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खुले में पड़ा बायो मेडिकल वेस्ट बढ़ा रहा है खतरा, शहर के सरकारी और निजी अस्पताल दे रहे हैं संक्रमण को न्योता

भारत में कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है. इसका अंदेशा सरकार और मेडिकल एक्सपर्ट भी जता रहे हैं. क्या इस तीसरी लहर के जिम्मेदार भी हम या हमारे अस्पताल ही होंगे. संक्रमण के इस दौर में भी लापरवाही की लोगों को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।अस्पतालों के बाहर लगे मेडिकल बेस्ट के ढ़ेर, खुले में पड़े सर्जिकल मास्क ग्लब्ज सहित दूसरी चीजें यहां आने वाले लोगों न सिर्फ कोराना से संक्रमित कर सकती हैं बल्कि दूसरी कई बीमारियों की वजह भी बन सकती है.

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खुले में पड़ा बायो मेडिकल वेस्ट
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Published : May 13, 2021, 10:59 PM IST

ग्वालियर। कोरोना संक्रमण बढ़ने और संक्रमित मरीजों के अस्पताल तक पहुंचने का सिलसिला लगातार जारी है. कोरोना का संक्रमण न तो कम हुआ है और न ही खत्म हुआ है, लेकिन इसके और ज्यादा बढ़ने की संभावना लगातार बनी हुई है. भारत में कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है. इसका अंदेशा सरकार और मेडिकल एक्सपर्ट भी जता रहे हैं. क्या इस तीसरी लहर के भी जिम्मेदार हम या हमारे अस्पताल ही होंगे. संक्रमण के इस दौर में लापरवाही बरतने की भारी कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है, लेकिन अस्पतालों के बाहर लगे बायो मेडिकल वेस्ट के ढ़ेर, खुले में पड़े सर्जिकल मास्क, ग्लब्ज सहित दूसरी चीजें यहां आने वाले लोगों न सिर्फ कोराना से संक्रमित कर सकती हैं बल्कि दूसरी कई बीमारियों की वजह भी बन सकती हैं. ईटीवी भारत ने हॉस्पिटल के मेडिकल बेस्ट डिस्पोज ऑफ करने के दावों की पड़ताल की, जिसमें साफ नजर आया कि चाहे प्राइवेट हों या सरकारी हॉस्पिटल मेडिकल बेस्ट के डिस्पोजल को लेकर कोई गंभीर नजर नहीं आया.

शहर के सरकारी और निजी अस्पताल दे रहे हैं संक्रमण को न्योता

खुले में पड़ा है कोविड वार्डों से निकला मेडिकल वेस्ट

महामारी के बढ़ते संक्रमण के बीच भी मेडिकल वेस्ट के डिस्पोज ऑफ को लेकर स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की लापरवाही भी लगातार बनी हुई है. ईटीवी भारत की टीम ने ग्वालियर शहर के कई सरकारी और निजी अस्पतालों हाल देखा जहां हॉस्पिटल्स के बाहर ही मेडिकल कचरे की ढ़ेर लगे हुए दिखे. यह कोविड वार्डो से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट था, जिसके संपर्क में जानवर और इंसान दोनों ही आ रहे हैं. इस वजह से शहर में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. लेकिन हॉस्पिटल प्रबंधन, स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है. जिम्मेदारों की तरफ से मेडिकल वेस्ट को समय पर नष्ट कराने के कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं. जबकि सभी लोग इस बात को भलीभांति जानते हैं कि यह लापरवाही लोगों की जान पर भारी पड़ सकती है.

  • ग्वालियर शहर के अधिकतर सरकारी और निजी अस्पतालों में मेडिकल वेस्ट को ठिकाने लगाने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं दिखाई दी.
  • खुले में फेंका जा रहे मेडिकल वेस्ट कई दिनों तक अस्पतालों के बाहर ही पड़ा रहता है. जबकि ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के पास इंसीनरेटर मौजूद है. इसके बावजूद इस मेडिकल कचरे को इंसीनरेटर तक पहुंचाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है.
  • इस मेडिकल वेस्ट में डॉक्टरों के द्वारा उतारी गई पीपीई किट, ग्लब्स, मास्क और दूसरे मेडीकल वेस्ट शामिल है.
  • अस्पतालों के बाहर पड़ा मेडिकल वेस्ट को अवारा जानवर इधर उधर फैला देते हैं. जिससे जानवरों और इंसानों दोनों के संक्रमण का खतरा बना रहता है.

