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कांग्रेस में योग्यता पर भारी सामंतवाद और वंशवाद, क्या यहीं है विधायकों के बगावत की बड़ी वजह ?

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Published : Mar 18, 2020, 11:56 PM IST

एमपी में जारी सत्ता का सियासी संग्राम जोर पकड़ता जा रहा है, बीजेपी और कांग्रेस में शह मात का खेल बढ़ता जा रहा है. इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने मालवाचंल के दो वरिष्ठ पत्रकारों से चर्चा की. जिन्होंने प्रदेश में चल रही इस राजनीतिक लड़ाई पर अपनी राय दी.

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कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद

इंदौर। मध्यप्रदेश में जारी राजनीतिक संग्राम के बीच इस पूरे घटनाक्रम की एक बड़ी वजह वंशवाद और सामंतवाद की राजनीति को भी बताया जा रहा है. क्योंकि प्रदेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक बड़ी वजह है. इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने मालवाचंल के दो वरिष्ठ पत्रकारों से चर्चा की जिसमें उन्होंने कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद पर महत्वपूर्ण जानकारी दी.

कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद वरिष्ठ पत्रकारों के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत

वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शुक्ला ने कहा ज्योतिरादित्य सिंधिया सामंती व्यवस्था से राजनीति में आए हैं. लेकिन वे अपने महाराजा की छवि से शायद बाहर नहीं निकल पाए हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में जो स्थिति आज बनी है वह इससे पहले शायद नहीं थी. क्योंकि जब माधवराव सिंधिया कांग्रेस से अलग हुए थे, तब ऐसी स्थिति नहीं थी कि कांग्रेस से उनके समर्थक गए हों.

नवनीत शुक्ला ने कहा कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बाहर गए तो उनके साथ उनके सर्मथक विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ दी. जो शायद कही न कही कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. क्योंकि सिंधिया कांग्रेस में बड़े ओहदों पर रहे हैं. अब ये तो आने वाला समय बताएगा की सिंधिया के जाने का कांग्रेस को कितना झटका लगता है.

राजनीति में वंशवाद पुराना है

वरिष्ठ पत्रकार राजेश तिवारी का कहना था की राजनीति में वंशवाद पुराना है. कांग्रेस और बीजेपी में भी वंशवाद लंबे समय से चला आ रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयवर्धन सिंह दोनों इस बात के प्रतीक हैं. लेकिन उन्होंने अपनी योग्यता को समर्पण से अपना अलग स्थान बनाया है. ऐसे में स्पष्ट है कि वंशवाद एक हद तक मुकाम दिलाता है लेकिन आखिर में अपनी ही योग्यता से स्वयं को प्रमाणित करना होता है.

दोनों पत्रकारों का तर्क था कि प्रदेश में चल रहे इस सियासी घमासान पूरी तरह से वंशवाद पर निर्भर नहीं है. क्योंकि यह लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता की लड़ाई है. लेकिन जिस तरह से बेंगलुरु में जो 22 विधायक रुके हैं और सत्ता की खींचतान का खेल चल रहा है. वह इससे पहले मध्य प्रदेश में कभी देखने को नहीं मिला.

इंदौर। मध्यप्रदेश में जारी राजनीतिक संग्राम के बीच इस पूरे घटनाक्रम की एक बड़ी वजह वंशवाद और सामंतवाद की राजनीति को भी बताया जा रहा है. क्योंकि प्रदेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई एक बड़ी वजह है. इस पूरे मामले में ईटीवी भारत ने मालवाचंल के दो वरिष्ठ पत्रकारों से चर्चा की जिसमें उन्होंने कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद पर महत्वपूर्ण जानकारी दी.

कांग्रेस में वंशवाद और सामंतवाद वरिष्ठ पत्रकारों के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत

वरिष्ठ पत्रकार नवनीत शुक्ला ने कहा ज्योतिरादित्य सिंधिया सामंती व्यवस्था से राजनीति में आए हैं. लेकिन वे अपने महाराजा की छवि से शायद बाहर नहीं निकल पाए हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस में जो स्थिति आज बनी है वह इससे पहले शायद नहीं थी. क्योंकि जब माधवराव सिंधिया कांग्रेस से अलग हुए थे, तब ऐसी स्थिति नहीं थी कि कांग्रेस से उनके समर्थक गए हों.

नवनीत शुक्ला ने कहा कि जब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बाहर गए तो उनके साथ उनके सर्मथक विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ दी. जो शायद कही न कही कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. क्योंकि सिंधिया कांग्रेस में बड़े ओहदों पर रहे हैं. अब ये तो आने वाला समय बताएगा की सिंधिया के जाने का कांग्रेस को कितना झटका लगता है.

राजनीति में वंशवाद पुराना है

वरिष्ठ पत्रकार राजेश तिवारी का कहना था की राजनीति में वंशवाद पुराना है. कांग्रेस और बीजेपी में भी वंशवाद लंबे समय से चला आ रहा है. उन्होंने कहा कि प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया और जयवर्धन सिंह दोनों इस बात के प्रतीक हैं. लेकिन उन्होंने अपनी योग्यता को समर्पण से अपना अलग स्थान बनाया है. ऐसे में स्पष्ट है कि वंशवाद एक हद तक मुकाम दिलाता है लेकिन आखिर में अपनी ही योग्यता से स्वयं को प्रमाणित करना होता है.

दोनों पत्रकारों का तर्क था कि प्रदेश में चल रहे इस सियासी घमासान पूरी तरह से वंशवाद पर निर्भर नहीं है. क्योंकि यह लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच सत्ता की लड़ाई है. लेकिन जिस तरह से बेंगलुरु में जो 22 विधायक रुके हैं और सत्ता की खींचतान का खेल चल रहा है. वह इससे पहले मध्य प्रदेश में कभी देखने को नहीं मिला.

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