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...तो पानी को तरसेंगे हमारे बच्चे ! MP में जल संरक्षण के दावे ज्यादा, काम कम - how to conserve water

जल संरक्षण इस समय देश-दुनिया की सबसे चर्चित विषयों में से एक है. लगभग पूरी दुनिया ही पानी की कमी से जूझ रही है. कई जानकार तो ऐसा भी कहते हैं कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा. मध्य प्रदेश के हालात भी ज्यादा अच्छे नहीं हैं.

water harvesting
जल संरक्षण जरूरी है
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Published : Jul 21, 2021, 10:39 AM IST

भोपाल। प्रदेश में लाख कोशिशों के बाद भी वाटर लेवल लगातार नीचे जा रहा है. सरकार जल संरक्षण को लेकर काम करने के बड़े बड़े दावे करती है, लेकिनी जमीन स्तर पर कुछ खास नहीं हो रहा है. सरकारी एजेंसी के नए आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 24 जिलों में भूजल ग्राउंड वाटर 2 से 4 मीटर तक गिर चुका है .जबकि 14 जिलों में ये 3 मीटर से ज्यादा नीचे गिर चुका है.

अभी जागना जरूरी है, समय कम है

पानी की समस्या से पूरा देश जूझ रहा है. बात मध्य प्रदेश की करें, तो यहां वाटर लेवल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है. भोपाल और इंदौर जिले के कई ब्लॉक क्रिटिकल बताए गए हैं . इसका कारण है अंधाधुंध ट्यूबवेल और बोरवेल की खुदाई. गनीमत रही कि पिछले दो सालों में अच्छी बारिश हुई है. इससे भूजल स्तर भी कुछ ठीक हुआ है. 52 जिलों के 312 ब्लॉक में से 240 ब्लॉक अब सेफ कैटेगरी में हैं यानी जहां पर जलस्तर नहीं गिरा. लेकिन अभी भी 22 ब्लॉक ऐसे हैं जहां पर जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है. वहां पर लगातार वाटर लेवल नीचे जा रहा है . सबसे ज्यादा दोहन के मामले में मालवा क्षेत्र सबसे आगे है.

नियम से ज्यादा जागरूकता जरूरी

जल संरक्षण के लिए सरकार जन जागरूकता कार्यक्रम चलाने से लेकर कानून बनाने तक सारे जतन कर रही है. नियम बना दिए जाते हैं लेकिन उन पर अमल हो रहा है कि नहीं ये देखना प्रशासन भूल जाता है. उदाहरण के लिए सरकारी बिल्डिंगों में अभी तक जल संरक्षण को लेकर कंफ्यूजन है. भोपाल में नए मंत्रालय और सतपुड़ा की बात करें तो यहां पर वाटर ट्रीटमेंट रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है लेकिन बाकी बड़ी बिल्डिंगों में इस पर कोई ध्यान नहीं है.


140 वर्ग मीटर से ज्यादा प्लॉट के लिए जरूरी है वाटर हार्वेस्टिंग

बात राजधानी भोपाल की करते हैं. नगर निगम ने बिल्डिंग परमिशन के लिए 140 वर्ग मीटर से ऊपर के प्लॉटों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का नियम बनाया है. लेकिन यहां भी भी महज खानापूर्ति हो रही है. नगर निगम के भवनों में ही सिस्टम नहीं है तो लोगों को किस मुंह से कहेंगे. भोपाल के विंध्याचल सतपुड़ा भवन और पुराने वल्लभ भवन तीनों की छतों का कुल क्षेत्रफल 92 हजार वर्ग मीटर है. रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए लाखों लीटर पानी बचाया जा सकता है.

एक छत से एक साल में बच सकता है 8 लाख लीटर पानी

एक अनुमान के मुताबिक 140 वर्ग मीटर की छत से साल भर में औसतन 8 लाख लीटर पानी बचाया जा सकता है. ऐसी व्यवस्था हो कि ये पानी सीधा जमीन में चला जाए, तो जमीन का वाटर लेवल बढ़ेगा. कुछ लापरवाह हैं तो कुछ समाज को जगाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. संजय शर्मा लाखों लीटर पानी की बचत करते हैं . उन्होंने ऐसी व्यवस्था की है कि बरसात का पानी बोरवेल में जाता है. इससे उनका बोरवेल गर्मियों में भी अच्छा पानी देता है.

खेती में खप जाता है ज्यादातर पानी

आंकड़े बताते हैं कि जमीन का ज्यादातर पानी अभी खेती में इस्तेमाल होता है. खेती में लगभग 80 फ़ीसदी जमीन के पानी का दोहन हो रहा है. जाहिर है पानी नहीं बचाया गया तो खेती के लिए भी मुश्किल होगी. गिरते वाटर लेवल के बारे में अब किसान भी सोचने लगे हैं. कुछ साल पहले जो पानी 80 फीट पर था, अब वह 120 फीट से नीचे पहुंच गया है.

