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आज भी बंद है हॉस्टल का वो कमरा, जहां अटलजी ने लिखी थी पहली कविता - आज भी बंद है हॉस्टल का वो कमरा

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई का शुक्रवार को 97वीं जयंती मनाई जा रही है. कानपुर में पढाई के दौरान अटलजी ने हॉस्टल के कमरे में अपनी पहली कविता लिखा थी.

atal bihari vajpayee
अटल बिहारी वाजपेई
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Published : Dec 25, 2020, 7:15 AM IST

कानपुर: अटल बिहारी वाजपेई यह एक नाम मात्र नहीं है, बल्कि खुद में एक युग, राजनीति का एक दौर और एक संस्कृति है. अटलजी जितने ओजस्वी राजनेता थे उतने ही प्रभावी कवि भी थे. उनकी कविता आज भी जीवन के मूल्यों को संजोए हुए है. उनके घर में भाई और पिता तो कविता लिखा करते थे, लेकिन अटलजी ने अपने जीवन की पहली कविता पन्द्रह अगस्त का दिन कहता है आजादी अभी अधूरी है, 15 अगस्त 1947 के दिन ही कानपुर डीएवी कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 104 में लिखी थी.

यह कमरा आज भी अटल बिहारी वाजपेई की यादों से सजा हुआ है. बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेई अपने पिता कृष्ण बिहारी लाल वाजपेई के साथ इसी कमरे में रहा करते थे और इसी कमरे में उन्होंने अपनी काव्य जीवन की शुरुआत करने के साथ ही संघ कार्यों की शुरुआत की थी. यह कमरा आज भी अटलजी की याद में संरक्षित है और यहां अटलजी की दो फोटो और उस समय के उनके दोनों बेड यहां हैं. पिता के साथ जहां कॉलेज में सहपाठी वहीं हॉस्टल में पुत्र का फर्ज निभाकर अपनी सहजता और धर्म का परिचय देने की जो काबिलियत अटलजी में थी वो आज मिलनी तो दूर सोच से भी परे है.

अटल जयंती पर स्पेशल रिपोर्ट

पिता और पुत्र एक ही रूम में रहते थे
अटल बिहारी वाजपेई जब ग्वालियर से कानपुर पढ़ने आये थे तो उनके साथ उनके पिताजी भी चले थे. उन्होंने यहां से कानून की पढ़ाई की. वहीं अटल बिहारी वाजपेई यहां से एमए पॉलिटिकल साइंस और कानून दोनों की पढ़ाई कर रहे थे. अटलजी का एक वाकया मशहूर है कि जब वो यहां पढ़ने आए तो लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय था कि पिता और पुत्र एक साथ पढ़ते हैं, बल्कि जब वह प्रिंसिपल से मिलने पहुंचे तो वह भी हैरान थे कि वह पढ़ना चाहते हैं, जिसके बाद दोनों एक ही कमरे में रहा करते थे और एक ही क्लास में पढ़ते थे. कई बार अध्यापक मजाक उड़ाते हुए पिताजी के न आने पर अटलजी से और अटलजी के न आने पर उनसे पूछते थे.

atal bihari vajpayee
अटल जी और उनके पिता दोनों एक ही कमरे में रहा करते थे.

गंगा घाट पर घंटों लगती थी महफिल
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला बताते हैं कि अटलजी को गंगा किनारे बैठने का बड़ा शौक था. अक्सर शाम को पीछे बाबा घाट चले जाते थे और अपने दोस्तों के साथ बैठे रहते थे. यहां उनके दोस्तों की महफिल लगती थी, जहां पर कविता शायरी सुनाई जाती थी. इस कविता शायरी के दौर के चलते यह महफिल घंटों लगी रहती थी.

कविता सुनाने का था शौक
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने लोगों से सुना कि जब अटल बिहारी यहां रहते थे तो वह आए दिन नई-नई कविताएं लिखा करते थे और बड़े चाव से सुनाया करते थे. वहीं यहां की रामायण मंडली में अटलजी और उनके पिता दोनों शामिल थे और जब रामायण का पाठ होता तो अटलजी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामायण की चौपाई कविता की तरह पूरे हॉस्टल को सुनाते थे.

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कानपुर डीएवी कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 104 में रहते थे अटल विहारी वाजपेयी.

