भोपाल। गांधी परिवार के करीबी और गोवा संकट के दौरान पार्टी के संकटमोचक की भूमिका निभाने वाले मुकुल वासनिक ने आखिर मध्यप्रदेश में सक्रियता क्यों नहीं दिखाई. जयप्रकाश अग्रवाल को मध्यप्रदेश का प्रभारी बनाए जाने के साथ बताया गया कि मुकुल वासनिक ने मध्यप्रदेश का प्रभार वापस लेने की खुद इच्छा जताई थी. कमलनाथ की सरकार गिरने के बाद वासनिक को मध्यप्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा गया था. इसके बाद उन्होंने जिला स्तर पर कई बैठकें की, लेकिन बाद में उन्होंने प्रदेश से एक तरह से अपनी दूरी बना ली.
प्रदेश में सीनियर नेताओं से नहीं बैठी पटरी: बताया जा रहा है कि मुकुल वासनिक की प्रदेश के सीनियर नेताओं के साथ पूरी तरह से पटरी नहीं बैठ सकी. पीसीसी चीफ कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से उनके पुराने अच्छे संबंध रहे हैं. दोनों नेता उनसे उम्र और अनुभव में बड़े हैं, लेकिन प्रदेश में एक साथ काम करने के दौरान कई बातों पर उनके बीच सामंजस्य नहीं बैठ सका. बताया जाता है कि निकाय चुनाव के दौरान वासनिक ने महापौर पद पर विधायकों को मैदान में न उतारे जाने के लिए कहा था, लेकिन उनकी बात को दरकिनार कर पूर्व विधायकों को महापौर पद पर चुनाव में उतारा गया. यही वजह रही कि विधानसभा के सेमीफाइनल कहे जाने वाले निकाय चुनाव में भी वासनिक की सक्रियता कम दिखाई दी. पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण यादव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह की नाराजगी के समय प्रभारी राष्ट्रीय सचिव संजय कूपर को उन्होंने आगे किया था.
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बावरिया, प्रकाश जैसे नहीं किए दौरे: मुकुल वासनिक ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस प्रभारी रहने के दौरान लगातार दौरे नहीं किए. शुरूआत में जरूर उन्होंने जिला स्तर पर बैठकें की, लेकिन बाद में वे उतने सक्रिय नहीं दिखे, जबकि इसके पहले दीपक बावरिया और मोहन प्रकाश ने एमपी में खूब पसीना बहाया था. हालांकि संकट के समय वे पार्टी के संकटमोचक के तौर पर जरूर उभरे. पार्टी आलाकमान के निर्देश पर गोवा में उन्होंने पार्टी को टूटने से बचाया था.
खेला दलित कार्ड, खुद हुए दूर: मुकुल वासनिक गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं. उनकी संगठनात्मक कार्यों में अच्छी पकड़ है. वासनिक महारास्ट्र कांग्रेस के सीनियर नेताओं में गिने जाते हैं. वे पार्टी में दलित चेहरा भी हैं और लंबे समय से पार्टी से जुडे हुए हैं. युवा कांग्रेस की कमान संभालने के बाद वासनिक सिर्फ 28 साल की उम्र में लोकसभा के लिए चुने गए थे. वासनिक को राजनीति विरासत में मिली और वे जमीनी स्तर के नेता माने जाते हैं. वासनिक को एमपी भेजकर कांग्रेस ने दलित कार्ड खेला था, लेकिन शुरूआती सक्रियता के बाद वे लगभग मध्यप्रदेश से दूरी ही बनाए रहे.