भोपाल। चित्रकूट में हुई राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की बैठक के बाद जो संकेत आ रहे हैं उनसे धीरे -धीरे यह साफ हो रहा है कि भारतीय जनता पार्टी की मौजूदा कार्यशैली के आगे संघ बौना साबित हो रहा है. अबतक संघ और बीजेपी के बीच का जो सियासी गुणाभाग था वह यही माना जाता था कि बीजेपी, संघ के एक राजनीतिक अनुषांगिक संगठन के तौर पर काम करती है. पार्टी को समय-समय पर नागपुर यानि संघ मुख्यालय से मार्गदर्शन और निर्देश भी मिलते रहता है. लेकिन चित्रकूट में हुई संघ की अखिल भारतीय प्रांत प्रचारकों की बैठक के बाद जो जानकारियां सामने आ रही हैं,उनने संघ और उसके अनुयायियों को चिंता में डाल दिया है.
भाजपा के फॉलोअर बने संघ प्रचारक ?
प्रांत प्रचारकों की इस बैठक में जो बात प्रमुखता से सामने आई वो यह है कि संघ के प्रचारक चाहे वो किसी भी स्तर के हों, ज्यादातर भाजपा नेताओं के इशारों पर खेलने लगे हैं. सोशल मीडिया में सक्रिय नजर रखने वाले संघ से जुड़े कुछ खास लोगों की चिंता ये है कि संघ के प्रचारक भाजपा और उसके नेताओं के फॉलोअर बनकर खूब मीडिया-मीडिया खेल रहे हैं. संघ की चिंता का विषय यह है कि अब तक की व्यवस्था के मुताबिक संघ की पसंद का व्यक्ति या प्रचारक या कोई अन्य पदाधिकारी ही केंद्र और भाजपा की प्रदेश इकाइयों में संगठन मंत्री के तौर पर भेजा जाता रहा है. इस तरह से अपरोक्ष रूप से संघ का नियंत्रण भारतीय जनता पार्टी पर बना रहता रहा है, लेकिन पिछले छह-सात सालों में भाजपा की इकाइयों में संघ के पदाधिकारी संगठन में आए जरूर लेकिन संघ की इच्छा से नहीं बल्कि ऐसा बीजेपी नेताओं की मर्जी से हुआ है.
संघ की नसीहत 'बिना दबाव और प्रभाव करें काम'
चित्रकूट बैठक में 2025 में संघ के 100 साल पूरे होने पर देश के प्रत्येक गांव तक संगठन का फैलाव करने का संकल्प दोहराया गया. इसके लिए प्रचारकों को नसीहत भी दी गई कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में समन्वय बनाकर काम करें. साथ ही संघ ने उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी है उसका बिना किसी दबाव या प्रभाव के निर्वहन करें. बैठक में कोविड काल के दौरान बनी स्थितियों और उनसे निपटने के लिए संघ के सामाजिक दायित्वों के निर्वहन पर भी चर्चा हुई , साथ ही यह इशारा भी किया गया कि प्रचारक अनावश्यक प्रभाव से बचें. इसके पीछे संघ प्रचारकों का त्याग,तपस्या और बलिदान के विपरीत कार्यशैली अपनाकर भाजपा नेताओं के पिछलग्गू बनने को वजह बताया गया. बैठक में कुछ जगह शिकायतों पर भी चर्चा की गई जिनसे संघ प्रचारकों की ईमानदारी और निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं. संघ के जानकार सूत्रों ने बताया कि उनके समर्थक भारतीय जनता पार्टी के अलावा अन्य राजनीतिक दलों में भी हैं, हमें उनका भी ख्याल रखना होगा. बैठक में संघ पर भाजपा के बढते प्रभाव और उनके प्रमुखों को नजरअंदाज किए जाने को लेकर भी तल्खी महसूस की गई.
