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रीवाः बिना काम के ही दो NGO को 5 लाख का भुगतान, नगर निगम में घोटाला

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Published : May 21, 2019, 10:02 AM IST

एमआईसी की बैठक में निर्णय लिया गया था कि भुगतान करने से पहले जिन वार्डों में एनजीओ ने काम किया है, उसका सत्यापन करवाना अनिवार्य है. लेकिन अधिकारियों ने एमआईसी के निर्णय को दरकिनार कर भुगतान कर डाला.

नगर निगम में घोटाला

रीवा। नगर निगम ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में घोटाला करते दो एनजीओ को 5 लाख रुपये का भुगतान किया है. जागरूकता संबंधी गतिविधियों के लिए अनुबंधित एनजीओ को बिना कार्य किए ही भुगतान किए जाने का आरोप है.

एमआईसी की बैठक में निर्णय लिया गया था कि भुगतान करने से पहले जिन वार्डों में एनजीओ ने काम किया है, उसका सत्यापन करवाना अनिवार्य है. लेकिन अधिकारियों ने एमआईसी के निर्णय को दरकिनार कर भुगतान कर डाला. आरोप है कि दोनों एनजीओ ने खानापूर्ति की और किसी प्रकार का कोई कार्य नहीं किया.

नगर निगम में घोटाला

मामले का खुलासा स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के लिए एमआईसी पोर्टल में दी फीड में हुआ था. जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और पार्षदों ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. विरोध बढ़ता देख एमआईसी की बैठक में महापौर सहित सभी सदस्यों ने ज्वाला और सृजन दोनों एनजीओ के भुगतान पर रोक लगा दी थी. निर्णय लिया गया कि जिन वार्डों में इन एनजीओ ने काम किया है, वहां के पार्षदों से सहमति पत्र लिया जाए और उनकी रिपोर्ट ली जाए. इसका सत्यापन करने के बाद ही एनजीओ का भुगतान किया जाए, लेकिन निगम अधिकारियों ने पार्षद से बिना सत्यापन करवाए ही एनजीओ संचालक को अंतिम बिल भुगतान कर दिया.

नगर निगम कमिश्नर ने कहा कि पहले ही निगम के द्वारा तीन चौथाई भुगतान किया जा चुका था. उनके कार्यकाल के आने के बाद केवल तीन महीने का भुगतान ही शेष रह गया था. कमिश्नर ने कहा कि उन्हें अब तक मामले की जानकारी नहीं थी. उन्हें प्रस्ताव के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि जब तीन चौथाई भुगतान हो चुका था, उस पर नियमानुसार अंतिम भुगतान भी किया गया है.

रीवा। नगर निगम ने स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में घोटाला करते दो एनजीओ को 5 लाख रुपये का भुगतान किया है. जागरूकता संबंधी गतिविधियों के लिए अनुबंधित एनजीओ को बिना कार्य किए ही भुगतान किए जाने का आरोप है.

एमआईसी की बैठक में निर्णय लिया गया था कि भुगतान करने से पहले जिन वार्डों में एनजीओ ने काम किया है, उसका सत्यापन करवाना अनिवार्य है. लेकिन अधिकारियों ने एमआईसी के निर्णय को दरकिनार कर भुगतान कर डाला. आरोप है कि दोनों एनजीओ ने खानापूर्ति की और किसी प्रकार का कोई कार्य नहीं किया.

नगर निगम में घोटाला

मामले का खुलासा स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के लिए एमआईसी पोर्टल में दी फीड में हुआ था. जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और पार्षदों ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. विरोध बढ़ता देख एमआईसी की बैठक में महापौर सहित सभी सदस्यों ने ज्वाला और सृजन दोनों एनजीओ के भुगतान पर रोक लगा दी थी. निर्णय लिया गया कि जिन वार्डों में इन एनजीओ ने काम किया है, वहां के पार्षदों से सहमति पत्र लिया जाए और उनकी रिपोर्ट ली जाए. इसका सत्यापन करने के बाद ही एनजीओ का भुगतान किया जाए, लेकिन निगम अधिकारियों ने पार्षद से बिना सत्यापन करवाए ही एनजीओ संचालक को अंतिम बिल भुगतान कर दिया.

