भोपाल। जिनके शेर, गजलें और कविताएं पढ़ पढ़ कर नेता चुनावी सभाओं में तालियां लूटते रहे हैं, जिनकी लिखी लाईनों को दोहरा कर जनता के बीच आसमान में Dushyant Kumar birth anniversary सूराख कर देने का हौसला बताते रहे. सियासी दलों ने उस शायर को सिरे से ही भुला दिया. देश नहीं पूरी दुनिया में पहचाने जाने वाले मशहूर शायर दुष्यंत कुमार DUSHYANT KUMAR का स्मारक बनाए जाने की सरकारी घोषणा बीते चार साल में दो दलों की सरकारें देख लेने के बाद भी अधूरी की अधूरी है. गुरूवार को कवि दुष्यंत कुमार की जयंती है.
स्मार्ट सिटी के नाम पर घर ढहाया: पहले स्मार्ट सिटी के नाम पर उनकी आखिरी याद उनका सरकारी महान बेदर्दी से ढहाया गया, फिर उनके हाथों लगाया आम का पेड़ भी केमिकल डाल के सुखा दिया गया. कहते हैं इस पेड़ को दुष्यंत कुमार अपने पुश्तैनी गांव बिजनौर से यहां लेकर आए थे. सवाल यह है कि इस शायर की जगह अगर कोई नामचीन नेता होता तो क्या उसका भी नामों निशां यूं ही मिटा दिया जाता. क्या सरकारें ऐसे ही अपना वादा करके भूल जातीं. 1 सितंबर 1933 को जन्में दुष्यंत कुमार DUSHYANT KUMAR POPULAR POET की गुरूवार को सालगिरह है. शायर को सम्मान कब मिलेगा इसी वादे को सरकार को याद दिलाने के लिए ईटीवी भारत की कोशिश है कि समय रहते सरकार को अपना भूला हुआ वादा याद आए.
विकास के नाम रौंद दी गई विरासत:
2018 का चुनावी साल था ख्यातनाम और अजीम शायर दुष्यंत कुमार का घर स्मार्ट सिटी के दायरे में आ रहा था. जिसे विरोध के बावजूद ढहा दिया गया. जिस घर के खिड़की दरवाज़े देहरी आंगन हर हिस्से में इस शायर की रुह बसा करती थी. ये वही घर था जहां बैठकर दुष्यंत कुमार ने साये में धूप लिखी. घर क्यों ढहाया जा रहा है यहां क्या बनेगा इसका स्मार्ट सिटी प्रबंधन के पास कोई वाजिब जवाब नहीं था, लेकिन इस शहर को यूनेस्को की सांस्कृतिक और साहित्यिक शहरों की सूची में स्थान देने वाली उस धरोहर को रौंद दिया गया. जो इस देश दुनिया के अपनी तरह के इकलौते शायर की आखिरी निशानी थी. तब जब विरोध हुआ तो तत्कालीन शिवराज सरकार की ओर से ये भरोसा दिलाया गया कि ज़मीन के उसी टुकड़े पर दुष्यंत कुमार का स्मारक बनाया जाएगा.
2018 में हुई घोषणा 2022 में भी इंतजार: दुष्यंत कुमार संग्रहालय के संचालक राजुरकार राज बताते हैं कि 2018 बाकायदा हिंदी दिवस के मौके स्मारक बनाए जाने की घोषणा भी हुई, लेकिन 2018 में हुई घोषणा के पूरे होने का 2022 में भी इंतज़ार ही है. राज कहते हैं कि हम बस इतना चाहते थे कि भारी विरोध के बावजूद उनका घर तो तोड़ दिया गया, लेकिन उस ज़मीन के इस हिस्से में दुष्यंत जी की स्मृतियां जीवित रहें ऐसी हमारी मांग है. यहां एक रचनाकार ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे हैं. उस ज़मीन पर लाइब्रेरी बने, स्मारक बनें जो भी हो लेकिन दुष्यंत जी का नाम बना रहना चाहिए.
संग्रहालय में मौजूद हैं कुछ निशानियां: भोपाल के ही दुष्यंत कुमार संग्रहालय में दुष्यंत जी की सृजनप्रकिया के वो पन्ने मौजूद हैं, जहां वो विचारों के वेग में शब्द शब्द गढ़ा करते थे. जाड़े में पहना गया उनका गर्म कोट. निधन से कुछ दिन पहले ही खरीदी गई जूतियां. उनका नाम लिखा नेम प्लेट और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की भेंट चढ़े उस सरकारी मकान की ईटें भी सहेज ली गई हैं, जो उस दरोदीवार का हिस्सा थीं, जिन दीवारों से टिककर दुष्य्ंत कुमार आम आदमी की आवाज़ बने वो शेर लिखे जो आज भी बेअसर नहीं हुए, लेकिन इसी घर में लगे उस आम के पेड़ को संग्रहालय में नहीं लाया जा सकता था. सरकारी मकान तोड़ा गया तो मांग उठाई गई कि कम से कम वो आम का पेड़ बख्श दिया जाए. जिसे दुष्यंत कुमार ने अपने हाथों से लगाया था. इस आम के नीचे गर्मी के दिनों में हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर, शरद जोशी, बालकवि बैरागी की बैठकें जमा करती थीं. राजुरकार राज बताते हैं सरकारी मकान टूटने पर बहुत हंगामा हुआ था. पेड़ बचाने के लिए भी हम आखिरी दम तक लड़ते रहे. लेकिन उन्होने ऐसा कुछ कैमिकल डाला कि केवल वही पेड़ सुखाया गया.
दुष्यंत कुमार नेता होते तब भी यही होता: दुष्यंत कुमार संग्रहालय के निदेशक राजुरकार राज बताते हैं दुष्यंत कुमार जैसे साहित्यकारों की वजह से ही भोपाल साहित्यिक और सांस्कृतिक शहर के रुप में स्थापित हो पाया. आज उनकी निशानियां नष्ट की जा रही हैं. राजू सवाल उठाते हैं कि क्या वे एक नेता होते तब यही बर्ताव हो पाता. दो दलों की सरकारें आई और चलीं गईं, लेकिन उनका स्मारक बनाने का वादा पूरा नहीं हो पाया. राजू कहते हैं कि हम देश के इस कालजयी रचनाकार की स्मृतियां सहेजे जाने की ये लड़ाई आखिरी दम तक लड़ते रहेंगे.