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मुर्गे की तेहरवीं में 500 लोगों ने किया भोज, बकरी का बच्चा बचाने में गई थी जान - terahaveen of cock

प्रतापगढ़ में एक मुर्गे की मौत के बाद मालिक की ओर से उसकी आत्मा की शांति के लिए तेहरवीं का आयोजन किया गया. इसमें 500 लोगों को भोज कराया गया.

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मुर्गे की तेहरवीं
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Published : Jul 21, 2022, 5:55 PM IST

प्रतापगढ़ः जिले के फतनपुर थाना अंतर्गत एक शख्स ने अपने पांच साल के मुर्गे की मौत के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए तेहरवीं का आयोजन किया. तेहरवीं में पांच सौ से ज्यादा लोगों ने भोज किया. सभी ने मुर्गे की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

प्रतापगढ़ जिला के फतनपुर थानाक्षेत्र के बेहदौल कला गांव निवासी डॉ. शालिकराम सरोज अपना क्लीनिक चलाते हैं. घर पर उन्होंने बकरी व एक मुर्गा पाल रखा था. मुर्गे से पूरा परिवार इतना प्यार करने लगा कि उसका नाम लाली रख दिया. 8 जुलाई को एक कुत्ते ने डॉ. शालिकराम की बकरी के बच्चे पर हमला कर दिया. यह देख लाली कुत्ते से भिड़ गया. बकरी का बच्चा तो बच गया लेकिन लाली खुद कुत्ते के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया था.

प्रतापगढ़ में हुआ मुर्गे की तेहरवीं का आयोजन.

9 जुलाई की शाम लाली ने दम तोड़ दिया. घर के पास उसका शव दफना दिया गया. यहां तक सब सामान्य था लेकिन जब डॉ शालिकराम ने रीतिरिवाज के मुताबिक मुर्गे की तेरहवीं की घोषणा की तो लोग चौंक उठे. इसके बाद अंतिम संस्कार के कर्मकांड होने लगे. सिर मुंडाने से लेकर अन्य कर्मकांड पूरे किए गए. बुधवार सुबह से ही हलवाई तेरहवीं का भोजन तैयार करने में जुट गए. शाम छह बजे से रात करीब दस बजे तक 500 से अधिक लोगों ने तेरहवीं में पहुंचकर खाना खाया. इसकी चर्चा दूसरे दिन भी इलाके में रहीं.

अनुजा सरोज का कहना है कि लाली मुर्गा मेरे भाइयों जैसा था. उसकी मौत होने के बाद 2 दिनों तक घर मे खाना नही बना. मुर्गे को रक्षाबंधन पर राखी बांधते थे. तेहरवीं में पांच सौ लोगों को भोज कराया गया. उन्होंने बताया कि 40 हजार रुपए तेहरवीं में खर्च किए गए.

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प्रतापगढ़ः जिले के फतनपुर थाना अंतर्गत एक शख्स ने अपने पांच साल के मुर्गे की मौत के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए तेहरवीं का आयोजन किया. तेहरवीं में पांच सौ से ज्यादा लोगों ने भोज किया. सभी ने मुर्गे की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की.

प्रतापगढ़ जिला के फतनपुर थानाक्षेत्र के बेहदौल कला गांव निवासी डॉ. शालिकराम सरोज अपना क्लीनिक चलाते हैं. घर पर उन्होंने बकरी व एक मुर्गा पाल रखा था. मुर्गे से पूरा परिवार इतना प्यार करने लगा कि उसका नाम लाली रख दिया. 8 जुलाई को एक कुत्ते ने डॉ. शालिकराम की बकरी के बच्चे पर हमला कर दिया. यह देख लाली कुत्ते से भिड़ गया. बकरी का बच्चा तो बच गया लेकिन लाली खुद कुत्ते के हमले में गंभीर रूप से घायल हो गया था.

प्रतापगढ़ में हुआ मुर्गे की तेहरवीं का आयोजन.

9 जुलाई की शाम लाली ने दम तोड़ दिया. घर के पास उसका शव दफना दिया गया. यहां तक सब सामान्य था लेकिन जब डॉ शालिकराम ने रीतिरिवाज के मुताबिक मुर्गे की तेरहवीं की घोषणा की तो लोग चौंक उठे. इसके बाद अंतिम संस्कार के कर्मकांड होने लगे. सिर मुंडाने से लेकर अन्य कर्मकांड पूरे किए गए. बुधवार सुबह से ही हलवाई तेरहवीं का भोजन तैयार करने में जुट गए. शाम छह बजे से रात करीब दस बजे तक 500 से अधिक लोगों ने तेरहवीं में पहुंचकर खाना खाया. इसकी चर्चा दूसरे दिन भी इलाके में रहीं.

अनुजा सरोज का कहना है कि लाली मुर्गा मेरे भाइयों जैसा था. उसकी मौत होने के बाद 2 दिनों तक घर मे खाना नही बना. मुर्गे को रक्षाबंधन पर राखी बांधते थे. तेहरवीं में पांच सौ लोगों को भोज कराया गया. उन्होंने बताया कि 40 हजार रुपए तेहरवीं में खर्च किए गए.

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