हैदराबाद : सात अक्टूबर को घोषित हुई बीजेपी की नई कार्यकारिणी में कई दिग्गजों को जगह नहीं दी गई. सुब्रमण्यम स्वामी, वसुंधरा राजे, विजय गोयल, विनय कटियार जैसे नेता पार्टी की नेशनल इग्जेक्युटिव काउंसिल से बाहर कर दिए गए. मगर चर्चा वरुण गांधी और मेनका गांधी पर टिक गई है. वरुण गांधी के हालिया बयानों और तेवर को देखते हुए यह माना गया कि पार्टी गांधी फैमिली के अपने सदस्यों से खफा है. यह भी माना जा रहा है कि पार्टी में उनका कद लगातार कम किया जा रहा है, जबकि ज्योतिरादित्य और अनुराग ठाकुर को बीजेपी प्रमोट कर रही है.
-
The video is crystal clear. Protestors cannot be silenced through murder. There has to be accountability for the innocent blood of farmers that has been spilled and justice must be delivered before a message of arrogance and cruelty enters the minds of every farmer. 🙏🏻🙏🏻 pic.twitter.com/Z6NLCfuujK
— Varun Gandhi (@varungandhi80) October 7, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
">The video is crystal clear. Protestors cannot be silenced through murder. There has to be accountability for the innocent blood of farmers that has been spilled and justice must be delivered before a message of arrogance and cruelty enters the minds of every farmer. 🙏🏻🙏🏻 pic.twitter.com/Z6NLCfuujK
— Varun Gandhi (@varungandhi80) October 7, 2021The video is crystal clear. Protestors cannot be silenced through murder. There has to be accountability for the innocent blood of farmers that has been spilled and justice must be delivered before a message of arrogance and cruelty enters the minds of every farmer. 🙏🏻🙏🏻 pic.twitter.com/Z6NLCfuujK
— Varun Gandhi (@varungandhi80) October 7, 2021
वरुण गांधी ने पहले किसान आंदोलन पर बीजेपी को नसीहत दी थी, फिर लखीमपुर खीरी की घटना पर कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था. वह किसानों के मुद्दे पर जैसे गन्ना मूल्य और बकाया भुगतान के मसले पर भी लगातार सरकार को चिट्ठी लिखते रहे हैं. अभी वरूण गांधी पीलीभीत और मेनका गांधी सुल्तानपुर से सांसद हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मुद्दे पर मेनका गांधी ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि हर वर्ष राष्ट्रीय कार्यसमिति बदली जाती है. कार्यसमिति बदलना पार्टी का हक है. मेनका गांधी ने कहा, ''मैं 25 साल से राष्ट्रीय कार्यसमिति में हूं, अगर उसे बदल दिया गया तो कौन सी बड़ी बात है?'' नए लोगों को मौका मिलना चाहिए, इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है. मगर वरुण गांधी इस बदलाव पर खामोश ही रहे.
गांधी परिवार से मुकाबले के लिए बीजेपी के 'गांधी'
गांधी परिवार की मेनका गांधी 1998 में बीजेपी में आईं. वह पीलीभीत से बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार थीं. इससे पहले वह 1989 और 1996 में वह जनता के टिकट पर भी सांसद चुनी गई थीं. मेनका गांधी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थीं. मोदी 1.0 में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था. वरुण गांधी भाजपा में साल 2004 में शामिल हुए थे. तब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में शामिल लालकृष्ण आडवाणी, वैंकेया नायडू, राजनाथ सिंह और प्रमोद महाजन ने उनका वेलकम किया था. बीजेपी को उम्मीद थी कि गांधी ब्रांड का मुकाबला कोई गांधी ही कर सकता है और वरुण इसमें पूरी तरह फिट थे. 2004 में वह औपचारिक तौर से भाजपाई हो गए. वरुण 2009 में पीलीभीत से जीतकर संसद पहुंच गए. मेनका गांधी ने सुल्तानपुर को चुना और विजयी हुईं. इसके बाद हुए आम चुनाव में दोनों बीजेपी के टिकट से लगातार जीत रहे हैं.
क्या बीजेपी में हाशिये पर जा रहे हैं वरुण और मेनका ?
