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सिंधिया को कांग्रेस की सीधी चुनौती: दिग्विजय-गोविंद की जोड़ी ने बढ़ाई सिंधिया के माथे की शिकन, कांग्रेस की कोशिश घर में दे महाराज को मात

कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष और दिग्विजय को ग्वालियर चंबल अंचल का प्रभारी बना कर कांग्रेस सिंधिया को कंट्रोल करना चाहती है. कांग्रेस की रणनीति सिंधिया को उनके गढ़ में ही घेरने की है.

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सिंधिया को घेरने के लिए कांग्रेस की सियासी चाल
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Published : Apr 29, 2022, 9:29 PM IST

भोपाल। मप्र के सियासी खेमें में कमलनाथ सरकार के गिरने की वजह दिग्विजय सिंह को माना गया, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस हाईकमान ने फिर दिग्विजय के खास लोगों को कमान दे रही है, इससे सवाल उठने लगे हैं कि 'बंटाधार' के नाम से मशहूर दिग्विजय कहीं बीजेपी को मजबूत न कर दें. वहीं कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष और दिग्विजय को ग्वालियर चंबल अंचल का प्रभारी बना कर कांग्रेस सिंधिया को कंट्रोल करना चाहती है. कांग्रेस की रणनीति सिंधिया को उनके गढ़ में ही घेरने की है.

सिंधिया का गढ़ भेदने की कोशिश: कांग्रेस ने पहले दिग्विजय सिंह को ग्वालियर चम्बल की कमान दे दी है तो वहीं उनके खास समर्थक गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया है. दिग्विजय सिंह लगातार सिंधिया को घेरने की कोशिश करते रहते हैं. उनके बेटे जयवर्धन सिंह भी अक्सर ग्वालियर आते-जाते हैं और राजनितक रूप से भी अंचल में सक्रिय रहते हैं. इसके बाद दिग्गी को अब गोविंद सिंह का भी साथ मिलेगा. दोनों ही नेताओं का फोकस सिंधिया को घेरने पर ही है. चंबल अंचल के भिंड से गोविंद सिंह लगातार 7 बार के विधायक हैं. उनका क्षेत्र में दबदबा भी है. यही वजह है कि गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने से सिंधिया समर्थकों में खलबली मच गई है,क्योंकि माना जाता है कि डॉक्टर गोविंद सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं.

कहीं सिंधिया का खेल न बिगाड़ दें दिग्गी: राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि सिंधिया ये जानते हैं कि चंबल में उन्हें शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के पास कोई चेहरा भी नहीं है. कमलनाथ भी महाराज को लेकर कभी सख्त तेवर नहीं दिखा पाए, चंबल की राजनीति में कांग्रेस का चेहरा रहे गोविंद सिंह अक्सर सिंधिया के खिलाफ मुखर रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का ताज दे दिया है. ऐसे में चंबल अंचल में उनकी ज्योतिरादित्य सिंधिया से सीधी टक्कर मानी जा रही है. दूसरी तरफ सिंधिया भी पिछले लोकसभा चुनाव में मिली हार की समीक्षा करते हुए खुद की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

एक पार्टी में रहे पर साथ नहीं: ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब भी डॉक्टर गोविंद सिंह उनके खिलाफ बयानबाजी करते रहते थे. दोनों के बीच एक ही पार्टी में रहते हुए भी काफी खींचतान रहती थी. डॉक्टर गोविंद सिंह के समर्थक भी सिंधिया के खिलाफ बयानबाजी करने से नहीं बाज आते. दूसरा डॉक्टर गोविंद सिंह को दिग्विजय सिंह के खेमे का माना जाता है और यह भी सभी जानते हैं कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हमेशा से ही वर्चस्व को लेकर मतभेद और मनभेद रहा है. सिंधिया सार्वजनिक तौर पर भी यह कह चुके हैं कि 'मैं उनके सवालों का जवाब नहीं देता.'

सिंधिया को सीधी चुनौती देकर बदला लेने की कोशिश: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि-

दिग्विजय और गोविंद सिंह को ग्वालियर चम्बल की कमान इसलिए दी गयी है कि कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाकर उन्हें विचलित करने की कोशिश करे. कांग्रेस को सिंधिया से लंबे समय बाद प्रदेश में बनी कांग्रेस सरकार को गिराने का बदला लेना चाहती है इसलिए उसकी पूरी कोशिश सिंधिया को उनके गढ़ में ही कमजोर करने की है. दूसरी तरफ बीजेपी में सिंधिया का बढ़ता कद भी कांग्रेस के लिए और बीजेपी के भी कई नेताओं के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है. ऐसे में कांग्रेस सिंधिया से अपनी हार का बदला लेने की पूरी कोशिश करेगी.
प्रकाश भटनागर , वरिष्ठ पत्रकार

सिंधिया को भी दिग्विजय की रणनीति की भनक: सियासत के जानकार मानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिग्विजय की रणनीति से वाकिफ हैं. उन्हें दिग्विजय और गोविंद सिंह की जोड़ी के असर की भी जानकारी है. दूसरा सिंधिया को ग्वालियर चंबल के बीजेपी के नेताओं से भी भितरघात का डर है. इन समीकरणों के बीच कांग्रेस का यह ताजा दांव उनके माथे पर पसीना लाने वाला हो सकता है. चुनाव हारने के बाद भी जिस तरह से बीजेपी में शामिल होने पर उन्हें राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री का पद मिला और प्रदेश में उनके समर्थकों को मंत्री और निगम मंडलों में तवज्जो दी गई वह इस बात का संकेत है कि सिंधिया मध्य प्रदेश में बीजेपी का भावी चेहरा हो सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस की रणनीति महाराज को घर में ही मात देने की है, ताकि 17 दिसंबर 2018 फिर से दोहराया जा सके.