पर्यटन संपदाओं से भरा भिंड, फिर भी वीरान

कुप्रबंधन से बढ़ा खतरा

  • ग्वालियर शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों से रोजना लगभग 3 क्विंटल के करीब मेडिकल वेस्ट निकलता है.
  • जिला प्रशासन ने शहर के अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को उठाने की जिम्मेदारी एक प्राइवेट कंपनी को दी है.
  • प्राइवेट कंपनी की गाड़ी शहर के कुछ गिने-चुने सरकारी और निजी अस्पतालों से मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने आती है.
  • मेडिकल वेस्ट को कलेक्ट करने के लिए गाड़ी को सुबह शाम आना होता है, लेकिन ज्यादा लोड़ होने का बहाना करके कंपनी की गाड़ी दिन में सिर्फ एक बार ही कचरा लेने जाती है. जिस वजह से अस्पतालों के बाहर मेडिकल कचरे के ढ़ेर लग रहे हैं.
  • शहर में नए बने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में मेडिकल बेस्ट को नष्ट करने के लिए इंसीनरेटर (भस्मक) मशीन लगी हुई है यहां मेडिकल वेस्ट को नष्ट किया जाता है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के बाहर ही मेडिकल वेस्ट कई घंटों तक पड़ा रहता है.
  • सुपर स्पेशलिटी के अधीक्षक से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उनका कहना था कि-

अस्पताल के बाहर से इस मेडिकल वेस्ट को उठाने के लिए गाड़ी आती है, तब तक यह वहीं पड़ा रहता है.हमने सभी मरीजों के परिजनों को मना कर दिया है कि वे वहां न बैठें. अगर वह नहीं मानते हैं तो इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं.

डॉ.गिरजा शंकर ,अधीक्षक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल , ग्वालियर


मरीजों के परिजनों को है सबसे ज्यादा खतरा

  • अस्पतालों के बाहर पड़े इस मेडिकल बेस्ट से होने वाले संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा यहां आने वाले मरीजों के परिजनों को है.
  • हॉस्पिटल में मरीज को भर्ती कर लिया जाता है, लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए परिजनों को अस्पताल में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. जिससे परिजन अस्पताल के बाहर बैठे रहते हैं. यही वजह है कि उनके संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा होता है.


    अस्पतालों को हैं सख्त निर्देश, लेकिन नहीं हो रहा पालन
    शहर के हॉस्पिटल से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को लेकर ईटीवी भारत ने नगर निगम के कचरा प्रबंधन कमिश्नर अतिबल सिंह यादव से भी बातचीत की उनका दावा था कि

रोज गाड़ियां सुबह शाम सरकारी और निजी अस्पतालों के साथ-साथ ऐसे लोग हो होम कोरेन्टाइन है उनके घर पहुंच कर मेडिकल वेस्ट को उठाती हैं. उसके बाद वेस्ट को केदारपुर फिलिंग साइट पर ले जाया जाता है जहां उस मेडिकल वेस्ट को नष्ट किया जाता है. शहर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में रोज 3 क्विंटल से अधिक मेडिकल वेस्ट निकलता है,लेकिन शहर के ही कुछ अस्पताल ऐसे हैं जो मेडिकल वेस्ट को अन्य जगह या खुले में भी ठिकाने लगा रहे हैं.ऐसे अस्पताल प्रबंधकों को सख्त निर्देश दे दिए गए हैं किअस्पताल से निकलने वाला मेडिकल बेस्ट गाड़ी में ही डालें।


अतिबल सिंह यादव, डिप्टी कमिश्नर कचरा प्रबंधन, नगर निगम ग्वालियर

दूसरी तरफ ईटीवी भारत की टीम ने जब जिला स्वास्थ्य अधिकारी मनीष शर्मा से बात की तो उन्हें मेडिकल वेस्ट के अस्पतालों के बाहर खुले में पड़े रहने और कुछ अस्पतालों के शहर के बाहर खुले में ही मेडिकल वेस्ट को ठिकाने लगाए जाने की कोई जानकारी नहीं थी. वे यह तो मानते हैं कि मेडिकल वेस्ट लोगों के लिए बहुत ही घातक होता है, क्योंकि यह वेस्ट पूरी तरीके से संक्रमित होता है, अगर इसके संपर्क में कोई भी व्यक्ति आता है तो वह संक्रमित हो सकता है. लेकिन मेडिकल वेस्ट के निस्तारण को लेकर शहर के हॉस्पिटल लापरवाही बरत रहे इसे लेकर उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.शर्मा का कहना था कि-

जिला प्रशासन ने एक प्राइवेट संस्था को यह वेस्ट उठाने का ठेका दिया हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी अगर ऐसी कोई सूचना है तो मैं इसे दिखाता हूं.मेडिकल वेस्ट को तत्काल नष्ट करने के लिए जिला प्रशासन से बातचीत करेंगे .


