ETV Bharat / city

MP उपचुनाव में 'दलित वोट' हथियाने की जंग, बीजेपी-कांग्रेस और बसपा में किसको मिलेगा संग

मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव की जंग त्रिकोणीय नजर आ रही है. क्योंकि जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं. उन सीटों के जातीय समीकरण पर गौर करें, तो इन उपचुनावों में अनुसूचित जाति के मतदाता गेम चेंजर की भूमिका निभा सकते हैं. शायद यही वजह है कि सभी 28 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी भी उपचुनाव लड़ रही है. देखिए यह खास रिपोर्ट....

by election
आरक्षित कितना सुरक्षित
author img

By

Published : Oct 16, 2020, 8:02 PM IST

भोपाल। मध्य प्रदेश की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. उन सीटों पर इस बार जातिगत समीकरण भी अहम माने जा रहे हैं. इन सीटों के जातीय समीकरण पर गौर करें तो इन उपचुनावों में अनुसूचित जाति के मतदाता गेम चेंजर की भूमिका निभा सकते हैं. माना जा रहा है कि अनुसूचित जाति के मतदाता जिस पार्टी का समर्थन करेंगे. वह पार्टी जीत का स्वाद चख सकती है. इन्हीं समीकरणों को देखकर पहली बार मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी 28 विधानसभा सीटों पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है.

आरक्षित कितना सुरक्षित

हालांकि मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे ग्वालियर चंबल इलाके की 16 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अनुसूचित जाति का मतदाता प्रभावी रहता है. खास बात यह है कि जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. उनमें 26 सीटों में अनुसूचित जाति का मतदाता ऐसी स्थिति में है कि वह जिसको वोट कर देगा उस पार्टी का प्रभाव नतीजों पर पड़ेगा.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा उपचुनाव: बसपा के प्रत्याशियों से बीजेपी-कांग्रेस की सीटों पर क्या पड़ेगा कोई फर्क ?

बसपा और अनुसूचित जाति की भूमिका

खास बात यह है कि अनुसूचित जाति का वोटर ग्वालियर-चंबल में बसपा पर भरोसा जताता रहा है. बसपा यहां से लगातार चुनाव जीतती रही है. पिछले चुनाव में भी बसपा ने जो दो सीटे जीती थी. उनमें एक सीट चंबल अंचल की ही थी. जबकि कई सीटों पर पार्टी दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी.

अनुसूचित जाति का प्रभाव

  • करेरा, भांडेर, डबरा, अंबाह, गोहद, अशोकनगर सांवेर, सांची और आगर सीट अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं.
  • इन 28 सीटों में से 25 सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा अनुसूचित जाती के मतदाता हैं
  • ग्वालियर-चंबल की 16 सीटो पर हो उपचुनाव में 11 पर बसपा कभी न कभी चुनाव जीत चुकी है. जिनमें अशोकनगर, मुरैना, भांडेर, गोहद, मेहगांव और अंबाह शामिल हैं.

बीएसपी का जनाधार घट गयाः कांग्रेस

कांग्रेस नेता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी कांग्रेस के खिलाफ लड़ी थी. लेकिन बीएसपी का जनाधार घट गया है. बीएसपी सैद्धांतिक रूप से इस बात का दावा करती थी कि वह उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेती. लेकिन आज उपचुनाव में हिस्सा ले रही है, तो उसका प्रयोजन क्या है यह तो बीएसपी ही बताएगी. बीजेपी जिस तरह से वोट काटने के लिए कई संगठनों को फंडिंग कर रही है. उसी हिसाब से कई संगठन खड़े हो रहे हैं. लेकिन इससे कांग्रेस को नुकसान नहीं होगा क्योंकि जनता सब समझती है.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा उपचुनाव: ग्वालियर-चंबल के दलितों के पास है एमपी की 'सत्ता की चाबी'

