भोपाल। आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज हर घर तिरंगा फहराने का आग्रह किया जा रहा है, लेकिन इस देश ने शासकीय और अद्धशासकीय इमारतों पर तिरंगा फहराने के लिए 110 दिन का लंबा संघर्ष भी देखा. जबलपुर बना झंडा सत्याग्रह की कर्मभूमि. कंछेदीलाल जैन, पंडित सुंदरलाल, पंडित बाल मुकुंद त्रिपाठी माखनलाल चतुर्वेदी,सीताराम जाधव, परमानन्द जैन खुशालचंद्र जैन ये वो नायक थे जिनके लिए जान से भी कीमती थी तिरंगे की आन. सुभद्राकुमारी चौहान देश की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी जो झंडा सत्याग्रह में मासूम बच्चों को छोड़कर जेल तक गईं.
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तिरंगे की आन पर कुर्बान : वो अक्टूबर 1922 का बरस था. असहयोग आंदोलन की सफलता को लेकर कांग्रेस की एक जांच समिति जबलपुर आई. विक्टोरिया टाऊन हॉल में सदस्यों को अभिनंदन पत्र भेंट करने के साथ उल्लास में इमारत पर तिरंगा फहरा दिया गया. ये केवल अंगड़ाई थी, लड़ाई तो अभी आगे होनी थी. इतिहासकार आनंद सिंह राणा कहते हैं - "खबर इंग्लैंड की संसद तक पहुंच गई. बरतानिया सरकार ने इसे सत्ता और संप्रभुता के लिए बड़ी चुनौती माना. भारतीय मामलों के सचिव विंटरटन ने सरकार को सफाई दी कि अब भारत में किसी भी शासकीय और अर्धशासकीय इमारत पर तिरंगा नहीं फहराया जाएगा इसी ज़मीन से झंडा आंदोलन खड़ा हुआ था ".
यूनियन जैक के साथ तिरंगा फहराने की मंजूरी: साल बदल चुका था, लेकिन स्वाधीनता सेनानियों की ज़िद नहीं. 1923 में कांग्रेस की एक और समिति रचनात्मक कार्यक्रमों की जानकारी लेने जबलपुर पहुंची. डिप्टी कमिश्नर किस्मेट लेलैंड ब्रुअर हैमिल्टन को पत्र लिखकर टाऊन हॉल पर झंडा फहराने की अनुमति मांगी गई. अनुमति मिली लेकिन इस शर्त पर कि साथ में यूनियन जैक भी फहराया जाएगा. क्रांतिकारी इस बात पर तैयार नहीं हुए. तय किया गया कि 18 मार्च को तिरंगा फहराया जाएगा. पंडित सुंदरलाल की अगुवाई में बालमुकुंद त्रिपाठी, सुभद्राकुमारी चौहान, बद्रीनाथ दुबे माखनलाल चतुर्वेदी, सीताराम जाधव, परमानन्द जैन और खुशालचंद्र जैन 350 सदस्यों के साथ टाउन हॉल पहुंचे. तिरंगा फहरा दिया गया. कैप्टन बंबावाले ने लाठीचार्ज करवा दिया. क्रांतिकारियों ने लाठी डंडे खाए, गिरफ्तारियां हुईं. लेकिन जज़्बा कहां कमज़ोर पड़ने वाला था. (harghartriranga)
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इतिहासकार आनंद सिंह राणा बताते हैं - "यही से झंडा सत्याग्रह ने व्यापक रूप लिया और ये नागपुर तक पहुंच गया. अब कमान सरदार वल्लभ भाई पटेल संभाले हुए थे. 18 जून को झंडा दिवस के तौर पर घोषित हुआ". राणा बताते हैं- "सुभद्राकुमारी चौहान भारत की पहली महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं, जिन्हें तीन माह की सजा हुई. झंडा सत्याग्रह में उनके पति को भी जेल हुई थी और चार बच्चे घर पर अकेले. 17 अगस्त 1923 को इस सत्याग्रह का समापन हुआ इस शर्त के साथ कि शासकीय एवं अर्द्धशासकीय इमारतों पर तिरंगा फहराया जा सकेगा ". (Azadi Ka Amrit Mahotsav)(Jabalpur Jhanda Satyagraha)(History of Indian Flag)