डॉ.मनीष शर्मा, जिला स्वास्थ्य अधिकारी

ये हैं बायो मेडिकल वेस्ट के डिस्पोजल के नियम

  • हॉस्पिटल मैनेजमेंट को हॉस्पिटल से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट को 3 हिस्सों में बांटना होता है.
  • ब्लड, मानव अंग जैसी चीजों को रेड कलर के डिब्बे में डालना होता है.
  • कॉटन, सिरिंज, दवाइयों को पीले डिब्बे में डाला जाता है.
  • संक्रमित मरीजों के खाने पीने की बची हुई चीजों को ग्रीन कलर के डिब्बे में डाला जाता है.
  • इस डिब्बे में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद ही इसे सैनेटाइज कर पैक करके अलग रख दिया जाता है, जिससे इनफेक्शन के चांस न हों.

तीन चरणों में होता है डिस्पोजल

  • बायोमेडिकल वेस्ट उठाने वाली एजेंसियों को हॉस्पिटल, नर्सिग होम समेत मेडिकल संस्थानों में तीन अलग अलग रंग वाले डब्बे रखे हुए हैं.
  • लाल रंग वाले बिन में मेडिकल के प्लास्टिक वेस्ट रखे जाते हैं. पीले रंग के बिन में इनसिनिरेट (जलाने वाले) वेस्ट को रखा जाता है. जिसमें ब्लड बैग, मांस के हिस्से, सर्जरी के दौरान निकलने वाले वेस्ट को इनमें रखा जाता है.
  • इंजेक्शन से बॉयल या कांच से बने दूसरे मेडिकल उपकरण के वेस्ट को नीले रंग के डिब्बे में रखा जाता है.
  • लाल रंग के डिब्बे में रखे प्लास्टिक वेस्ट को ऑटो क्लेव कर छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर री-साइकिलिंग के लिए भेजा जाता है.
  • पीले रंग वाले सर्जरी वेस्ट को इनसिनिरेटर में बगैर हवा के जला दिया जाता है.
  • नीले रंग के डिब्बे में रखे कांच के डिस्पोज को तोड़कर जमीन में गहराई में दबा दिया जाता है.

ग्वालियर। कोरोना संक्रमण बढ़ने और संक्रमित मरीजों के अस्पताल तक पहुंचने का सिलसिला लगातार जारी है. कोरोना का संक्रमण न तो कम हुआ है और न ही खत्म हुआ है, लेकिन इसके और ज्यादा बढ़ने की संभावना लगातार बनी हुई है. भारत में कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है. इसका अंदेशा सरकार और मेडिकल एक्सपर्ट भी जता रहे हैं. क्या इस तीसरी लहर के भी जिम्मेदार हम या हमारे अस्पताल ही होंगे. संक्रमण के इस दौर में लापरवाही बरतने की भारी कीमत लोगों को चुकानी पड़ रही है, लेकिन अस्पतालों के बाहर लगे बायो मेडिकल वेस्ट के ढ़ेर, खुले में पड़े सर्जिकल मास्क, ग्लब्ज सहित दूसरी चीजें यहां आने वाले लोगों न सिर्फ कोराना से संक्रमित कर सकती हैं बल्कि दूसरी कई बीमारियों की वजह भी बन सकती हैं. ईटीवी भारत ने हॉस्पिटल के मेडिकल बेस्ट डिस्पोज ऑफ करने के दावों की पड़ताल की, जिसमें साफ नजर आया कि चाहे प्राइवेट हों या सरकारी हॉस्पिटल मेडिकल बेस्ट के डिस्पोजल को लेकर कोई गंभीर नजर नहीं आया.