पानी के लिए 15 साल में खर्च हुए 65 हजार करोड़

पिछले 15 सालों में जल संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश में 65 हज़ार करोड़ से ज्यादा खर्च होचुके हैं. सरकार की ओर से जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन, मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना, छोटे मझोले नगरों की अधोसंरचना विकास योजना जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. हर सरकार का हर मंत्री यही कहता है कि हमारी सरकार जल संरक्षण के लिए कठोर कदम उठा रही है. सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह कहते हैं अब बिल्डिंग परमिशन उसी को मिलेगी जो पेड़ लगाएगा .


नहीं सुधरे तो नतीजा भुगतने को रहें तैयार

सरकार लाख दावे करे लेकिन पर्यावरणविदों की चिंता कम नहीं हो रही है. पर्यावरणविद् सुभाष पांडेय कहते हैं कि पानी की जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है. वार्ट हार्वेस्टिंग नाम मात्र की हो रही है. कुदरती जंगल काटे जा रहे हैं, कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं. इसका नतीजा हम सबको भुगतना होगा.

राज्य में ज्यादातर जिलो में भूजल स्तर गिरा है. लेकिन पिछले दो सालो में सरकारी कोशिशें और जागरूकता रंग ला रही है. 2019 के मुकाबले 2020 में कई जिलों में वाटर लेवल बढ़ा है.

किस जिले में कितना वाटर लेवल

जिला मई 2015 मई 2019मई 2020
बुरहानपुर13. 2414.54 13.37
उज्जैन 14.71 15.25 11.22
देवास 10.84 11.8110.71
नीमच 12.67 15.10 13.89
मंदसौर 11.05 12.95 11.58
रतलाम 10.76 17.05 5.79
आगर 12.10 14.07 10.77
मुरैना 17.9 15.9016.65
भिंड 16.34 16.15 15.79
नरसिंहपुर 10.49 11.2310 .62
सीहोर10.55 11.1210.05



कुछ जिलों में वाटर लेवल सुधरा है. लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. प्रदेश के 312 ब्लॉक में से 22 ब्लॉक में अंधाधुंध खनन हो रहा है. इनमें से ज्यादातर मालवा क्षेत्र में हैं. उज्जैन, शाजापुर, रतलाम, देवास, मंदसौर, इंदौर, आगर और धार शामिल हैं. अच्छी बात ये है कि 240 ब्लॉक्स सुरक्षित ग्राउंड लेवल में हैं.

भोपाल। प्रदेश में लाख कोशिशों के बाद भी वाटर लेवल लगातार नीचे जा रहा है. सरकार जल संरक्षण को लेकर काम करने के बड़े बड़े दावे करती है, लेकिनी जमीन स्तर पर कुछ खास नहीं हो रहा है. सरकारी एजेंसी के नए आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 24 जिलों में भूजल ग्राउंड वाटर 2 से 4 मीटर तक गिर चुका है .जबकि 14 जिलों में ये 3 मीटर से ज्यादा नीचे गिर चुका है.

अभी जागना जरूरी है, समय कम है

पानी की समस्या से पूरा देश जूझ रहा है. बात मध्य प्रदेश की करें, तो यहां वाटर लेवल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है. भोपाल और इंदौर जिले के कई ब्लॉक क्रिटिकल बताए गए हैं . इसका कारण है अंधाधुंध ट्यूबवेल और बोरवेल की खुदाई. गनीमत रही कि पिछले दो सालों में अच्छी बारिश हुई है. इससे भूजल स्तर भी कुछ ठीक हुआ है. 52 जिलों के 312 ब्लॉक में से 240 ब्लॉक अब सेफ कैटेगरी में हैं यानी जहां पर जलस्तर नहीं गिरा. लेकिन अभी भी 22 ब्लॉक ऐसे हैं जहां पर जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है. वहां पर लगातार वाटर लेवल नीचे जा रहा है . सबसे ज्यादा दोहन के मामले में मालवा क्षेत्र सबसे आगे है.

नियम से ज्यादा जागरूकता जरूरी

जल संरक्षण के लिए सरकार जन जागरूकता कार्यक्रम चलाने से लेकर कानून बनाने तक सारे जतन कर रही है. नियम बना दिए जाते हैं लेकिन उन पर अमल हो रहा है कि नहीं ये देखना प्रशासन भूल जाता है. उदाहरण के लिए सरकारी बिल्डिंगों में अभी तक जल संरक्षण को लेकर कंफ्यूजन है. भोपाल में नए मंत्रालय और सतपुड़ा की बात करें तो यहां पर वाटर ट्रीटमेंट रेन वाटर हार्वेस्टिंग की तकनीक का इस्तेमाल किया गया है लेकिन बाकी बड़ी बिल्डिंगों में इस पर कोई ध्यान नहीं है.


