छिंदवाड़ा। भले ही दुनिया सोशल मीडिया के युग में चली गई हो लेकिन छिंदवाड़ा की एक ऐसी परंपरा है जो आज भी पिछले 134 सालों से लगातार चली आ रही है. हम बात कर रहे हैं मप्र की सबसे पुरानी रामलीला मंडली की जो लगातार परंपरा को निभाते आ रहे हैं. 1889 में लालटेन की रोशनी में शुरु हुई रामलीला इस साल आधुनिक तकनीक के साथ 134 वे साल में प्रवेश कर चुकी है. (india oldest ramleela) समय बदलता गया उस हिसाब से रामलीला मंडल ने भी बदलाव किए लेकिन संस्कार और परंपरा चलती रहे इसलिए आज भी मर्यादापुरूषोत्तम की लीला का मंचन होता है. (Chhindwara hi tech Ramlila)
400 लोगों की टीम करती है काम: रामलीला मंडली (Ramleela mandal chhindwara) के लिए करीब 4 सौ लोंगो की टीम काम करती है. शुरुआत होने के एक महीने पहले ही लोग अपने अपने काम में लग जाते हैं. और बाद में मंच पर दिखते हैं. रामलीला में काम करने वाले सभी लोग किसी ना किसी नौकरी या व्यवसाय से जुड़े हैं. लेकिन अपनी परंपरा चलती रहे इसके लिए 1 महीना अपने कामों से समय चुराकर निशुल्क रामलीला को देते हैं. रामलीला की सबसे बड़ी खासियत है कि, यहां एक नहीं चार चार पीढ़ियां एक साथ काम कर रही है. रावण का किरदार निभा रहे डॉकघर में पोस्टमास्टर की नौकरी करने वाले विनोद विश्वकर्मा बताते हैं कि, वे 47 सालों रामलीला में मंचन कर रहे हैं. और रावण का किरदार 23 सालों से निभा रहें हैं. उनकी खुद की तीसरी पीढ़ी अब रामलीला में मंचन कर रही है.
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लालटेन की रोशनी में शुरू हुई थी रामलीला: रामलीला मंडली के अध्यक्ष सतीश दुबे बताते हैं कि समय बदला है और आधुनिक मीडिया के युग में रंगमंच तक दर्शकों को लाना बड़ी चुनौती होती है. फिर भी वे इस दौर में लोगों को मंच तक लाकर राम की लीला और उनके आदर्शों को परोसने का काम कर रहे हैं. जिससे की लोग अपनी संस्कृति से जुड़े रहे समय बदला है तो रामलीला ने अपनी तकनीक बदली है. शुरुआत में बिजली नहीं तो लालटेन की रोशनी में रामलीला होती थी.अब इसमें तकनीक सहारा लेते हुए 3 डी इफेक्ट डाले गए हैं. ऐसे नजारे जो मंच पर दिखाना मुश्किल होता है. उनको पहले छिंदवाड़ा में ही कलाकारों द्वारा फिल्माया गया और फिर उन्हें स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है. खास बात यह है कि, जो कलाकर एलईडी में दिखाया जाता है वो ही असल कलाकर मंच पर भी होता है.
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