शहर के सरकारी और निजी अस्पताल दे रहे हैं संक्रमण को न्योता

खुले में पड़ा है कोविड वार्डों से निकला मेडिकल वेस्ट

महामारी के बढ़ते संक्रमण के बीच भी मेडिकल वेस्ट के डिस्पोज ऑफ को लेकर स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन की लापरवाही भी लगातार बनी हुई है. ईटीवी भारत की टीम ने ग्वालियर शहर के कई सरकारी और निजी अस्पतालों हाल देखा जहां हॉस्पिटल्स के बाहर ही मेडिकल कचरे की ढ़ेर लगे हुए दिखे. यह कोविड वार्डो से निकलने वाला मेडिकल वेस्ट था, जिसके संपर्क में जानवर और इंसान दोनों ही आ रहे हैं. इस वजह से शहर में संक्रमण का खतरा बढ़ गया है. लेकिन हॉस्पिटल प्रबंधन, स्वास्थ्य विभाग और जिला प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है. जिम्मेदारों की तरफ से मेडिकल वेस्ट को समय पर नष्ट कराने के कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं. जबकि सभी लोग इस बात को भलीभांति जानते हैं कि यह लापरवाही लोगों की जान पर भारी पड़ सकती है.

  • ग्वालियर शहर के अधिकतर सरकारी और निजी अस्पतालों में मेडिकल वेस्ट को ठिकाने लगाने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं दिखाई दी.
  • खुले में फेंका जा रहे मेडिकल वेस्ट कई दिनों तक अस्पतालों के बाहर ही पड़ा रहता है. जबकि ग्वालियर मेडिकल कॉलेज के पास इंसीनरेटर मौजूद है. इसके बावजूद इस मेडिकल कचरे को इंसीनरेटर तक पहुंचाने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है.
  • इस मेडिकल वेस्ट में डॉक्टरों के द्वारा उतारी गई पीपीई किट, ग्लब्स, मास्क और दूसरे मेडीकल वेस्ट शामिल है.
  • अस्पतालों के बाहर पड़ा मेडिकल वेस्ट को अवारा जानवर इधर उधर फैला देते हैं. जिससे जानवरों और इंसानों दोनों के संक्रमण का खतरा बना रहता है.

पर्यटन संपदाओं से भरा भिंड, फिर भी वीरान

कुप्रबंधन से बढ़ा खतरा

  • ग्वालियर शहर के सरकारी और निजी अस्पतालों से रोजना लगभग 3 क्विंटल के करीब मेडिकल वेस्ट निकलता है.
  • जिला प्रशासन ने शहर के अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को उठाने की जिम्मेदारी एक प्राइवेट कंपनी को दी है.
  • प्राइवेट कंपनी की गाड़ी शहर के कुछ गिने-चुने सरकारी और निजी अस्पतालों से मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करने आती है.
  • मेडिकल वेस्ट को कलेक्ट करने के लिए गाड़ी को सुबह शाम आना होता है, लेकिन ज्यादा लोड़ होने का बहाना करके कंपनी की गाड़ी दिन में सिर्फ एक बार ही कचरा लेने जाती है. जिस वजह से अस्पतालों के बाहर मेडिकल कचरे के ढ़ेर लग रहे हैं.
  • शहर में नए बने सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में मेडिकल बेस्ट को नष्ट करने के लिए इंसीनरेटर (भस्मक) मशीन लगी हुई है यहां मेडिकल वेस्ट को नष्ट किया जाता है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के बाहर ही मेडिकल वेस्ट कई घंटों तक पड़ा रहता है.
  • सुपर स्पेशलिटी के अधीक्षक से जब ईटीवी भारत की टीम ने बात की तो उनका कहना था कि-

अस्पताल के बाहर से इस मेडिकल वेस्ट को उठाने के लिए गाड़ी आती है, तब तक यह वहीं पड़ा रहता है.हमने सभी मरीजों के परिजनों को मना कर दिया है कि वे वहां न बैठें. अगर वह नहीं मानते हैं तो इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं.

डॉ.गिरजा शंकर ,अधीक्षक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल , ग्वालियर


मरीजों के परिजनों को है सबसे ज्यादा खतरा

  • अस्पतालों के बाहर पड़े इस मेडिकल बेस्ट से होने वाले संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा यहां आने वाले मरीजों के परिजनों को है.
  • हॉस्पिटल में मरीज को भर्ती कर लिया जाता है, लेकिन कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए परिजनों को अस्पताल में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. जिससे परिजन अस्पताल के बाहर बैठे रहते हैं. यही वजह है कि उनके संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा होता है.