2009 के चुनावों में वरुण गांधी ने ऐसे सार्वजनिक बयान दिए, जो बीजेपी के एजेंडे पर फिट बैठती थी. वह फायर ब्रांड नेता के तौर पर उभरने लगे. इससे पार्टी का एक तबका उनसे नाराज भी हुआ मगर भाजपा वरुण को बढ़ावा देती रही. 2013 में राजनाथ सिंह ने उन्हें बीजेपी का जनरल सेक्रेट्री बनाया. 2014 में जब बीजेपी में अमित शाह और मोदी युग आया तो वरुण का कद घटना शुरू हुआ. पार्टी ने मंत्री पद के लिए वरुण के नाम पर विचार नहीं किया. साथ ही मोदी 2.0 में मेनका गांधी को भी जगह नहीं मिली. बीजेपी कार्यकारिणी से हटाने के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी अपने गांधी के पर कतर रही है.
गांधी Vs गांधी को वरुण ने कभी नहीं कबूला
एक्सपर्ट मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी वरुण को राहुल के मुकाबले खड़ा करना चाहती थी. मेनका गांधी 1984 में राहुल गांधी से खिलाफ अमेठी से चुनाव हार चुकी थी. अमेठी कांग्रेस के नेता और मेनका गांधी के पति संजय गांधी की सीट थी. मगर चुनाव हारने के बाद वह अमेठी की दावेदारी से दूर हो गईं. बाद में उन्होंने सिक्ख बाहुल्य पीलीभीत को अपना क्षेत्र बनाया.
जब मेनका बीजेपी में आई थीं, तभी से बीजेपी गांधी वर्सेज गांधी की तैयारी कर रही थी. मगर इसके विपरीत 16 साल में वरुण और मेनका ने कभी कांग्रेस के गांधी पर हमला नहीं बोला. माना जाता है कि राहुल और प्रियंका से वरुण से रिश्ते अच्छे हैं, इसलिए उन्होंने हमेशा भाषा को लेकर संयम बरता. इस बीच स्मृति ईरानी गांधी परिवार के गढ़ में कमाल कर दिया. 2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55 हजार वोटों से हरा दिया. यानी जिस चमत्कार की उम्मीद बीजेपी को वरुण से थी, वह स्मृति ईरानी ने किया. इस तरह वरुण पार्टी में कई कदम पीछे चले गए.
राजनाथ सिंह की नजदीकी अब पड़ रही है भारी
जब बीजेपी 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पर चर्चा कर रही थी. तब वरुण गांधी ने राजनाथ सिंह का नाम खुले तौर पर लिया था. एक सभा में उन्होंने राजनाथ सिंह को बीजेपी का दूसरा अटल बिहारी बता दिया. यह बयान उनके राजनीति पर भारी पड़ा. जब मोदी युग आया तो राजनाथ समर्थक नेताओं को पार्टी के पदों से धीरे-धीरे मुक्त कर दिया गया. वरुण के मेंटर आडवाणी सात साल से मार्गदर्शक मंडल के सदस्य हैं. उनका पॉलिटिकल इमेज गढ़ने वाले प्रमोद महाजन दुनिया में नहीं हैं. वैकेया नायडू उपराष्ट्रपति हैं और पार्टी में उनका न के बराबर हस्तक्षेप है.
क्या समाजवादी पार्टी में जाएंगे वरुण?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि भले ही कांग्रेस का रास्ता वरुण गांधी के लिए खुला हो मगर उनकी एंट्री आसान नहीं है. गांधी ब्रांड के साथ वहां राहुल और प्रियंका पहले से ही मौजूद हैं. साथ ही मेनका गांधी का पुराने रिश्ता भी इस रास्ते के बीच में आएगा. माना जा रहा है कि वरुण गांधी अपनी स्थिति से खुश नहीं हैं, इसलिए लखीमपुर खीरी की घटना के बाद उन्होंने पार्टी लाइन से हटकर प्रतिक्रिया दी. पीलीभीत और सुल्तानपुर में सिक्ख आबादी भी है और यह मेनका गांधी के परंपरागत वोटर हैं, इसलिए ऐसा बयान अपेक्षित भी था. अब चर्चा है कि समर्थक वरुण को समाजवादी पार्टी में शामिल होने की सलाह दे रहे हैं. कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है. वरुण गांधी ने अभी कोई राय नहीं रखी है. उनके अगले कदम का इंतजार पार्टी भी कर रही है. सांसद मेनका संजय गांधी ने कहा कि मैं भाजपा में हूं और भाजपा में ही रहूंगी. मैं भाजपा छोड़ने वाली नहीं हूं.