140 वर्ग मीटर से ज्यादा प्लॉट के लिए जरूरी है वाटर हार्वेस्टिंग

बात राजधानी भोपाल की करते हैं. नगर निगम ने बिल्डिंग परमिशन के लिए 140 वर्ग मीटर से ऊपर के प्लॉटों के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने का नियम बनाया है. लेकिन यहां भी भी महज खानापूर्ति हो रही है. नगर निगम के भवनों में ही सिस्टम नहीं है तो लोगों को किस मुंह से कहेंगे. भोपाल के विंध्याचल सतपुड़ा भवन और पुराने वल्लभ भवन तीनों की छतों का कुल क्षेत्रफल 92 हजार वर्ग मीटर है. रेन वाटर हार्वेस्टिंग के जरिए लाखों लीटर पानी बचाया जा सकता है.

एक छत से एक साल में बच सकता है 8 लाख लीटर पानी

एक अनुमान के मुताबिक 140 वर्ग मीटर की छत से साल भर में औसतन 8 लाख लीटर पानी बचाया जा सकता है. ऐसी व्यवस्था हो कि ये पानी सीधा जमीन में चला जाए, तो जमीन का वाटर लेवल बढ़ेगा. कुछ लापरवाह हैं तो कुछ समाज को जगाने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. संजय शर्मा लाखों लीटर पानी की बचत करते हैं . उन्होंने ऐसी व्यवस्था की है कि बरसात का पानी बोरवेल में जाता है. इससे उनका बोरवेल गर्मियों में भी अच्छा पानी देता है.

खेती में खप जाता है ज्यादातर पानी

आंकड़े बताते हैं कि जमीन का ज्यादातर पानी अभी खेती में इस्तेमाल होता है. खेती में लगभग 80 फ़ीसदी जमीन के पानी का दोहन हो रहा है. जाहिर है पानी नहीं बचाया गया तो खेती के लिए भी मुश्किल होगी. गिरते वाटर लेवल के बारे में अब किसान भी सोचने लगे हैं. कुछ साल पहले जो पानी 80 फीट पर था, अब वह 120 फीट से नीचे पहुंच गया है.

पानी के लिए 15 साल में खर्च हुए 65 हजार करोड़

पिछले 15 सालों में जल संरक्षण के लिए मध्यप्रदेश में 65 हज़ार करोड़ से ज्यादा खर्च होचुके हैं. सरकार की ओर से जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन, मुख्यमंत्री शहरी पेयजल योजना, छोटे मझोले नगरों की अधोसंरचना विकास योजना जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. हर सरकार का हर मंत्री यही कहता है कि हमारी सरकार जल संरक्षण के लिए कठोर कदम उठा रही है. सरकार के मंत्री भूपेंद्र सिंह कहते हैं अब बिल्डिंग परमिशन उसी को मिलेगी जो पेड़ लगाएगा .


नहीं सुधरे तो नतीजा भुगतने को रहें तैयार

सरकार लाख दावे करे लेकिन पर्यावरणविदों की चिंता कम नहीं हो रही है. पर्यावरणविद् सुभाष पांडेय कहते हैं कि पानी की जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है. वार्ट हार्वेस्टिंग नाम मात्र की हो रही है. कुदरती जंगल काटे जा रहे हैं, कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं. इसका नतीजा हम सबको भुगतना होगा.

राज्य में ज्यादातर जिलो में भूजल स्तर गिरा है. लेकिन पिछले दो सालो में सरकारी कोशिशें और जागरूकता रंग ला रही है. 2019 के मुकाबले 2020 में कई जिलों में वाटर लेवल बढ़ा है.

किस जिले में कितना वाटर लेवल

जिला मई 2015 मई 2019मई 2020
बुरहानपुर13. 2414.54 13.37
उज्जैन 14.71 15.25 11.22
देवास 10.84 11.8110.71
नीमच 12.67 15.10 13.89
मंदसौर 11.05 12.95 11.58
रतलाम 10.76 17.05 5.79
आगर 12.10 14.07 10.77
मुरैना 17.9 15.9016.65
भिंड 16.34 16.15 15.79
नरसिंहपुर 10.49 11.2310 .62
सीहोर10.55 11.1210.05



कुछ जिलों में वाटर लेवल सुधरा है. लेकिन अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है. प्रदेश के 312 ब्लॉक में से 22 ब्लॉक में अंधाधुंध खनन हो रहा है. इनमें से ज्यादातर मालवा क्षेत्र में हैं. उज्जैन, शाजापुर, रतलाम, देवास, मंदसौर, इंदौर, आगर और धार शामिल हैं. अच्छी बात ये है कि 240 ब्लॉक्स सुरक्षित ग्राउंड लेवल में हैं.

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