पढ़ें: इंदौर : बर्फानी बाबा ने त्यागा देह, शुक्रवार को दी जाएगी समाधि

मेस होने के बावजूद अपने पिता का खाना खुद बनते थे
पीयूष शुक्ला आगे बताते कि अटलजी को खाना बनाने का बहुत शौक था. छात्रावास में मेस होने के बावजूद भी वह अपने पिता के लिए खाना खुद बनाते थे. इसके लिए उन्होंने अपने कमरे में पूरी व्यवस्था कर रखी थी और अपने पिता का खाना बनाकर ही उनको खिलाते थे.

जाने के बाद नहीं लौटे अटल
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला कहते हैं कि अटल बिहारी बाजपेई ने 1945 से लेकर 1947 के बीच यहां पर शिक्षा दीक्षा ग्रहण की. जिसके बाद उन्होंने यही से अपने संघ जीवन की शुरुआत की और देश के प्रधानमंत्री तक पद तक पहुंचे. लेकिन उसके बाद अटलजी कभी भी दोबारा न कॉलेज और न ही छात्रावास आए, जिसको लेकर लोगों को हमेशा एक पीड़ा रही. आज वह हमारे बीच तो नहीं रहे, लेकिन इस छात्रवास और इसकी दरों दीवारों और विशेष कर उनके कमरे को अपने उस युवा कवि और साथी का इंतजार आज भी है.

अटलजी के न रहने पर सिर्फ हुई घोषणा नहीं हुआ काम
पीयूष शुक्ला बताते हैं कि जब 2018 में जब अटल बिहारी वाजपेई हमारे बीच नहीं रहे तो मीडिया से लेकर सरकारी विभाग के कई अधिकारी छात्रावास आए. उन्होंने कई बड़ी-बड़ी घोषणाएं की. वहीं शासन ने भी घोषणा की कि अटल बिहारी वाजपेई के छात्रावास के कमरे का जीर्णोद्धार होने के साथ इसे उनके संग्रहालय के रूप में परिवर्तित किया जाएगा, लेकिन दो साल बीत चुके हैं. कागजों में तो शायद संग्रहालय बन चुका हो, लेकिन अभी तक एक भी रुपया नहीं आया और अटलजी का कमरा ऐसे ही बदहाल अवस्था में है.

कानपुर: अटल बिहारी वाजपेई यह एक नाम मात्र नहीं है, बल्कि खुद में एक युग, राजनीति का एक दौर और एक संस्कृति है. अटलजी जितने ओजस्वी राजनेता थे उतने ही प्रभावी कवि भी थे. उनकी कविता आज भी जीवन के मूल्यों को संजोए हुए है. उनके घर में भाई और पिता तो कविता लिखा करते थे, लेकिन अटलजी ने अपने जीवन की पहली कविता पन्द्रह अगस्त का दिन कहता है आजादी अभी अधूरी है, 15 अगस्त 1947 के दिन ही कानपुर डीएवी कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 104 में लिखी थी.

यह कमरा आज भी अटल बिहारी वाजपेई की यादों से सजा हुआ है. बताते हैं कि अटल बिहारी वाजपेई अपने पिता कृष्ण बिहारी लाल वाजपेई के साथ इसी कमरे में रहा करते थे और इसी कमरे में उन्होंने अपनी काव्य जीवन की शुरुआत करने के साथ ही संघ कार्यों की शुरुआत की थी. यह कमरा आज भी अटलजी की याद में संरक्षित है और यहां अटलजी की दो फोटो और उस समय के उनके दोनों बेड यहां हैं. पिता के साथ जहां कॉलेज में सहपाठी वहीं हॉस्टल में पुत्र का फर्ज निभाकर अपनी सहजता और धर्म का परिचय देने की जो काबिलियत अटलजी में थी वो आज मिलनी तो दूर सोच से भी परे है.