    अस्पतालों को हैं सख्त निर्देश, लेकिन नहीं हो रहा पालन
    शहर के हॉस्पिटल से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट को लेकर ईटीवी भारत ने नगर निगम के कचरा प्रबंधन कमिश्नर अतिबल सिंह यादव से भी बातचीत की उनका दावा था कि

रोज गाड़ियां सुबह शाम सरकारी और निजी अस्पतालों के साथ-साथ ऐसे लोग हो होम कोरेन्टाइन है उनके घर पहुंच कर मेडिकल वेस्ट को उठाती हैं. उसके बाद वेस्ट को केदारपुर फिलिंग साइट पर ले जाया जाता है जहां उस मेडिकल वेस्ट को नष्ट किया जाता है. शहर के सभी सरकारी और निजी अस्पतालों में रोज 3 क्विंटल से अधिक मेडिकल वेस्ट निकलता है,लेकिन शहर के ही कुछ अस्पताल ऐसे हैं जो मेडिकल वेस्ट को अन्य जगह या खुले में भी ठिकाने लगा रहे हैं.ऐसे अस्पताल प्रबंधकों को सख्त निर्देश दे दिए गए हैं किअस्पताल से निकलने वाला मेडिकल बेस्ट गाड़ी में ही डालें।


अतिबल सिंह यादव, डिप्टी कमिश्नर कचरा प्रबंधन, नगर निगम ग्वालियर

दूसरी तरफ ईटीवी भारत की टीम ने जब जिला स्वास्थ्य अधिकारी मनीष शर्मा से बात की तो उन्हें मेडिकल वेस्ट के अस्पतालों के बाहर खुले में पड़े रहने और कुछ अस्पतालों के शहर के बाहर खुले में ही मेडिकल वेस्ट को ठिकाने लगाए जाने की कोई जानकारी नहीं थी. वे यह तो मानते हैं कि मेडिकल वेस्ट लोगों के लिए बहुत ही घातक होता है, क्योंकि यह वेस्ट पूरी तरीके से संक्रमित होता है, अगर इसके संपर्क में कोई भी व्यक्ति आता है तो वह संक्रमित हो सकता है. लेकिन मेडिकल वेस्ट के निस्तारण को लेकर शहर के हॉस्पिटल लापरवाही बरत रहे इसे लेकर उन्हें कोई जानकारी नहीं थी.शर्मा का कहना था कि-

जिला प्रशासन ने एक प्राइवेट संस्था को यह वेस्ट उठाने का ठेका दिया हुआ है, लेकिन इसके बावजूद भी अगर ऐसी कोई सूचना है तो मैं इसे दिखाता हूं.मेडिकल वेस्ट को तत्काल नष्ट करने के लिए जिला प्रशासन से बातचीत करेंगे .


डॉ.मनीष शर्मा, जिला स्वास्थ्य अधिकारी

ये हैं बायो मेडिकल वेस्ट के डिस्पोजल के नियम

  • हॉस्पिटल मैनेजमेंट को हॉस्पिटल से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट को 3 हिस्सों में बांटना होता है.
  • ब्लड, मानव अंग जैसी चीजों को रेड कलर के डिब्बे में डालना होता है.
  • कॉटन, सिरिंज, दवाइयों को पीले डिब्बे में डाला जाता है.
  • संक्रमित मरीजों के खाने पीने की बची हुई चीजों को ग्रीन कलर के डिब्बे में डाला जाता है.
  • इस डिब्बे में लगी पॉलिथीन के आधे भरने के बाद ही इसे सैनेटाइज कर पैक करके अलग रख दिया जाता है, जिससे इनफेक्शन के चांस न हों.

तीन चरणों में होता है डिस्पोजल

  • बायोमेडिकल वेस्ट उठाने वाली एजेंसियों को हॉस्पिटल, नर्सिग होम समेत मेडिकल संस्थानों में तीन अलग अलग रंग वाले डब्बे रखे हुए हैं.
  • लाल रंग वाले बिन में मेडिकल के प्लास्टिक वेस्ट रखे जाते हैं. पीले रंग के बिन में इनसिनिरेट (जलाने वाले) वेस्ट को रखा जाता है. जिसमें ब्लड बैग, मांस के हिस्से, सर्जरी के दौरान निकलने वाले वेस्ट को इनमें रखा जाता है.
  • इंजेक्शन से बॉयल या कांच से बने दूसरे मेडिकल उपकरण के वेस्ट को नीले रंग के डिब्बे में रखा जाता है.
  • लाल रंग के डिब्बे में रखे प्लास्टिक वेस्ट को ऑटो क्लेव कर छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर री-साइकिलिंग के लिए भेजा जाता है.
  • पीले रंग वाले सर्जरी वेस्ट को इनसिनिरेटर में बगैर हवा के जला दिया जाता है.
  • नीले रंग के डिब्बे में रखे कांच के डिस्पोज को तोड़कर जमीन में गहराई में दबा दिया जाता है.
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