भोपाल। मप्र के सियासी खेमें में कमलनाथ सरकार के गिरने की वजह दिग्विजय सिंह को माना गया, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस हाईकमान ने फिर दिग्विजय के खास लोगों को कमान दे रही है, इससे सवाल उठने लगे हैं कि 'बंटाधार' के नाम से मशहूर दिग्विजय कहीं बीजेपी को मजबूत न कर दें. वहीं कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष और दिग्विजय को ग्वालियर चंबल अंचल का प्रभारी बना कर कांग्रेस सिंधिया को कंट्रोल करना चाहती है. कांग्रेस की रणनीति सिंधिया को उनके गढ़ में ही घेरने की है.

सिंधिया का गढ़ भेदने की कोशिश: कांग्रेस ने पहले दिग्विजय सिंह को ग्वालियर चम्बल की कमान दे दी है तो वहीं उनके खास समर्थक गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बना दिया गया है. दिग्विजय सिंह लगातार सिंधिया को घेरने की कोशिश करते रहते हैं. उनके बेटे जयवर्धन सिंह भी अक्सर ग्वालियर आते-जाते हैं और राजनितक रूप से भी अंचल में सक्रिय रहते हैं. इसके बाद दिग्गी को अब गोविंद सिंह का भी साथ मिलेगा. दोनों ही नेताओं का फोकस सिंधिया को घेरने पर ही है. चंबल अंचल के भिंड से गोविंद सिंह लगातार 7 बार के विधायक हैं. उनका क्षेत्र में दबदबा भी है. यही वजह है कि गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने से सिंधिया समर्थकों में खलबली मच गई है,क्योंकि माना जाता है कि डॉक्टर गोविंद सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया एक दूसरे के धुर विरोधी रहे हैं.

कहीं सिंधिया का खेल न बिगाड़ दें दिग्गी: राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि सिंधिया ये जानते हैं कि चंबल में उन्हें शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के पास कोई चेहरा भी नहीं है. कमलनाथ भी महाराज को लेकर कभी सख्त तेवर नहीं दिखा पाए, चंबल की राजनीति में कांग्रेस का चेहरा रहे गोविंद सिंह अक्सर सिंधिया के खिलाफ मुखर रहे हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष का ताज दे दिया है. ऐसे में चंबल अंचल में उनकी ज्योतिरादित्य सिंधिया से सीधी टक्कर मानी जा रही है. दूसरी तरफ सिंधिया भी पिछले लोकसभा चुनाव में मिली हार की समीक्षा करते हुए खुद की छवि बदलने की कोशिश कर रहे हैं.

एक पार्टी में रहे पर साथ नहीं: ज्योतिरादित्य सिंधिया जब कांग्रेस में थे तब भी डॉक्टर गोविंद सिंह उनके खिलाफ बयानबाजी करते रहते थे. दोनों के बीच एक ही पार्टी में रहते हुए भी काफी खींचतान रहती थी. डॉक्टर गोविंद सिंह के समर्थक भी सिंधिया के खिलाफ बयानबाजी करने से नहीं बाज आते. दूसरा डॉक्टर गोविंद सिंह को दिग्विजय सिंह के खेमे का माना जाता है और यह भी सभी जानते हैं कि दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हमेशा से ही वर्चस्व को लेकर मतभेद और मनभेद रहा है. सिंधिया सार्वजनिक तौर पर भी यह कह चुके हैं कि 'मैं उनके सवालों का जवाब नहीं देता.'

सिंधिया को सीधी चुनौती देकर बदला लेने की कोशिश: राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि-

दिग्विजय और गोविंद सिंह को ग्वालियर चम्बल की कमान इसलिए दी गयी है कि कांग्रेस ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाकर उन्हें विचलित करने की कोशिश करे. कांग्रेस को सिंधिया से लंबे समय बाद प्रदेश में बनी कांग्रेस सरकार को गिराने का बदला लेना चाहती है इसलिए उसकी पूरी कोशिश सिंधिया को उनके गढ़ में ही कमजोर करने की है. दूसरी तरफ बीजेपी में सिंधिया का बढ़ता कद भी कांग्रेस के लिए और बीजेपी के भी कई नेताओं के लिए परेशानी खड़ी कर रहा है. ऐसे में कांग्रेस सिंधिया से अपनी हार का बदला लेने की पूरी कोशिश करेगी.
प्रकाश भटनागर , वरिष्ठ पत्रकार

सिंधिया को भी दिग्विजय की रणनीति की भनक: सियासत के जानकार मानते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया भी दिग्विजय की रणनीति से वाकिफ हैं. उन्हें दिग्विजय और गोविंद सिंह की जोड़ी के असर की भी जानकारी है. दूसरा सिंधिया को ग्वालियर चंबल के बीजेपी के नेताओं से भी भितरघात का डर है. इन समीकरणों के बीच कांग्रेस का यह ताजा दांव उनके माथे पर पसीना लाने वाला हो सकता है. चुनाव हारने के बाद भी जिस तरह से बीजेपी में शामिल होने पर उन्हें राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री का पद मिला और प्रदेश में उनके समर्थकों को मंत्री और निगम मंडलों में तवज्जो दी गई वह इस बात का संकेत है कि सिंधिया मध्य प्रदेश में बीजेपी का भावी चेहरा हो सकते हैं. ऐसे में कांग्रेस की रणनीति महाराज को घर में ही मात देने की है, ताकि 17 दिसंबर 2018 फिर से दोहराया जा सके.

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