अटल जयंती पर स्पेशल रिपोर्ट

पिता और पुत्र एक ही रूम में रहते थे
अटल बिहारी वाजपेई जब ग्वालियर से कानपुर पढ़ने आये थे तो उनके साथ उनके पिताजी भी चले थे. उन्होंने यहां से कानून की पढ़ाई की. वहीं अटल बिहारी वाजपेई यहां से एमए पॉलिटिकल साइंस और कानून दोनों की पढ़ाई कर रहे थे. अटलजी का एक वाकया मशहूर है कि जब वो यहां पढ़ने आए तो लोगों के लिए यह कौतूहल का विषय था कि पिता और पुत्र एक साथ पढ़ते हैं, बल्कि जब वह प्रिंसिपल से मिलने पहुंचे तो वह भी हैरान थे कि वह पढ़ना चाहते हैं, जिसके बाद दोनों एक ही कमरे में रहा करते थे और एक ही क्लास में पढ़ते थे. कई बार अध्यापक मजाक उड़ाते हुए पिताजी के न आने पर अटलजी से और अटलजी के न आने पर उनसे पूछते थे.

atal bihari vajpayee
अटल जी और उनके पिता दोनों एक ही कमरे में रहा करते थे.

गंगा घाट पर घंटों लगती थी महफिल
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला बताते हैं कि अटलजी को गंगा किनारे बैठने का बड़ा शौक था. अक्सर शाम को पीछे बाबा घाट चले जाते थे और अपने दोस्तों के साथ बैठे रहते थे. यहां उनके दोस्तों की महफिल लगती थी, जहां पर कविता शायरी सुनाई जाती थी. इस कविता शायरी के दौर के चलते यह महफिल घंटों लगी रहती थी.

कविता सुनाने का था शौक
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला बताते हैं कि उन्होंने लोगों से सुना कि जब अटल बिहारी यहां रहते थे तो वह आए दिन नई-नई कविताएं लिखा करते थे और बड़े चाव से सुनाया करते थे. वहीं यहां की रामायण मंडली में अटलजी और उनके पिता दोनों शामिल थे और जब रामायण का पाठ होता तो अटलजी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते थे और रामायण की चौपाई कविता की तरह पूरे हॉस्टल को सुनाते थे.

atal bihari vajpayee
कानपुर डीएवी कॉलेज के छात्रावास के कमरा नंबर 104 में रहते थे अटल विहारी वाजपेयी.

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मेस होने के बावजूद अपने पिता का खाना खुद बनते थे
पीयूष शुक्ला आगे बताते कि अटलजी को खाना बनाने का बहुत शौक था. छात्रावास में मेस होने के बावजूद भी वह अपने पिता के लिए खाना खुद बनाते थे. इसके लिए उन्होंने अपने कमरे में पूरी व्यवस्था कर रखी थी और अपने पिता का खाना बनाकर ही उनको खिलाते थे.

जाने के बाद नहीं लौटे अटल
छात्रावास के प्रभारी पीयूष शुक्ला कहते हैं कि अटल बिहारी बाजपेई ने 1945 से लेकर 1947 के बीच यहां पर शिक्षा दीक्षा ग्रहण की. जिसके बाद उन्होंने यही से अपने संघ जीवन की शुरुआत की और देश के प्रधानमंत्री तक पद तक पहुंचे. लेकिन उसके बाद अटलजी कभी भी दोबारा न कॉलेज और न ही छात्रावास आए, जिसको लेकर लोगों को हमेशा एक पीड़ा रही. आज वह हमारे बीच तो नहीं रहे, लेकिन इस छात्रवास और इसकी दरों दीवारों और विशेष कर उनके कमरे को अपने उस युवा कवि और साथी का इंतजार आज भी है.

अटलजी के न रहने पर सिर्फ हुई घोषणा नहीं हुआ काम
पीयूष शुक्ला बताते हैं कि जब 2018 में जब अटल बिहारी वाजपेई हमारे बीच नहीं रहे तो मीडिया से लेकर सरकारी विभाग के कई अधिकारी छात्रावास आए. उन्होंने कई बड़ी-बड़ी घोषणाएं की. वहीं शासन ने भी घोषणा की कि अटल बिहारी वाजपेई के छात्रावास के कमरे का जीर्णोद्धार होने के साथ इसे उनके संग्रहालय के रूप में परिवर्तित किया जाएगा, लेकिन दो साल बीत चुके हैं. कागजों में तो शायद संग्रहालय बन चुका हो, लेकिन अभी तक एक भी रुपया नहीं आया और अटलजी का कमरा ऐसे ही बदहाल अवस्था में है.

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