यूपी में योगी के साथ है संघ
देश में अगले एक साल में उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड और पंजाब जैसे राज्यों के चुनाव को लेकर भी लंबा विमर्श किया गया. जिसमें संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले को उत्तरप्रदेश के मामलों की जिम्मेदारी देकर यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मजबूत करने की कोशिश भी बैठक में दिखाई दी. दरअसल उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव को लेकर संघ और भाजपा के बड़े नेताओं की बीच कुछ अनबन है. जैसा कि यह सब जानते हैं कि भाजपा इस समय टू मैन पार्टी है और लालकृष्ण आडवाणी के पार्टी विथ डिफरेंस के ध्येय वाक्य से हटकर पार्टी विथ डिफरेंट हो गई है. पिछले दिनों हुए राजनीतिक घटनाक्रम को देखकर भी ऐसा लगा कि भाजपा उत्तरप्रदेश में पिछले काफी समय से ऐसी कोशिश कर रही थी कि सब कुछ उनके मुताबिक ही चले पर, योगी की हठ के आगे कोई फैसला नहीं हो पा रहा था. एक प्रशासनिक अधिकारी का वीआरएस कराकर और उन्हें वहां का उप मुख्यमंत्री बनाने की कवायद में पार्टी को असफलता ही हाथ लगी. इस समय का संघ ने उपयोग किया और योगी के साथ मजबूती से खड़ा होकर यह जता दिया कि भाजपा में सब कुछ टू मैन पार्टी से नहीं बल्कि संघ के हिसाब से ही होगा. दत्तात्रेय होसबोले की नई जिम्मदारी के भी यही मायने हैं क्योंकि वे संघ में सबसे दबंग और दबाव मे नहीं आने वाले पदाधिकारी माने जाते हैं.
उत्तरप्रदेश में दलित और पिछड़ों पर रहेगा फोकस
संघ की चिंता अब देश के सबसे बडे़ राज्य उत्तरप्रदेश को लेकर है क्योंकि भाजपा यहां अलग तरह से चुनाव लड़ना चाहती है, जबकि संघ चाहता है कि सब कुछ समन्वय से हो और खासतौर पर दलित और पिछड़ों पर पूरा फोकस किया जाए. इससे भाजपा सीधे तौर पर साम्प्रदायिकता के आरोपों से भी बचेगी और मौजूदा सरकार का एंटी इनकमबेंसी फैक्टर भी कम होगा. संघ प्रमुख भागवत का वह बयान जिसमें भारतीयों का डीएनए एक ही है, इसे भी उत्तरप्रदेश के आगामी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
चंपत राय से संतुष्ट नहीं है संघ
राममंदिर ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय भी इस बैठक में चर्चा का प्रमुख विषय रहे. जमीन खरीद के एक मामले में करोड़ों रुपए के घोटाले के आरोप से चर्चित हुए चंपत राय की सफाई से संघ प्रमुख संतुष्ट नहीं हुए. अंदरखाने की खबर है कि चंपत राय इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे पाए कि जब सब कुछ पारदर्शी है तो हमें इस तरह की प्रक्रिया की क्या आवश्यकता पड़ी. खबर यह भी है कि इस तरह के और भी तीन-चार मामले संघ की जानकारी में आए हैं जिनमें पैसों का संदिग्ध लेन-देन हुआ है, लेकिन उसकी मजबूरी यह है कि उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए संघ चंपतराय के खिलाफ तत्काल कोई बड़ी कार्रवाई करने से बच रहा है.
भाजपा पर अंकुश की कवायद
संघ ने भाजपा पर अपना दबाव बढ़ाने के लिए कृष्णगोपाल को हटाकर सह सरकार्यवाह अरुण कुमार को भाजपा और संघ के बीच समन्वय का दायित्व सौंपकर भी एक संकेत दिया है. कृष्णगोपाल 2014-15 से दोनों के बीच समन्वय का काम देख रहे थे, लेकिन अब उन्हें विद्याभारती का काम सौंप दिया है,चूंकि संघ प्रमुख की जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी से तल्खी बढ़ी है उसके बाद इस तरह का फेरबदल राजनीतिक मायने रखता है, हालांकि एक स्थिति यह भी सामने आ रही है कि संघ में भाजपा का दखल बढ़ रहा है. यही कारण है कि चाहे वो राष्ट्रीय इकाई हो या फिर राज्य की इकाईयां हो उनमें भाजपा पर संघ का अंकुश कम हुआ है. ये इकाईयां अपनी मनमर्जी से बिना संघ को विश्वास में लिए फैसले ले रही हैं.
