भोपाल. शिक्षक दिवस पर जहां राजधानी भोपाल में शिक्षकों के सम्मान में समारोह आयोजित कर उनका सम्मान किया गया वहीं दूसरी तरफ राजधानी की सड़कों पर संघर्ष कर रहे टीचर भी नजर आते हैं. इन शिक्षकों के हाथ में शाल श्रीफल नहीं बल्कि मांगों की तख्तियां हैं. ज़ुबान पर नारों के साथ ये मांग कि शिक्षकों का सच्चा सम्मान तभी होगा जब उन्हें भी सरकार से इंसाफ मिल जाए. प्रदेश भर से आए शिक्षकों का सम्मान कर रही सरकार से इन अतिथि विद्वानों और प्राथमिक शिक्षक की भर्ती परीक्षा पास कर चुके अभ्यर्थी की मांग है कि हमें कब मास्साब मानेगी सरकार.
सरकार को अल्टीमेटम दे चुके हैं अतिथि शिक्षक: 2019 में मध्यप्रदेश की राजनीति में टर्निंग पाइंट लाने वाले अतिथि विद्वान बड़ी तादात मे राजधानी भोपाल के शाहजहांनी पार्क में जमा हुए. एक दिन का धरना देने जुटे इन अतिथि विद्वानों की सरकार से प्रमुख मांग है कि उनका नियमितीकरण किया जाए. बड़ी तादात में जुटे इन विद्वानों ने सोशल मीडिया और मीडिया के जरिए नेताओं को उनसे किए गए वादे भी याद दिलाए. जिसमें जिसमें केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का इनके हक में सड़क पर उतरने का दम दिखाने वाला बयान औऱ सीएम शिवराज के वो ट्वीट भी हैं जिनमें उन्होने विपक्ष में रहते हुए सवाल उठाए थे. सिंधिया बीजेपी में आ गए और सरकार बदल गई, लेकिन अतिथि विद्वान अब भी नियमितीकरण की बाट जोह रहे हैं. धरने पर बैठ इन्ही अतिथि विद्वानों के साथ आते हुए सिंधिया ने अपनी ही (कांग्रेस) सरकार के खिलाफ सड़क पर आने का दम दिखाया था. फिर इसी बयान की धार में पूरी कमलनाथ सरकार सत्ता से बाहर हो गई. अतिथि विद्वानों ने 1 दिन के अपने धरने में सिंधिया और सीएम को उनका वादा भी याद दिलाया.इसके साथ ही यह भी साफ कर दिया कि अतिथि विद्वाना इस बार आर पार की लड़ाई के मूड में हैं.
Teachers Letter Campaign चिट्ठी में गुहार, बच्चों पर रहम खाओ ,हमें मास्साब बना दो सरकार, MP में खाली हैं 1 लाख पद
सबसे बड़ी मांग नियमितीकरण की: अतिथि विद्वानों की सबसे बड़ी मांग है कि प्रदेश में शिक्षकों के रिक्त पदों के बावजूद उन्हें नियमित क्यों नहीं किया जा रहा है. ये अतिथि विद्वान लंबे समय से महाविद्यालयों में सेवाएं दे रहे हैं औऱ यूजीसी की योग्यता भी पूरी करते हैं, फिर क्या वजह है जो उन्हें नियमित नहीं किया जा रहा. मांग ये भी है कि जो यूजीसी योग्यता पूरी नहीं करते उन्हें संविदा नियुक्ति दी जाए. इसके अलावा अतिथि विद्वानों का सेवाकाल 65 वर्ष किए जाने के साथ, यूजीसी का न्यूनतम वेतनमान 57500 किया जाना भी शामिल है. अतिथि विद्वानों के संगठन के मीडिया प्रभारी आशीष पाण्डे कहते हैं हमारी मांग है है कि सेवा शर्तों में सुधार होना चाहिए, वेतन बढ़ना चाहिए और भविष्य सुरक्षित होना चाहिए.
शिक्षकों की गुहार, हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं सरकार: प्राथमिक शिक्षा भर्ती परीक्षा पास कर चुके अभ्यर्थी भी भोपाल में जुटे. लोक शिक्षण संचालनालय में जुटे इन भावी शिक्षकों ने सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है. उनका कहना है कि अगर 15 दिन के भीतर उनकी मांगे पूरी नही हुई तो बड़ा और उग्र आंदोलन किया जाएगा. इनकी मांग है कि-
- प्रदेश में 12 साल से प्राइमरी टीचर्स के जो 1 लाख से ऊपर पद खाली है उन्हें भरा जाए.
- सरकार जल्द से जल्द 51 हजार पदों का विज्ञापन जारी करे.
- मध्य प्रदेश में कुल दो लाख 36 हज़ार प्राथमिक स्कूल हैं. जिनमें से 21 हज़ार ऐसे स्कूल हैं जिसमें 1 शिक्षक के भरोसे पढ़ाई चल रही है.
- 2012 के बाद से एक भी प्राइमरी शिक्षक की भर्ती नहीं हुई है. हर साल हज़ारों की तादात में शिक्षक रिटायर होते हैं.
-अभ्यर्थियों का आरोप है कि चालीस हजार से अधिक अतिथि शिक्षकों से काम करवाया जा रहा है, जबकि बीते दस साल से पांच लाख डीएलएड किए हुए छात्र बेरोजगार घूम रहे हैं.
- संगठन का आरोप है कि पिछले तीन साल में पड़ोसी राज्य राजस्थान , उत्तरप्रदेश में हजारो पदों पर शिक्षकों की भर्ती हो चुकी है. लेकिन मध्यप्रदेश में शिक्षकों के करीब 87000 पद खाली पड़े हुए हैं.
कमल का बटन तभी पुश, जब भावी शिक्षक खुश: राजनीतिक दलों की तरह अब अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे इन अतिथि विद्वानों और प्राइमरी शिक्षक की पात्रता परीक्षा पास कर चुके इन संगठनों को भी सियासी दांव चलना आ गया है. वे राजनेताओं को उनके वादे याद दिलाते हुए उसी के तरह की नारेबाज़ी भी कर रहे हैं. वे जानते हैं कि चुनाव के मुहाने पर खड़े एमपी में सरकार तक अपनी मांगे पहुचाने और मनवाने का ये मुफीद वक्त हो सकता है, लिहाजा भावी शिक्षकों ने जो नारे गढ़े उसमें कहा है कि कमल का बटन तभी पुश जब होंगे भावी शिक्षक खुश.