संगठन के दम पर चुनाव लड़ती है बीजेपी

वही बीजेपी और बीएसपी की जुगलबंदी के कयासों को बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल नकारते नजर आते हैं. वे कहते है कि बीजेपी अपने संगठन तंत्र के दम पर विकास के मंत्र के सहारे चुनाव के मैदान में हैं. एससी हो या एसटी या फिर ओबीसी और जनरल हर वर्ग बीजेपी को आशीर्वाद दे रहा है. पिछली बार कांग्रेस की काठ की हांडी चढ़ गई थी, इस बार समीकरण दूसरे हैं. सिंधिया के प्रभाव में कांग्रेस ने कुछ सीटें जीत ली थी. लेकिन इस बार सिंधिया बीजेपी में अपने समर्थकों के साथ है. इसलिए स्वाभाविक है शिवराज सिंह की नीति जो दलित, शोषित, वंचित, पीड़ित के लिए लगातार कारगर है. उस पर बीजेपी को फिर जीत मिलेगी.

ये भी पढ़ेंः मध्यप्रदेश में फिर शिव'राज' या नाथ ही 'राजा', शुक्रवार को किस 'कमल' का बजेगा बाजा ?

राजनीतिक जानकारों की राय

वही बीएसपी और अनुसूचित जाति की भूमिका पर राजनीतिक जानकार दीपक तिवारी कहते है कि बीएसपी अपनी स्थापना से लेकर अब तक कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती रही थी. लेकिन इन उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला है. चुनाव में बीएसपी का आना कोई भी राजनीतिक प्रेक्षक और साधारण आदमी बता देगा कि बीएसपी ने खुद चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी नहीं उतारे हैं. बीएसपी का एकमात्र उद्देश्य कांग्रेस के उम्मीदवारों की हार सुनिश्चित करना है. जिस तरह के जातीय समीकरण इन 28 सीटों में हैं. उसमें कोई भी सीट ऐसी नहीं है, जहां पर 20% से कम अनुसूचित जाति के मतदाता हो.

हालांकि जिस तरह से हाथरस कांड और बीजेपी के खिलाफ जो मुद्दे जा रहे हैं. उन सभी मुद्दों में मायावती मौन रही हैं. उससे लगता है कि बीजेपी और मायावती के बीच अंडरस्टैंडिंग चल रही है. लेकिन अनुसूचित जाति का मतदाता उस अंडरस्टैंडिंग को कितना समझेगा. यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

भोपाल। मध्य प्रदेश की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. उन सीटों पर इस बार जातिगत समीकरण भी अहम माने जा रहे हैं. इन सीटों के जातीय समीकरण पर गौर करें तो इन उपचुनावों में अनुसूचित जाति के मतदाता गेम चेंजर की भूमिका निभा सकते हैं. माना जा रहा है कि अनुसूचित जाति के मतदाता जिस पार्टी का समर्थन करेंगे. वह पार्टी जीत का स्वाद चख सकती है. इन्हीं समीकरणों को देखकर पहली बार मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी 28 विधानसभा सीटों पर चुनावी मैदान में किस्मत आजमा रही है.

आरक्षित कितना सुरक्षित

हालांकि मध्यप्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ धीरे-धीरे कम होता जा रहा है. लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे ग्वालियर चंबल इलाके की 16 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में अनुसूचित जाति का मतदाता प्रभावी रहता है. खास बात यह है कि जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. उनमें 26 सीटों में अनुसूचित जाति का मतदाता ऐसी स्थिति में है कि वह जिसको वोट कर देगा उस पार्टी का प्रभाव नतीजों पर पड़ेगा.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा उपचुनाव: बसपा के प्रत्याशियों से बीजेपी-कांग्रेस की सीटों पर क्या पड़ेगा कोई फर्क ?

बसपा और अनुसूचित जाति की भूमिका

खास बात यह है कि अनुसूचित जाति का वोटर ग्वालियर-चंबल में बसपा पर भरोसा जताता रहा है. बसपा यहां से लगातार चुनाव जीतती रही है. पिछले चुनाव में भी बसपा ने जो दो सीटे जीती थी. उनमें एक सीट चंबल अंचल की ही थी. जबकि कई सीटों पर पार्टी दूसरे और तीसरे स्थान पर रही थी.

