ईटीवी भारत डेस्क: हिन्दू धर्म की आस्था का केंद्र भगवान जगन्नाथजी के मंदिर के बारे में कई रोचक और आश्चर्यजनक तथ्य प्रसिद्ध हैं जो आमजन के लिये हमेशा ही कौतूहल का विषय रहता है. भगवान जगन्नाथ जी की वार्षिक रथयात्रा शुरू होने ही वाली है. वर्तमान समय में रथयात्रा शुरू होने से पहले के मुख्य पारंपरिक रीति-रिवाज संपन्न किये जा रहे हैं, जिसकी शुरुआत ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान उत्सव (Snana ustav) के साथ हुई. ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों तीर्थयात्री 'स्नाना उत्सव' के लिए पुरी पहुंचे. देशभर से श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के स्नान अनुष्ठान 'स्नाना उत्सव' के लिए पहुंचे. भगवान जगन्नाथ के प्रकट होने के दिन को मनाने के लिए स्नान उत्सव (Snana ustav) मनाया जाता है. आइए जानते हैं भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Rath yatra 2022) से जुड़े कुछ रोचक तथ्य.
हिन्दू पुराणों में जगन्नाथ पुरी को धरती का बैकुंठ कहा गया है. ब्रह्म और स्कंद पुराण के अनुसार, पुरी में भगवान विष्णु ने पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतार लिया था. वह यहां सबर जनजाति के परम पूज्य देवता बन गए. सबर जनजाति के देवता होने की वजह से यहां भगवान जगन्नाथ का रूप कबीलाई देवताओं की तरह है. जगन्नाथ मंदिर की महीमा देश में ही नहीं विश्व में भी प्रसिद्ध हैं. भगवान जगन्नाथ को साल में एक बार उनके गर्भ गृह से निकालकर यात्रा कराई जाती है. यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भ गृह से निकलकर प्रजा के सुख-दुख को खुद देखते हैं.
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भगवान जगन्नाथ की मुख्य लीला भूमि उड़ीसा की पुरी है, जिसे पुरुषोत्तम पुरी भी कहा जाता है. भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी से शुरू होती है. जगन्नाथजी के मंदिर की ऊंचाई लगभग 215 फीट है और यह लगभग 4 लाख वर्ग फीट एरिया में फैला हुआ है. खड़े रहकर इस मंदिर का गुंबद देख पाना असंभव लगता है.इस मंदिर की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है. कहते हैं, यहां 1 साल तक के लिए अन्न भंडार हमेशा स्टोर रहता है. इसलिए कितने भी श्रृद्धालु यहां आ जाए, कभी भोजन कम नहीं पड़ता.
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इस मंदिर की खास बात यह है कि इसकी कभी परछाई नहीं बनती है. जबकि अन्य किसी भी मंदिर की परछाई बनती है लेकिन इस मंदिर की परछाई दिन के किसी भी वक्त देखा जाना संभव नहीं हुआ है. जानकारी के मुताबिक, इस मंदिर के ऊपर कभी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया. यह भी कहा जाता है कि पुरी मंदिर के ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते हैं. मंदिर के सिंहद्वार से प्रवेश करने पर समुद्र की लहरों की आवाज या कोई भी ध्वनि नहीं सुनाई देती है. साथ ही यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर के शीर्ष पर लगा ध्वज सदैव हवा की उल्टी दिशा में लहराता है.
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