364 हेक्टेयर जमीन पर दी गई हीरा खदान की अनुमति कई मायने में गलत है.

क्या-क्या दी गई दलील

याचिकाकर्ता के मुताबिक, सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा "सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के आदेशों की अनदेखी अनुमति में है. यहां तक की एनजीटी का पूर्व आदेश भी है, जिसमें स्पष्ट दर्शाया गया है कि जितनी भी वन भूमि को डायवर्ट किया जाता है, उसके दोगुने वन क्षेत्र पर कंपनसेटरी फॉरेस्टेशन अनिवार्य है, लेकिन इस बात की अनदेखी कलेक्टर छतरपुर ने कर दी है.

मध्यप्रदेश की एवरेस्ट वुमन ने की बक्सवाहा के जंगल को बचाने की अपील

हीरा खदान से वहां निवासरत करीब 8000 वनवासियों पर भी असर पड़ेगा, जिनके लिए किसी तरह की योजना सरकार ने नहीं बनाई है. यहां तक की जंगली जानवरों को लेकर भी मुसीबत हो सकती है, जिससे कहीं ना कहीं इकोलॉजी प्रभावित होगी. बड़ी बात यह भी है कि खदान के बनने से वन भूमि के जल स्त्रोतों को बड़ा नुकसान भी पहुंचेगा। इन तमाम दलीलों को याचिकाकर्ता ने अपने जनहित याचिका में प्रदर्शित किया है, जिस पर आने वाले सप्ताह में सुनवाई हो सकती है.

पेड़-पौधों की कटाई की खबर से लोगों में आक्रोश

बक्सवाहा में हीरा खनन परियोजना के लिए जंगल में लाखों पेड़-पौधों की कटाई की खबर के बाद समूचे बुंदेलखंड के पर्यावरण प्रेमियों में आक्रोश है. बताया जा रहा है कि हीरा खनन के लिए बक्सवाहा के जंगलों में एक बहुत बड़े भाग में हरे-भरे पेड़ों की कटाई होनी है. इतने बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई होने से पर्यावरणविद और समाजसेवी चिंतित हैं.

दमोह और बक्सवाह में हीरा खनन परियोजना का विरोध, जंगल बचाने के लिए पेड़ों से चिपके लोग

चिपको आंदोलन की तर्ज पर बचाएंगे पेड़

बक्सवाहा का जंगल बचाने के लिए ग्रामीण अंचलों में भी विरोध शुरू हो गया है. बता दें कि मड़ियादो के पास शिलापरी गांव में चिपको आंदोलन की तर्ज पर अब ग्रामीण 'जंगल हमारे बुजुर्ग और पौधे हमारे बच्चे' का नारा लगाकर जंगल की रखवाली करने में जुट गए हैं. ग्रामीणों ने प्रदर्शन के दौैरान कहा कि जब जरूरत पड़ेगी तो ग्रामीण बक्सवाह के एक एक पेड़ पर चिपक जाएंगे.

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