भोपाल/रायसेन। मध्यप्रदेश की 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव की तैयारियों में बीजेपी और कांग्रेस जुट गई है. कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी का दामन थामने वाले 22 पूर्व विधायक एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरेंगे. लेकिन इन पूर्व विधायकों को कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी के उन नेताओं से समन्वय बैठाना मुश्किल साबित हो सकता है जिनके खिलाफ ये लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं. कुछ ऐसे ही समीकरण बन रहे हैं रायसेन जिले की सांची विधानसभा सीट पर जहां कांग्रेस से बीजेपी में गए प्रभुराम चौधरी को बीजेपी के दिग्गज नेता गौरीशंकर शेजवार से समन्वय बैठाना जरूरी है.
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सांची विधानसभा सीट पर कभी कांग्रेस में रहे प्रभुराम चौधरी और पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के बीच दशकों से चुनावी मुकाबला होता रहा है. लेकिन प्रभुराम के बीजेपी में आने से सांची के सारे सियासी समीकरण बदल गए. उपचुनाव में बीजेपी की तरफ से प्रभुराम चौधरी का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. जिससे शेजवार को अपने सियासी भविष्य की चिंता है.
प्रभुराम चौधरी ने 2018 में मुदित शेजवार को हराया था चुनाव
2018 के विधानसभा चुनाव में शेजवार ने अपने बेटे मुदित शेजवार को बीजेपी की तरफ से चुनावी मैदान में उतारा था. जो प्रभुराम चौधरी से चुनाव हार गए थे. जबकि प्रभुराम चौधरी और गौरीशंकर शेजवार पांच बार एक-दूसरे खिलाफ विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं, जिनमें से तीन बार शेजवार को जीत मिली, तो दो बार प्रभुराम जीते. लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में दोनों नेताओं के बीच समन्यव बनाना बीजेपी के लिए बड़ी बात होगी.
आसान नहीं होगी प्रभुराम चौधरी की राह
राजनीतिक जानकार शिव अनुराग पटेरिया कहते हैं प्रभुराम चौधरी के बीजेपी में शामिल होने के बाद सात बार के विधायक डॉ गौरीशंकर शेजवार का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग गया है. जिससे सांची के उपचुनाव में शेजवार की भूमिका अहम होगी. राजनीतिक जानकार कहते हैं कि गौरीशंकर शेजवार कोई साधारण नेता नहीं हैं. पूर्व मंत्री और पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहते हुए उनके पास अच्छा खासा राजनीतिक अनुभव है. वो संघ से जुड़े नेता हैं. वर्तमान में टीकमगढ़ से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र खटीक उनके साले हैं. ऐसे में पार्टी को उन्हें इग्नोर करना आसान नहीं होगा. जिससे देखने वाली बात होगी शेजवार उपचुनाव में क्या भूमिका निभाते हैं.
हालांकि बीजेपी ने सीएम शिवराज की सभा में दोनों नेताओं के एक मंच पर लाकर समनव्यय बनाने की कोशिश की है. जबकि प्रभुराम चौधरी भी अपनी जीत का दावा करते नजर आ रहे हैं. प्रभुराम चौधरी कुछ भी कहे लेकिन कांग्रेस से बीजेपी में आने के बाद उपचुनाव में उनकी राह आसान नहीं होने वाली है.