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पश्चिम बंगाल की हार का ठीकरा एक-दूसरे पर
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी की हार के कारणों पर भी संघ और भाजपा के बीच विरोधाभास है. इस हार के लिए दोनों एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. 27 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पश्चिम बंगाल में भाजपा ने घोषित तौर पर सांप्रदायिकता से ओत-प्रोत चुनाव लड़ा था. इसमें अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दो धड़ों को अलग-अलग करने की मंशा थी जबकि संघ चाहता था कि चुनाव में सिर्फ राममंदिर के शिलान्यास और उसके जल्द बनने के मामले को ही प्रचारित करके बहुसंख्यक आबादी को अपने पक्ष में किया जाए जिससे कि बहुसंख्यक वोट भाजपा के पक्ष में आ जाए और सामाजिक समरसता भी बनी रहे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. ये हम सबने देखा है कि शुरुआत में तो पश्चिम बंगाल चुनाव में राममंदिर ही मुद्दा था जो बाद में आगे बढ़कर साम्प्रदायिक मुद्दे तक पहुंच गया.
कैबिनेट विस्तार में भी दिखा मोदी का दबदबा
हाल ही में हुए मोदी कैबिनेट के विस्तार का मामला हो या फिर असम में सर्बानंद सोनोवाल की जगह कांग्रेस से आए हेमंत विस्वाशर्मा को सीएम की कुर्सी पर बैठाना. ये कुछ ऐसे मामले हैं जहां ना तो संघ के पदाधिकारियों से कोई चर्चा हुई और आरएसएस की दखलअंदाजी ही नजर आई. कैबिनेट के विस्तार में भी पूरी तरह मोदी की चली. संघ से जुड़े बड़े चेहरों जैसे प्रकाश जावडेकर और रविशंकर प्रसाद की विदाई कर दी गई. दूसरी तरफ कांग्रेस से बीजेपी में आए ज्योदिरादित्य सिंधिया को कैबिनेट में अहम पद से नवाजा गया. इन मामलों को देखकर लगता है कि संघ मोदी से हार गया है. यही वजह है कि संघ अपने पदाधिकारियों को चित्रकूट से यह नसीहत देने को मजबूर हुआ कि आरएसएस से जुड़े पदाधिकारी बीजेपी नेताओं के पिछलग्गू ना बने.
जम्मू-कश्मीर में 370 हटने के बाद से पिक्चर से गायब है राममाधव
आरएसएस की सक्रिय सदस्य और तेजतर्रार प्रवक्ता राममाधव संघ से ही बीजेपी में आए और महासचिव बने. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के पहली सरकार बनवाने और बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन में भी राममाधव ने अहम भूमिका अदा की. तीन साल तक जेएंडके में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार भी चली और इसी दौरान तय हुई घाटी से धारा 370 हटाने की मुहिम. जिसके लिए पूरी जमीन संघ और राममाधव ने तैयार की थी, लेकिन श्रेय मिला बीजेपी को. घाटी से धारा 370 हटाए जाने के बाद बीजेपी महासचिव राममाधव अब टेलीविजन पर भी कम दिखाई देते हैं. जिससे संघ और उसके पदाधिकारियों के बीच यह संदेश गया कि बीजेपी संघ पर भारी है और काम निकलजाने के बाद संघ के पदाधिकारियों की पार्टी में अहमियत कम रह जाती है.
आश्रम वेब सीरीज पर भी उठी आपत्ति
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी महाराज ने भी संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर आश्रम जैसी वेब सीरीज बनाने और उसमें संघ से ही जुड़े लोगों के सहयोग पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. नरेंद्र गिरी महाराज ने अपनी शिकायत में संघ प्रमुख को बताया कि राजा विमलेंद्र मोहन के महल में आश्रम वेब सीरीज की शूटिंग हुई जिसमें आश्रम व्यवस्था का विद्रूप चेहरा दिखाकर उन्हें बदनाम करने की साजिश की गई है, जबकि राजा विमलेंद्र मोहन संघ के प्रबल समर्थक हैं, जब ऐसे लोग ही असामाजिक कार्य में सहयोग करेंगे तो प्रश्न उठना तो लाजिमी है.
2025 तक हर गांव में होगी संघ की शाखा
साल 2025 में संघ के 100 साल पूरे होंगे, लेकिन इसकी तैयारियां तेजी से शुरु कर दी गई हैं. सब कुछ ठीक रहा तो सितंबर से जन जागरण अभियान चलाया जाएगा जिसमें संघ के कार्यों को और शाखाओं को देश के प्रत्येक गांवों तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.