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मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव 2023: बीजेपी के ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले कांग्रेस खाली हाथ, ग्वालियर-चंबल अंचल में विकल्प की तलाश

कांग्रेस एक बार फिर से 2018 विधानसभा चुनाव के परिणामों को दोहराने के लिए जमीनी स्तर पर कमर कस रही है. दूसरी तरफ बीजेपी पिछली बार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करने की तैयारी में जुटी है. लेकिन कांग्रेस के सामने बड़ा सवाल यह है कि ग्वालियर चंबल में कांग्रेस की तरफ से ऐसा कौन सा चेहरा होगा जो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का मुकाबला करे. (Madhya Pradesh assembly elections 2023) (Congress left decision on the public)

Political news Madhya Pradesh
ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस का विकल्प खोंखला
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Published : Apr 6, 2022, 10:37 PM IST

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. बीजेपी और कांग्रेस के नेता चुनावी समर में जनता को रिझाने के लिए हर संभव प्रयास में जुटे हैं, लेकिन पूर्व में कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब से कांग्रेस का हांथ छोड़ भाजपा का दामन थामा है, तब से ग्वालियर चंबल-अंचल में कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन हो चुकी है. यही कारण है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सिंधिया का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस किस नेता को सामने करेगा यह उसके लिए बड़ी चुनौती है.(Madhya Pradesh assembly elections 2023)

ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस का विकल्प खोंखला

सियासत में चंबल मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया! अब-तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल में कांग्रेस के स्थापित नेता थे. 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष भी बनाया था. सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल की ज्यादातर सीटें जीती थी. ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 27 सीटों पर विजय हासिल हुई थी. लेकिन सिंधिया ने जब कांग्रेस का हाथ छोड़ा तब अंचल के 15 विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जा चुके हैं. उपचुनाव में भी 8 सीटों पर बीजेपी और 7 सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी.

कांग्रेस ने कहा जनता तय करे सिंधिया का विकल्प: ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से बाद कांग्रेस के पास अंचल में अब कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से सिंधिया की जगह कौन चेहरा होगा. ग्वालियर चंबल में कांग्रेस के कद्दावर नेता और विधायक डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री लाखन सिंह, पूर्व मंत्री केपी सिंह और युवा चेहरे और दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह ग्वालियर चंबल संभाग से आते हैं. लेकिन कांग्रेस अभी तक इनमें से किसी का नाम तय नहीं कर पाई है. ऐसे में कांग्रेस ने सिंधिया के मुकाबले चुनाव में टिकट देने का फैसला जनता के भरोसे छोड़ दिया है. (Congress left decision on the public)

प्रदेश की राजनीति में चंबल का है खास स्थान: राजनीति के जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल का इलाका अहम माना जाता है. यहां 8 जिलों में विधानसभा की 34 सीटें हैं. ऐसे में जो भी राजनीतिक दल इन सीटों में ज्यादा सीटें जीतता है उसकी सरकार बनने के चांस ज्यादा होते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में 34 सीटों में कांग्रेस 26 सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी 7 सीटें ही अपने खाते में डाल पाई थी. जबकि 1 सीट बीएसपी को मिली थी.(politics of gwalior chambal)

सिंधिया के साथ समर्थकों ने भी बदला पाला
सिंधिया के बीजेपी में जाने से कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों ने भी पाला बदल लिया है. हालांकि उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का प्रदर्शन मिला जुला रहा. ऐसे में अगर ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना है तो खुद को मजबूत करना होगा. सिंधिया की जगह को भरने के लिए कांग्रेस के पास फिलहाल उनके कद का कोई नेता नहीं है. यही वजह है कि ऐसा माना जा रहा है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश भर की राजनीति की दिशा चंबल से तय होगी.

ग्वालियर। मध्यप्रदेश में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. बीजेपी और कांग्रेस के नेता चुनावी समर में जनता को रिझाने के लिए हर संभव प्रयास में जुटे हैं, लेकिन पूर्व में कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जब से कांग्रेस का हांथ छोड़ भाजपा का दामन थामा है, तब से ग्वालियर चंबल-अंचल में कांग्रेस लगभग नेतृत्व विहीन हो चुकी है. यही कारण है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सिंधिया का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस किस नेता को सामने करेगा यह उसके लिए बड़ी चुनौती है.(Madhya Pradesh assembly elections 2023)

ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुकाबला करने के लिए कांग्रेस का विकल्प खोंखला

सियासत में चंबल मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया! अब-तक ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर चंबल में कांग्रेस के स्थापित नेता थे. 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष भी बनाया था. सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने ग्वालियर चंबल की ज्यादातर सीटें जीती थी. ग्वालियर चंबल संभाग की 34 सीटों में से 2018 के चुनावों में कांग्रेस को 27 सीटों पर विजय हासिल हुई थी. लेकिन सिंधिया ने जब कांग्रेस का हाथ छोड़ा तब अंचल के 15 विधायक कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जा चुके हैं. उपचुनाव में भी 8 सीटों पर बीजेपी और 7 सीटों पर कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी.

कांग्रेस ने कहा जनता तय करे सिंधिया का विकल्प: ज्योतिरादित्य सिंधिया के जाने से बाद कांग्रेस के पास अंचल में अब कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में सवाल यह है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से सिंधिया की जगह कौन चेहरा होगा. ग्वालियर चंबल में कांग्रेस के कद्दावर नेता और विधायक डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व मंत्री लाखन सिंह, पूर्व मंत्री केपी सिंह और युवा चेहरे और दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह ग्वालियर चंबल संभाग से आते हैं. लेकिन कांग्रेस अभी तक इनमें से किसी का नाम तय नहीं कर पाई है. ऐसे में कांग्रेस ने सिंधिया के मुकाबले चुनाव में टिकट देने का फैसला जनता के भरोसे छोड़ दिया है. (Congress left decision on the public)

प्रदेश की राजनीति में चंबल का है खास स्थान: राजनीति के जानकारों की मानें तो मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर-चंबल का इलाका अहम माना जाता है. यहां 8 जिलों में विधानसभा की 34 सीटें हैं. ऐसे में जो भी राजनीतिक दल इन सीटों में ज्यादा सीटें जीतता है उसकी सरकार बनने के चांस ज्यादा होते हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में 34 सीटों में कांग्रेस 26 सीट पर जीत हासिल की थी, जबकि बीजेपी 7 सीटें ही अपने खाते में डाल पाई थी. जबकि 1 सीट बीएसपी को मिली थी.(politics of gwalior chambal)

सिंधिया के साथ समर्थकों ने भी बदला पाला
सिंधिया के बीजेपी में जाने से कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों ने भी पाला बदल लिया है. हालांकि उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस का प्रदर्शन मिला जुला रहा. ऐसे में अगर ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस को अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना है तो खुद को मजबूत करना होगा. सिंधिया की जगह को भरने के लिए कांग्रेस के पास फिलहाल उनके कद का कोई नेता नहीं है. यही वजह है कि ऐसा माना जा रहा है कि 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश भर की राजनीति की दिशा चंबल से तय होगी.

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