अनुसूचित जाति का प्रभाव

  • करेरा, भांडेर, डबरा, अंबाह, गोहद, अशोकनगर सांवेर, सांची और आगर सीट अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं.
  • इन 28 सीटों में से 25 सीटों पर 20 प्रतिशत से ज्यादा अनुसूचित जाती के मतदाता हैं
  • ग्वालियर-चंबल की 16 सीटो पर हो उपचुनाव में 11 पर बसपा कभी न कभी चुनाव जीत चुकी है. जिनमें अशोकनगर, मुरैना, भांडेर, गोहद, मेहगांव और अंबाह शामिल हैं.

बीएसपी का जनाधार घट गयाः कांग्रेस

कांग्रेस नेता भूपेंद्र गुप्ता कहते हैं कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी कांग्रेस के खिलाफ लड़ी थी. लेकिन बीएसपी का जनाधार घट गया है. बीएसपी सैद्धांतिक रूप से इस बात का दावा करती थी कि वह उपचुनाव में हिस्सा नहीं लेती. लेकिन आज उपचुनाव में हिस्सा ले रही है, तो उसका प्रयोजन क्या है यह तो बीएसपी ही बताएगी. बीजेपी जिस तरह से वोट काटने के लिए कई संगठनों को फंडिंग कर रही है. उसी हिसाब से कई संगठन खड़े हो रहे हैं. लेकिन इससे कांग्रेस को नुकसान नहीं होगा क्योंकि जनता सब समझती है.

ये भी पढ़ेंः विधानसभा उपचुनाव: ग्वालियर-चंबल के दलितों के पास है एमपी की 'सत्ता की चाबी'

संगठन के दम पर चुनाव लड़ती है बीजेपी

वही बीजेपी और बीएसपी की जुगलबंदी के कयासों को बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल नकारते नजर आते हैं. वे कहते है कि बीजेपी अपने संगठन तंत्र के दम पर विकास के मंत्र के सहारे चुनाव के मैदान में हैं. एससी हो या एसटी या फिर ओबीसी और जनरल हर वर्ग बीजेपी को आशीर्वाद दे रहा है. पिछली बार कांग्रेस की काठ की हांडी चढ़ गई थी, इस बार समीकरण दूसरे हैं. सिंधिया के प्रभाव में कांग्रेस ने कुछ सीटें जीत ली थी. लेकिन इस बार सिंधिया बीजेपी में अपने समर्थकों के साथ है. इसलिए स्वाभाविक है शिवराज सिंह की नीति जो दलित, शोषित, वंचित, पीड़ित के लिए लगातार कारगर है. उस पर बीजेपी को फिर जीत मिलेगी.

ये भी पढ़ेंः मध्यप्रदेश में फिर शिव'राज' या नाथ ही 'राजा', शुक्रवार को किस 'कमल' का बजेगा बाजा ?

राजनीतिक जानकारों की राय

वही बीएसपी और अनुसूचित जाति की भूमिका पर राजनीतिक जानकार दीपक तिवारी कहते है कि बीएसपी अपनी स्थापना से लेकर अब तक कभी भी उपचुनाव नहीं लड़ती रही थी. लेकिन इन उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला है. चुनाव में बीएसपी का आना कोई भी राजनीतिक प्रेक्षक और साधारण आदमी बता देगा कि बीएसपी ने खुद चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी नहीं उतारे हैं. बीएसपी का एकमात्र उद्देश्य कांग्रेस के उम्मीदवारों की हार सुनिश्चित करना है. जिस तरह के जातीय समीकरण इन 28 सीटों में हैं. उसमें कोई भी सीट ऐसी नहीं है, जहां पर 20% से कम अनुसूचित जाति के मतदाता हो.

हालांकि जिस तरह से हाथरस कांड और बीजेपी के खिलाफ जो मुद्दे जा रहे हैं. उन सभी मुद्दों में मायावती मौन रही हैं. उससे लगता है कि बीजेपी और मायावती के बीच अंडरस्टैंडिंग चल रही है. लेकिन अनुसूचित जाति का मतदाता उस अंडरस्टैंडिंग को कितना समझेगा. यह तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.