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कोरोनाकाल में भेदभाव, अकेलापन मरीजों को बना रहा डिप्रेशन का शिकार

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Published : Sep 9, 2020, 8:12 PM IST

कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. देशभर में हर दिन मरीजों के आंकड़े नए रिकॉर्ड बना रहे हैं, लेकिन अब उन लोगों की परेशानियां बढ़ती जा रही हैं, जो लोग कोरोना संक्रमित हैं या कोरोना से ठीक हो चुके हैं. कोविड के मरीजों की मानसिक स्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा है. ऐसे लोग अकेलेपन और परिजनों, पड़ोसियों की बेरुखी से अवसाद का शिकार हो रहे हैं.

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कोरोनाकाल में भेदभाव

ग्वालियर। इस समय पूरे देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है. इस वजह से कोरोना संक्रमित मरीजों के मानसिक स्थिति भी अब तेजी से बदल रही है. कोविड के मरीज तो डिप्रेशन का शिकार हो ही रहे हैं, बल्कि अब वे लोग भी डिप्रेशन में जा रहे हैं, जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं. क्योंकि ऐसे लोगों पर आसपास से मिलने वाले माहौल और लगातार अकेलेपन में रहना नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.

कोरोनाकाल में भेदभाव

कोविड मरीजों से दूरी बना रहे लोग

कोरोना मरीज के परिजन और आसपास रहने वाले लोग जो पहले से लगातार उनके संपर्क में रहते थे. वे अचानक दूरी बना लेते हैं या उस मरीज से फोन पर भी बातें करना बंद कर देते हैं. इस कारण मरीज अपने आप को अकेला महसूस करता है. यही वजह है कि, इन नकारात्मक बातों से कोरोना मरीज लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. डिप्रेशन मरीज को ज्यादा बीमार बना रही है और मौत का कारण भी बन रही है. ईटीवी भारत ने ऐसे ही कोरोना मरीज से बात की, जो पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं. उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि, उसका पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव निकला था, उसके बाद आसपास रहने वाले लोगों ने उनसे बातें करना बंद कर दिया. जिससे परेशानियां बढ़ जाती हैं और लोग डिप्रेशन में जाने लगते हैं.

मनोचिकित्सक ने कहा-दूरी बनाना खतरनाक

वही मनोचिकित्सक डॉक्टर संजय सक्सेना का कहना है कि, यह बात सही है कि जब कोई संक्रमित मरीज के साथ उसके रिश्तेदार मित्र और पड़ोसी उसके साथ अलग व्यवहार करते हैं, तो उस मरीज पर उसका बहुत गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. संक्रमित मरीज के साथ किसी भी व्यक्ति का गहरा संबंध होता है और उस बीमारी के समय वह व्यक्ति संक्रमित मरीज से अलग हो जाता है, जहां वो उससे बातें करना तक बंद कर देता है जिसका मरीज पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना से ठीक होने वाले करीब 60 प्रतिशत लोगों ने लगभग एक ही तरह के अनुभव बयां किए. जिनका कहना था कि, वे कोरोना से ठीक होने के बाद जैसे समाज में अलग-थलग पड़ चुके हैं, समाज उन्हें स्वीकार नहीं रहा. शायद यही वजह है कि, ऐसे लोगों में बैचेनी-घबराहट, व्यवहार में परिवर्तन, नींद में बाधा, लाचारी और आर्थिक परेशानियों के कारण अवसाद का सामना कर रहे हैं. लिहाजा देशभर के डॉक्टरों ने अपील की है कि, कोविड के इस मुश्किल दौर में कोरोना मरीजों से दूरी बनाएं, लेकिन संपर्क में रहें. उन्हें ज्यादा से खुश रखने की कोशिश करें. कोरोना से जंग अकेले नहीं, बल्कि मिलकर ही जीती जा सकती है.

ग्वालियर। इस समय पूरे देश में कोरोना का संक्रमण तेजी से फैलता जा रहा है. इस वजह से कोरोना संक्रमित मरीजों के मानसिक स्थिति भी अब तेजी से बदल रही है. कोविड के मरीज तो डिप्रेशन का शिकार हो ही रहे हैं, बल्कि अब वे लोग भी डिप्रेशन में जा रहे हैं, जो कोरोना से ठीक हो चुके हैं. क्योंकि ऐसे लोगों पर आसपास से मिलने वाले माहौल और लगातार अकेलेपन में रहना नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है.

कोरोनाकाल में भेदभाव

कोविड मरीजों से दूरी बना रहे लोग

कोरोना मरीज के परिजन और आसपास रहने वाले लोग जो पहले से लगातार उनके संपर्क में रहते थे. वे अचानक दूरी बना लेते हैं या उस मरीज से फोन पर भी बातें करना बंद कर देते हैं. इस कारण मरीज अपने आप को अकेला महसूस करता है. यही वजह है कि, इन नकारात्मक बातों से कोरोना मरीज लगातार डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. डिप्रेशन मरीज को ज्यादा बीमार बना रही है और मौत का कारण भी बन रही है. ईटीवी भारत ने ऐसे ही कोरोना मरीज से बात की, जो पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं. उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि, उसका पूरा परिवार कोरोना पॉजिटिव निकला था, उसके बाद आसपास रहने वाले लोगों ने उनसे बातें करना बंद कर दिया. जिससे परेशानियां बढ़ जाती हैं और लोग डिप्रेशन में जाने लगते हैं.

मनोचिकित्सक ने कहा-दूरी बनाना खतरनाक

वही मनोचिकित्सक डॉक्टर संजय सक्सेना का कहना है कि, यह बात सही है कि जब कोई संक्रमित मरीज के साथ उसके रिश्तेदार मित्र और पड़ोसी उसके साथ अलग व्यवहार करते हैं, तो उस मरीज पर उसका बहुत गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. संक्रमित मरीज के साथ किसी भी व्यक्ति का गहरा संबंध होता है और उस बीमारी के समय वह व्यक्ति संक्रमित मरीज से अलग हो जाता है, जहां वो उससे बातें करना तक बंद कर देता है जिसका मरीज पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना से ठीक होने वाले करीब 60 प्रतिशत लोगों ने लगभग एक ही तरह के अनुभव बयां किए. जिनका कहना था कि, वे कोरोना से ठीक होने के बाद जैसे समाज में अलग-थलग पड़ चुके हैं, समाज उन्हें स्वीकार नहीं रहा. शायद यही वजह है कि, ऐसे लोगों में बैचेनी-घबराहट, व्यवहार में परिवर्तन, नींद में बाधा, लाचारी और आर्थिक परेशानियों के कारण अवसाद का सामना कर रहे हैं. लिहाजा देशभर के डॉक्टरों ने अपील की है कि, कोविड के इस मुश्किल दौर में कोरोना मरीजों से दूरी बनाएं, लेकिन संपर्क में रहें. उन्हें ज्यादा से खुश रखने की कोशिश करें. कोरोना से जंग अकेले नहीं, बल्कि मिलकर ही जीती जा सकती है.

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