देवास। जिला मुख्यायल से करीब 150 किलोमीटर दूर नेमावर में नर्मदा नदी के मोक्ष दामिनी तट पर पितृमोक्ष अमावस्या की रात हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालू पहुंचते हैं. यहां देर रात से तंत्र-मंत्र और आस्था का कार्य शुरू हो जाता है. 21वीं सदी में जहां विज्ञान काफी तेजी से अग्रसर है, वहीं नेमावर में मां नर्मदा नदी के इस तट पर श्रद्धालू अपने दुख और दरिद्रता से निजात पाने के लिए आते हैं. श्रद्धालुओं को यहां हथियारों से तंत्र-मंत्र की साधना करते देखा जा सकता है. बाबा-बेरागी भी यहां पर जमकर अंधविश्वास का खेल खेलते नजर आते हैं. वहीं मानसिक रूप से बीमार लोगों को भी यहां देखा जा सकता है. लेकिन आखिर ऐसी क्या परंपरा है जिस वजह से लोग यहां खिंचे चले आते हैं. यह जानने के लिए रिपोर्ट पढ़ें.
आस्था के नाम पर अंधविश्वास का खेल
लोगों का मानना है कि सिद्ध स्थान होने के कारण बाहरी बाधाओं से पीड़ित लोग अपने परिजन के साथ यहां आते हैं. पितृमोक्ष अमावस्या की पूरी रात नर्मदा के तट पर तंत्र-मंत्र और आस्था का नजारा देखने को मिलता है. मोक्ष दामिनी तट पर पंडित और बाबा झूमते-नाचते हुए बुरी शक्तियों पर काबू पाने की जद्दोजहद करते रहते हैं. हैरानी की बात तो यह है कि लोग इसे आस्था का पर्व मानते हैं.
रातभर चलता है झाड़-फूंक का सिलसिला
मोक्ष दामिनी तट पर झाड़-फूंक करने वाले पीड़ितों को बैठाकर विधि-विधान से पूजा-पाठ और तंत्र-मंत्र कर बुरी शक्ति को बाहर निकालने की कोशिश करते हैं. पीड़ितों के परिजन के मुताबिक, शक्तियां विकराल रूप ले लेती हें, और पीड़ित के शरीर को छोड़ने के लिए शर्तें रखती हैं, तब जाकर काबू में आने पर पंडित द्वारा बुरी शक्तियों से पीड़ित को पुजा-पाठ कर नर्मदा नदी में डुबकी लगवाई जाती है.
ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से बुरी शक्तियां पीड़ित के शरीर को छोड़कर बाहर निकल जाती हैं. इसके बाद बुरी आत्माएं उन्हें कभी दोबारा परेशान नहीं करतीं. इसी आस्था और विश्वास के कारण सालों से यहां ये सब किया जाता है. पितृमोक्ष अमावस्या के दिन शासन-प्रशासन भी यहां तैनात रहता है, ताकि किसी तरह से कोई जनहानि न हो सके.