नगर निगम कमिश्नर ने कहा कि पहले ही निगम के द्वारा तीन चौथाई भुगतान किया जा चुका था. उनके कार्यकाल के आने के बाद केवल तीन महीने का भुगतान ही शेष रह गया था. कमिश्नर ने कहा कि उन्हें अब तक मामले की जानकारी नहीं थी. उन्हें प्रस्ताव के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि जब तीन चौथाई भुगतान हो चुका था, उस पर नियमानुसार अंतिम भुगतान भी किया गया है.

Intro:रीवा नगर निगम का बड़ा कारनामा स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में ज्वाला एनजीओ ने नहीं किया था काम फिर भी निगम ने किया पेमेंट रीवा नगर निगम अधिकारियों ने शहर को स्वच्छ बनाने के नाम पर बड़ा कारनामा कर डाला स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में जागरूकता संबंधी गतिविधियों के लिए अनुबंधित एनजीओ को बिना कार्य किए ही भुगतान कर डाला जबकि ज्वाला एनजीओ को भुगतान करने से पूर्व जिन वार्डों में एनजीओ में कार्य किया है उन से सत्यापन करा कर ही भुगतान करने का निर्णय एमआईसी की बैठक में लिया गया था लेकिन अधिकारियों ने एमआईसी के निर्णय को दरकिनार कर भुगतान कर डाला एनजीओ को उसके अंतिम बिल का 5 लाख भुगतान किया गया जबकि इसे गलत बताया जा रहा है


Body:गौरतलब है निगम प्रशासन द्वारा स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 में ज्वाला वाह सृजन दोनों एनजीओ को स्वच्छता जागरूकता संबंधी गतिविधियों के लिए अनुबंधित किया गया था लेकिन दोनों एनजीओ ने खानापूर्ति की और बड़ों में किसी प्रकार का कोई कार्य नहीं किया इसका खुलासा स्वच्छता सर्वेक्षण 2018 के लिए एमआईसी पोर्टल में फीड गई फर्जी रिपोर्ट से भी हुआ था जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और पार्षदों ने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया था विरोध बढ़ता देख एमआईसी की बैठक में महापौर सहित सभी सदस्यों ने ज्वाला व सृजन दोनों एनजीओ के भुगतान पर रोक लगा दी थी और निर्णय लिया गया था कि जिन वार्डों में इन एनजीओ ने कार्य किया है वहां के पार्षदों से सहमति पत्र लिया जाए व उनके रिपोर्ट ली जाए कि इन इन जिओ ने कौन सी गतिविधियां कब की और इसका सत्यापन करने के बाद ही एनजीओ का भुगतान किया जाए लेकिन निगम अधिकारियों ने बिना पार्षद से सत्यापन कराई ही एनजीओ संचालक से सांठगांठ कर 500000 का अंतिम बिल भुगतान कर दिया





Conclusion:इस पूरे मामले को लेकर नगर निगम कमिश्नर ने कहा कि पहले ही निगम के द्वारा तीन चौथाई भुगतान किया जा चुका था और मेरे कार्यकाल के आने के बाद केवल 3 माह का भुगतान ही शेष रह गया था कमिश्नर ने कहा कि यह सही है कि यह जानकारी मुझे अब तक नहीं थी साथ ही कहा कि मुझे किसी भी प्रस्ताव के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी कि ऐसा कोई प्रस्ताव है जिसके तहत यह बिल का भुगतान किया जाना है. साथ ही निगम कमिश्नर ने कहा कि जब तीन चौथाई भुगतान हो चुका था उस पर नियमानुसार अंतिम भुगतान भी किया गया है साथ ही कहा कि समस्त दस्तावेजों को खंगालने के बाद यह पता चला कि सभी की सहमति से यह कार्य किया गया है..



वाइट1- विनोद शर्मा, पार्षद रीवा।

वाइट2- सभाजीत यादव, कमिश्नर नगर निगम रीवा।

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